आयोग ने दोनों पक्षों से कहा कि फैसला जल्द किया जाएगा क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया 17 जनवरी को शुरू होगी।
अखिलेश यादव की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने आयोग के समक्ष दलील दी कि सांसदों, विधायकों, विधान परिषद सदस्यों और पार्टी प्रतिनिधियों का बहुमत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ है।
करीब साढ़े चार घंटे चली दलील में प्रतिद्वंद्वी चचेरे भाई मुलायम सिंह यादव और रामगोपाल मौजूद थे। मुलायम के साथ उनके भाई शिवपाल भी थे जबकि रामगोपाल राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल के साथ थे। अतीत के उदाहरणों का जिक्र करते हुए अखिलेश खेमा ने दलील दी कि चूंकि संख्या बल मुख्यमंत्री के पक्ष में है इसलिए साइकिल का चिन्ह उन्हें ही मिलना चाहिए। इसके लिए 1968 का चुनाव चिन्ह आदेश और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान :धारा 29 ए सहित: का उदाहरण दिया गया।
वहीं, मुलायम खेमे का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सॉलीसीटर जनरल मोहन परासरन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चूंकि पार्टी में कोई सीधी टूट नहीं है जैसे कि सपा :मुलायम: या सपा :अखिलेश:, इसलिए आयोग के पास किसी एक समूह को चिन्ह आवंटित करने के अधिकार का अभाव है।
मुलायम खेमे ने यह दलील भी दी कि एक जनवरी को अखिलेश के विश्वस्त रामगोपाल यादव द्वारा बुलाए गए सम्मेलन में मुलायम को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाते हुए चूंकि कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया और पार्टी एकजुट है, इसलिए चुनाव चिन्ह :सुरक्षित रखना और आवंटित करना: आदेश, 1968 का पैरा 15 इस मामले में लागू नहीं होता।
इस दावे का अखिलेश खेमे ने विरोध किया। उसने कहा कि आयोग को संबोधित एक पत्र में मुलायम के विश्वस्त अमर सिंह ने टूट कर अलग हुए गुट शब्दों का इस्तेमाल किया है और दोनों पक्षों ने आयोग के समक्ष चिन्ह को लेकर दावा किया है, जो एक विवाद का संकेत देता है।
बाद में धवन ने पीटीआई भाषा को बताया, दोनों पक्षों ने चुनाव चिन्ह को लेकर दावा किया है। किसी ने भी इस चिन्ह को जब्त किए जाने की दलील नहीं दी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि चूंकि किसी ने भी चिन्ह जब्त करने की दलील नहीं दी है इसलिए आयोग के पास उपलब्ध विकल्पों में यह भी शामिल है।
धवन ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि आयोग सिर्फ चिन्ह के मुद्दे पर फैसला कर सकता है और पार्टी अध्यक्ष के विषय पर दीवानी अदालत सहित अन्य उपलब्ध तंत्र द्वारा फैसला किया जा सकता है। वहीं, 17 जनवरी के पहले मामले में फैसला कर पाने में अक्षम रहने पर आयोग एक अस्थायी आदेश जारी कर सकता है क्योंकि उप्र में नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया उसी दिन शुरू हो जाएगी। भाषा