इसी महीने होने जा रहे झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। जेवीएम-पी के इस निर्णय से विपक्षी दलों के महागठबंधन बनाने के प्रयास खत्म होते दिख रहे हैं।
अकेले चुनाव लड़ेगी जेवीएम-पी
पूर्व मुख्यमंत्री और जेवीएम-पी के संस्थापक बाबूलाल मरांडी ने कहा, “गठबंधन के लिए देर हो चुकी है। मैंने लोकसभा चुनावों के बाद एक संयुक्त मोर्चे की कोशिश की थी, लेकिन अब इसके लिए बहुत देर हो चुकी है। विधानसभा चुनाव में हम जनता की अदालत में अब अकेले जाएंगे। लोगों को ही पार्टियों के भाग्य का फैसला करने दें।” हालांकि कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) बाबूलाल मरांडी को विपक्षी महागठबंधन के पाले में लाने के लिए अंतिम प्रयास कर रहे हैं। इसी सिलसिले में झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव सोमवार को मरांडी से मिले थे, लेकिन दोनों के बीच बातचीत किसी परिणाम पर नहीं पहुंची।
कांग्रेस कर रही अंतिम कोशिश
कांग्रेस के प्रवक्ता किशोर सहदेव का कहना है कि “बाबूलाल मरांडी को महागठबंधन में लाने के प्रयास जारी हैं। हमें उम्मीद है कि जेवीएम-पी भाजपा के खिलाफ लड़ाई में विपक्ष को मजबूत करेगा।” मरांडी को समझाने के लिए झामुमो भी प्रयास कर रहा है। झामुमो के प्रवक्ता विनोद पांडे ने कहा, “हम चाहते हैं कि जेवीएम-पी विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा हो। हमें समझ नहीं आ रहा है कि बहुत देर कैसे हो गई है।”
सीट बंटवारे को लेकर हेमंत सोरेन दिल्ली में
कांग्रेस और झामुमो दावा कर रहे हैं कि वे मरांडी को विपक्ष के पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने पहले ही आपस में सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया है। झामुमो 40-42 और कांग्रेस 28-32 सीटों पर लड़ेगी। वाम और राष्ट्रीय जनता दल 10 सीटों पर लड़ेंगे। कांग्रेस नेताओं से मिलने और सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन दिल्ली आए थे। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पांच सीटों पर झामुमो की असहमति है। झामुमो, कांग्रेस, राजद और वाम दलों के बीच सीट बंटवारे की अंतिम घोषणा 7 या 8 नवंबर को हो सकती है।
लोकसभा में बेअसर रहा था महागठबंधन
लोकसभा चुनावों में जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी और जेवीएम-पी सहित विपक्षी महागठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा था। हालांकि, गठबंधन कोई प्रभाव डालने में असफल रहा था। विपक्ष का कहना है कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों से अलग होते हैं। विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर जोर होता है। इसलिए उन्हें उम्मीद है कि उनका प्रदर्शन बेहतर हो सकता है। अगर 2014 के वोट प्रतिशत पर ध्यान दिया जाए, तो एकजुट विपक्ष भाजपा को आगामी 2019 के चुनावों में कठिन चुनौती दे सकता है।