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जनादेश ’24/हिमाचल प्रदेश: सुक्खू की साख का सवाल

भाजपा असेंबली में अपनी ताकत को बढ़ाने की फिराक में है ताकि कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ जाए और गिर...
जनादेश ’24/हिमाचल प्रदेश: सुक्खू की साख का सवाल

भाजपा असेंबली में अपनी ताकत को बढ़ाने की फिराक में है ताकि कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ जाए और गिर जाए

 

हिमाचल प्रदेश में मतदान अभी महीने भर दूर है लेकिन सियासी पारा चढ़ना चालू हो चुका है। आम चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को होने वाले मतदान से पहले सूबे की फिजा कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच सियासी दबदबा कायम रखने की जबरदस्त जंग का पता दे रही है। हिमाचल में लोकसभा की चार सीटें हैं- शिमला, हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी। इस बार का आम चुनाव पहले के तमाम चुनावों से न सिर्फ अलग बल्कि राजनीतिक रूप से अहम भी रहने वाला है। मसलन, मंडी की सीट पर दो युवा चेहरों के अचानक उतर जाने से सरगर्मी बढ़ी हुई है। यहां से भाजपा के टिकट पर अभिनेत्री कंगना रनौत अपना सियासी सफर शुरू करने जा रही हैं तो शिमला (ग्रामीण) से दो बार के विधायक और पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह उनके खिलाफ कांग्रेस से खड़े हैं। दोनों स्थानीय प्रत्याशी हैं। चार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली कंगना पहाड़ की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं तो विक्रमादित्य राजपरिवार के उत्तराधिकारी हैं।

दोनों के बीच कुछ समानताएं हैं तो फर्क भी कई हैं। जैसे, कंगना बहुत मुखर और आक्रामक हैं। साथ ही वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनन्य भक्त हैं, जो उनके चुनाव प्रचार का एक बड़ा सहारा है लेकिन दिक्कत यह है कि वे राजनीति में नई हैं और छह जिलों तक फैली अपने विशाल लोकसभा क्षेत्र के बारे में उनका ज्ञान भी कम है। मंडी लोकसभा चीन से लगते दो जनजातीय जिलों किन्नौर और लाहौल-स्पीति तक फैली हुई है।  

कांग्रेस की प्रतिभा सिंह और सुक्खू

कांग्रेस की प्रतिभा सिंह और सुक्‍खू

कंगना कट्टर हिंदुत्ववादी हैं तो विक्रमादित्य भी इस मामले में कुछ कम नहीं, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बहिष्कार संबंधी पार्टी का फरमान ठुकरा दिया था। छह बार सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके उनके पिता वीरभद्र सिंह भी विश्व  हिंदू परिषद सहित हिंदूवादियों के बहुत करीबी थे। उन्होंने ही सबसे पहले हिमाचल में धर्मांतरण विरोधी कानून लाकर हिंदूवादियों की प्रशंसा बटोरी थी। विक्रमादित्य ने अपने एक बयान में इसका हवाला भी दिया है।

कंगना ने जब मंडी में अपना चुनाव प्रचार शुरू किया, उसके बाद विक्रमादित्य का नाम कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक में सामने आया। समिति के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने उनका नाम आगे बढ़ाया था। कंगना की लोकप्रियता के चलते उनकी सभाओं में जबरदस्त भीड़ उमड़ रही थी। स्थानीय मांदयाली बोली में उनके भाषण और स्थानीय वेशभूषा में उनकी छवि खूब भीड़ खींच रही थी, तो तीखी प्रतिक्रियाएं भी आमंत्रित कर रही थी। इससे कांग्रेस घबराई हुई थी।

इसीलिए मंडी सीट के लिए पार्टी ने बिना देरी किए हुए अपनी रणनीति बदली और विक्रमादित्य का नाम उम्मीदवारी के लिए उनकी मां प्रतिभा सिंह की जगह स्वीकृत कर लिया। प्रतिभा सिंह मंडी से मौजूदा सांसद हैं और प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष भी हैं।

इससे यह साफ होता है कि सूबे में सत्तासीन कांग्रेस का मकसद वीरभद्र सिंह की सियासी विरासत और रामपुर-बुशहर के तत्कालीन राजा की विरासत को इस चुनाव में भुनाना है। खुद वीरभद्र सिंह मंडी से तीन बार सांसद रह चुके हैं।

यह फैसला इसलिए नाटकीय था क्योंकि दो महीने पहले ही फरवरी में विक्रमादित्य ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर के अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद पार्टी आलाकमान ने जब राज्य में नेतृत्व परिवर्तन से इनकार किया, तब जाकर वे कैबिनेट में बने रहने को राजी हुए थे। सूबे की कांग्रेसी सरकार चुनाव-पूर्व किए वादों को पूरा न करने का असंतोष पहले से झेल रही है। ऐसी सूरत में विक्रमादित्य‍ को अपने संसदीय क्षेत्र में पार्टी के कार्यकर्ताओं को चुनाव में सक्रिय करने पर जोर लगाना होगा। फिलहाल मंडी से उनकी मां प्रतिभा सिंह सांसद हैं। वे 2021 में हुए उपचुनाव में जीती थीं।

प्रचार करते विक्रमादित्य सिंह

प्रचार करते विक्रमादित्य सिंह

कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनाव में कुल 68 सीटों में से 40 अपने खाते में की थीं। इसके बाद बनी सरकार में कांग्रेस के छह विधायकों ने बगावत कर दी थी जिसके चलते राज्यसभा की सीट भाजपा के पास चली गई थी। उन छहों विधायकों को विधानसभा के स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने अयोग्य घोषित कर दिया था जिसके बाद वे भाजपा में चले गए। अब वे अपनी-अपनी विधानसभाओं में हो रहे उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर फिर से खड़े हैं। इस घटनाक्रम ने राज्य सरकार को कुछ पल के लिए संकट में डाल दिया था।

लिहाजा चारों लोकसभा सीटों पर चुनाव के साथ-साथ कांग्रेस का जोर इन्हीं के साथ हो रहे विधानसभा चुनावों पर भी रहेगा। मुख्यमंत्री सुक्खू के लिए ये चुनाव इम्तिहान हैं। उन्हें केवल अपनी सरकार नहीं बचानी बल्कि अपने नेतृत्व की क्षमता को भी साबित करना है। राजनीतिक अस्थिरता से पार पाने के लिए वे चुनाव को एक अवसर के रूप में देख रहे हैं, जिसका दोष वे भाजपा के सिर पर मढ़कर खुद को बरी करते रहे हैं।

सुक्खू पहली बार मुख्यपमंत्री बने हैं। इस पद पर वे अपनी सांगठनिक क्षमताओं और राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के मजबूत समर्थन से पहुंचे हैं। फिलहाल उनके मंत्री और विधायक उनसे असंतुष्ट चल रहे हैं और लोगों में भी सरकार को लेकर नाराजगी है।

इसलिए कांग्रेस का अगर लोकसभा में खाता नहीं खुला तो नाकाम नेतृत्व के लिए उन पर हमले होंगे। अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन कर के छह विधानसभाओं में कुछ सीटें भी ले आती है, तो सुक्खू की दावेदारी मजबूत होगी और उनकी सरकार बच जाएगी। फिलहाल सुक्खू को असेंबली में 34 विधायकों का समर्थन है। यह आधे से केवल एक कम है। अपनी सरकार को अस्थिर करने के लिए भाजपा पर आरोप मढ़ते हुए सुक्खू कहते हैं, ‘‘मेरी सरकार को कोई खतरा नहीं है। सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी।’’

दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को पूरी उम्मीद है भाजपा चारों लोकसभा सीटें तो जीतेगी ही, छह विधानसभाओं पर भी अपना कब्जा जमाएगी। वे कहते हैं, ‘‘जब 4 जून को चुनाव के नतीजे घोषित होंगे, देश के भीतर दो सरकारें बनेंगी- एक दिल्ली  में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार और दूसरी हिमाचल में भाजपा की सरकार।’’

सुक्खू के लगाए राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने संबंधी आरोपों को नकारते हुए जयराम कहते हैं, ‘‘वह कांग्रेस की अपनी समस्या है और सुक्खू की ही पैदा की हुई है।’’   

भाजपा के टिकट पर मौजूदा विधानसभा उपचुनाव में खड़े कांग्रेस के छह बागी हैं एआइसीसी के पूर्व सचिव सुधीर शर्मा (धरमशाला), रवि ठाकुर (लाहौल स्पीति), इंदर दत्त लखनपाल (बरसार), चैतन्य शर्मा (गंग्रेट), दविंदर कुमार भुट्टो (कुटलेहर) और प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष राजिंदर राणा (सुजानपुर)।

सुजानपुर, हमीरपुर जिले की एक महत्व्पूर्ण विधानसभा है। यह पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का गृहनगर है। राणा 2017 में चर्चित हुए थे जब उन्होंने यहां से धूमल को हरा दिया था। उस चुनाव में धूमल भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा थे। इसी हार के कारण धूमल दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे और कमान पांच बार के विधायक जयराम ठाकुर के हाथ में चली गई थी। अब राणा भाजपा में आ चुके हैं तो माना जा रहा है कि उनकी निगाह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। मुख्यमंत्री सुक्खू भी हमीरपुर के ही रहने वाले हैं।    

तीन निर्दलीय विधायकों ने भी राज्यसभा के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन को वोट दिया था- आशीष शर्मा (हमीरपुर), होशियार सिंह (डेहरा) और केएल ठाकुर (नालागढ़)। ये तीनों विधानसभा से इस्तीफा देकर भाजपा में जा चुके हैं। उनका इस्तीफा अब तक स्पीकर ने मंजूर नहीं किया है। वे इस्तीफा मंजूर करवाने के लिए पूरा जोर लगाए पड़े हैं ताकि उनकी सीटों पर जल्द से जल्द उपचुनाव हो सकें। इन्होंने हाइकोर्ट में केस भी लगा रखा है, सार्वजनिक प्रदर्शन भी किया है और इस्तीफे की मंजूरी के लिए वे राज्य‍पाल शिव प्रताप शुक्ला से भी मिल चुके हैं।

भाजपा की रणनीति बहुत आसान है। वह असेंबली में अपनी ताकत को बढ़ाने की फिराक में है ताकि कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ जाए और गिर जाए। इसलिए मुख्यमंत्री सुक्खू् के लिए दोहरी चुनौती है- एक, विधानसभा में अपने बहुमत का जुगाड़ करें और दूसरा, लोकसभा की सीटें जीतकर ले आएं।

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