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मध्य प्रदेशः चुनौतियां नई

पहले सूची जारी कर भाजपा ने ली बढ़त लेकिन कांग्रेस से आए प्रत्याशियों की चुनौती आम चुनाव के ऐलान से पहले...
मध्य प्रदेशः चुनौतियां नई

पहले सूची जारी कर भाजपा ने ली बढ़त लेकिन कांग्रेस से आए प्रत्याशियों की चुनौती

आम चुनाव के ऐलान से पहले ही भाजपा प्रदेश की कुल 29 में से 24 लोकसभा सीटों पर उम्‍मीदवार उतारकर बढ़त ले चुकी है। इससे कांग्रेस पर प्रत्याशियों की घोषणा को लेकर दबाव बढ़ गया है। भाजपा की सूची में चार चेहरे ऐसे हैं जो 2019 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। तकरीबन आठ सीटों पर भाजपा का मुकाबला कांग्रेस के नए चेहरों से होना है क्‍योंकि चार सीटों के कांग्रेसी उम्‍मीदवार भाजपा से मैदान में हैं, तो चार अन्य सीटों पर पिछली बार उम्मीदवार रहे चेहरों में से एक राज्यसभा सदस्‍य और दो विधायक बन गए हैं।

इनमें से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। गुना सीट सिंधिया घराने की पारंपरिक सीट रही है, लेकिन लगभग तीन दशकों के अंतराल के बाद भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव में गुना सीट कांग्रेस से छीन ली थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के कृष्णपाल यादव ने हराकर चौंका दिया था। 2020 में सिंधिया भाजपा में आ गए। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में पहुंचाकर केंद्र में मंत्री बना दिया। गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र विधानसभा सीटों के हिसाब से भाजपा के लिए मजबूत है। इसमें शिवपुरी जिले की तीन विधानसभा कोलारस, शिवपुरी और पिछोर आते हैं। इन तीनों पर ही भाजपा ने 2023 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है। गुना जिले की बमौरी और गुना विधानसभा और अशोकनगर जिले की अशोकनगर, चंदेरी तथा मुंगावली भी इस लोकसभा में हैं। इन आठ में से छह सीट पर भाजपा काबिज है। कृष्णपाल यादव  फिर गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन महाराज (ज्योतिरादित्य) के लिए उन्‍हें बैठा दिया गया।

कांग्रेस का दावा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर हारने जा रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता जयराम रमेश का कहना है कि सिंधिया 2019 में गुना से चुनाव हारे थे और अब 2024 में भी ऐसा ही होगा।

गुना-शिवपुरी जैसी ही हॉट सीट उससे सटी राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र की है। यह कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का गढ़ मानी जाती है, लेकिन पिछले दो बार से भाजपा के रोड़मल नागर यहां से सांसद हैं। भाजपा ने एक बार फिर से उन्हें यहां से टिकट दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मोना सुस्तानी चुनाव लड़ी थीं, लेकिन 2023 विधानसभा चुनाव से पहले वे भाजपा में शामिल हो गईं।

विंध्य अंचल की प्रतिष्ठित रीवा लोकसभा सीट की कहानी भी दिलचस्प है। भाजपा ने एक बार फिर रीवा से मौजूदा सांसद जानार्दन मिश्रा पर भरोसा जताया है। वे लगातार दो बार से सांसद हैं। पिछली बार कांग्रेस ने उनके खिलाफ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धार्थ भाजपा के पाले में आ गए और त्योंथर सीट से विधायक हैं। इस बार भाजपा खेमे में चर्चा जीत की नहीं, बल्कि यह है कि अंतर कितना बड़ा होगा।

शहडोल से भी भाजपा ने मौजूदा सांसद हिमाद्रि सिंह को ही उतारा है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हिमाद्रि सिंह कांग्रेस में थीं। तब उनका मुकाबला भाजपा छोड़कर कांग्रेस में पहुंचीं पूर्व विधायक प्रमिला सिंह से हुआ था। प्रमिला सिंह की घर वापसी हो चुकी है। मतलब यहां भी कांग्रेस का नया चेहरा मैदान में आने वाला है।

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे अशोक सिंह राज्यसभा पहुंच गए हैं। यहां से भाजपा ने मौजूदा सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का टिकट काटकर पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाह को प्रत्याशी बनाया है। कुशवाह ग्वालियर ग्रामीण सीट से विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। सबसे मजेदार वाकया तो सीधी लोकसभा सीट का है। पिछली बार यहां से भाजपा की रीति पाठक सांसद चुनी गई थीं। रीति अब सीधी विधानसभा सीट से विधायक हैं। उधर, रीति को पिछली बार चुनौती दे चुके कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह राहुल भैया भी चुरहट से विधायक बन चुके हैं। भाजपा ने सीधी लोकसभा से इस बार डॉ. राजेश मिश्रा को टिकट दिया है। वे पहली बार कोई चुनाव लड़ेंगे।

प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह का कहना है कि मार्च के पहले पखवाड़े में ही पार्टी अपने उम्मीदवारों को उतारने जा रही है। माना जा रहा है कि कांग्रेस दिग्गजों के साथ ही कुछ विधायकों पर भी दांव लगा सकती है। फिलहाल स्थिति यही है कि बहुजन समाज पार्टी मध्य प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रही है। कांग्रेस के साथ गठबंधन में समाजवादी पार्टी खजुराहो लोकसभा सीट से अपना एकमात्र प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुकी है।

जो भी हो, भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा के मामले में बढ़त ले चुकी हैं। दरअसल भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मध्‍य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में इसी रणनीति का नमूना पेश किया था। तब पार्टी ने आचार संहिता लगने से एक महीने पहले ही हारी हुई सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। उससे हुआ यह कि मध्‍य प्रदेश में पार्टी ने जिन 39 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम पहले घोषित कर दिए थे, उनमें वह 27 सीटों पर जीत गई। हालांकि हर चुनाव की स्थितियां अलग होती हैं और इस बार केंद्र के खिलाफ एंटी-इन्कंबेंसी भी दिख रही है। कांग्रेस भी ज्यादा संगठित और जोश में दिख रही है। अब देखना है कि यह रणनीति लोकसभा चुनाव में कितना कारगर होती है।

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