भारतीय राजनीति में स्मृतियां बहुत काम आती हैं। जनवरी 1998 में जब सोनिया गांधी तमिलनाडु से अपनी राजनीति की शुरुआत करने जा रही थीं, 26 साल की एक लड़की ने सबका ध्यान अचानक खींच लिया था। लाल साड़ी बांधे छोटे घुंघराले बालों वाली उस लड़की ने कहा था, ‘‘आप सब कांग्रेस को वोट दें।’’ अपनी किताब 24 अकबर रोड में रशीद किदवई ने यह किस्सा लिखा है। वे कहते हैं, लोगों में गजब का पागलपन था। वे चिल्ला रहे थे, ‘‘वो रही हमारी कल की नेता।’’ प्रियंका गांधी आज भी अपनी दादी इंदिरा गांधी की दी हुई अंगूठी पहनती हैं। प्रियंका जहां जाती हैं, इंदिरा गांधी की याद दिलाती हैं।
स्मृतियां हमारी भावनाओं को उभारती हैं। झारखंड जैसे राज्य में, जहां राजनीतिक संघर्ष हमेशा से स्मृतियों का मोहताज रहा है, अतीत की छवियां वर्तमान की प्रतिक्रियाओं को उभारती है। जैसे यह सवाल, कि असली झारखंडी कौन? किस-किसने झारखंड आंदोलन में हिस्सा लिया था? इस धरती के साथ किसका जुड़ाव है? जो नाम एकबारगी उभर कर आते हैं, उनमें जयपाल सिंह मुंडा, बिनोद बिहारी महतो, एके रॉय और शिबू सोरेन प्रमुख हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने पोस्टरों और बैनरों में अपने ‘गुरुजी’ की तस्वीर लगाने में कभी नहीं चूकता। इस बार हालांकि जेल से निकलते हुए बढ़ी दाढ़ी वाले हेमंत सोरेन की तस्वीर ने गुरुजी की स्मृतियों को जिंदा कर दिया है।
झारखंड हाइकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से निकलते हुए हेमंत सोरेन की तस्वीर पूरे सूबे में चर्चा का विषय बन गई थी। चौड़ी मूंछें, लंबे बाल और घनी उजली दाढ़ी में वे बिलकुल अपने पिता की तरह दिख रहे थे। रांची में झामुमो के एक समर्थक ने गुरुजी के साथ बिताए दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘पहली बार जब मैंने उन्हें अपने चाचा के काज के लिए जेल से निकलते हुए देखा, तो एकदम चौंक गया। ऐसा लगा कि गुरुजी लौट आए हैं। बिलकुल वैसी ही ऊर्जा के साथ।’’
चुनाव से कुछ दिन पहले ही हेमंत और उनकी पत्नी कल्पना गुरुजी के पास उनका आशीर्वाद लेने गए थे। सोशल मीडिया पर शिबू सोरेन के साथ हेमंत की तस्वीर वायरल हो गई और लोगों में फिर दोनों के एक जैसे दिखने पर चर्चा छिड़ गई। ऐसा पहली बार नहीं है कि हेमंत अपने पिता शिबू सोरेन की परछाईं दिख रहे हों। बात 2004 की है जब शिबू सोरेन यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय कोयला और खनन मंत्री हुआ करते थे। वे अचानक दस दिन के लिए गायब हो गए थे जब 1986 के घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता पर उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट निकला था। जब वे दोबारा बाहर निकले, तो उन्होंने कहा कि वे छुपे नहीं थे, ‘अपने लोगों से’ गांवों और जंगलों में मिलने गए थे। सामने आने के बाद उन्होंने मीडिया से कहा, ‘‘फासिस्ट भाजपा ने मीडिया के साथ मिलकर मुझे भगोड़ा कहा है। भाजपा कह रही है कि मैं भाग कर छुप गया था। क्रांतिकारी लोग भागते नहीं हैं। मैं तो लोगों को भाजपा की साजिश के बारे में बता रहा था।’’
बिलकुल ऐसा ही घटनाक्रम हेमंत के साथ जुड़ा है। वे 30 जनवरी को चौबीस घंटे के लिए कथित रूप से लापता हो गए थे। बाहर निकलने के ठीक अगले ही दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने भी भाजपा पर साजिश का आरोप लगाया। बाप-बेटा दोनों जेल गए, दोनों ने धमाकेदार वापसी की। इसलिए झामुमो का चुनावी मंत्र है ‘जस बाप तस बेटा।’