पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी के विधान परिषद् बनाने के चुनावी वादे को मंजूरी दे दी। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों के दौरान उम्र की वजह से टिकट सूची से बाहर रखे गए वरिष्ठ नेताओं के लिए ममता ने विधान परिषद् बनाए जाने का वादा किया था। पश्चिम बंगाल में फिलहाल 294 सदस्यीय विधानसभा है लेकिन राज्य में विधान परिषद् नहीं है। विधानसभा से पारित कराकर राज्य सरकार यह प्रस्ताव संसद की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजेगी। अगर केंद्र की मोदी सरकार इसे मंजूरी नहीं देती है तो ममता सरकार के साथ टकराव की स्थिति बन सकती है।
बंगाल में पांच दशक के बाद विधान परिषद का गठन किया जा रहा है। राज्य में फिलहाल 294 सदस्यीय विधानसभा है लेकिन राज्य में विधान परिषद् नहीं है। ममता बनर्जी ने हाल ही में बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान कई नेताओं को उम्र की वजह से टिकट सूची से बाहर रखा था और उन्हें विधान परिषद सदस्य बनाए जाने का वादा किया था।
पांच दशक पहले पश्चिम बंगाल में विधान परिषद थी, लेकिन 21 मार्च 1969 को इसे राज्य विधानसभा के एक प्रस्ताव से खत्म कर दिया गया। जिसे केंद्र ने भी मंजूरी दे दी। असल में 1935 के भारत सरकार के एक्ट में बंगाल को दो सदनों में बांटा गया, जिसमें विधान परिषद और विधानसभा शामिल थे. विधानसभा का कार्यकाल पांच साल के लिए कर दिया गया। साथ ही इसके सदस्यों की संख्या को 250 कर दिया गया जबकि काउंसिल के सदस्यों की संख्या को 63 से कम नहीं और 65 से ज्यादा नहीं हो सकती थी। हर ती तीन साल बाद एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल खत्म होता था।
1952 में बंगाल में आजादी के बाद विधानसभा और विधान परिषद की व्यवस्था की गई थी। इसमें 51 सदस्यों वाली बंगाल विधान परिषद का गठन 5 जून 1952 को किया था। विधान सभा में सदस्यों की संख्या 240 थी जिसमें एंग्लो-इंडियन कम्युनिटी के दो मनोनीत सदस्य शामिल थे। इसके बाद 21 मार्च 1969 में बंगाल से विधान परिषद को खत्म कर दिया गया।
बता दें कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश मे... विधान परिषद् है। इस परिषद को उच्च सदन भी कहते हैं। इससे पहले जम्मू कश्मीर में भी विधान परिषद थी लेकिन केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद इसकी मान्यता खत्म हो गई। विधान परिषद को राज्यों में लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा के नाम से जाना जाता है. इसके सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होता है। वहीं कुछ सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल के द्वारा किया जाता है।