आडवाणी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह करार देते हुए शिवसेना ने कहा कि उन्होंने देश में संसदीय लोकतंत्र को लेकर एक सवालिया निशान खड़ा किया है। शिवसेना के मुखपत्र सामना के एक संपादकीय में कहा गया है कि यह गौर किया जाना चाहिए कि आडवाणी कांग्रेस के नेता नहीं हैं। इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वह गैर-कांग्रेसी राजनीति के अगुवा रहे हैं।
मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद भवन में प्रवेश को याद करते हुए इसमें कहा गया है कि उन्होंने संसद की सीढ़ियों पर माथा टेका था और उनके आंसू भी छलक आए थे।
इसमें कहा गया है कि लेकिन पिछले दो साल से संसदीय कार्यवाही के तमाशा के कारण संसद (इमारत) की आत्मा खो गयी है और यह आंसू बहा रही है। शिवसेना ने कहा है, संसद का मतलब लोगों की समस्या के मुद्दे पर गंभीर बहस करना होता है। लेकिन विपक्ष सवाल उठाता है और हंगामा करता है जबकि सरकार इन मुद्दों से दूर भागती है। यह आज की तस्वीर है।
मुखपत्र में कहा गया है, लोग रुपये के लिए कतार में खडे हैं। हालांकि, करोड़ों गुलाबी ( 2000 रुपये के नए नोट) अमीर लोगों के घरों से बरामद किए जा रहे हैं।