राजभवन और सरकार के बीच न सिर्फ दूरिया बढ़ रही हैं बल्कि रिश्ते तल्ख हो रहे हैं। विवाद खुलकर सामने आ गया है। टीएससी (ट्राइबल एडवाजरी कमेटी) के गठन के लिए हेमन्त सरकार ने चार जून को नई नियमावली अधिसूचित करते हुए सदस्यों के मनोनयन से राज्यपाल की भूमिका को खत्म किया तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष शिष्टमंडल लेकर राजभवन पहुंच गये। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंप कर सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया। भाजपा ने ज्ञापन में रूपा तिर्की की मौत की सीबीआइ से जांच की मांग भी की। रांची की रहने वाली रूपा तिर्की साहिबगंज जिला में महिला थाना प्रभारी के पद पर तैनात थी। बीते माह वह अपने सरकारी क्वार्टर में मृत मिली। जांच के लिए एसआइटी का गठन किया गया। पुलिस उसे आत्महत्या का मामला मान रही है। रुपा के परिजन, भाजपा के साथ साथ झामुमो और कांग्रेस के भी कुछ विधायक और अनेक जन संगठन मौत को संदिग्ध मानते हुए इसकी उच्चस्तरीय, सीबीआइ जांच की मांग कर रहे हैं। साहिबगंज से रांची और विभिन्न जिलों में इसको लेकर प्रदर्शन हुए, मानव श्रृंखला का भी निर्माण किया गया। रुपा के पिता ने इसे साजिशन हत्या का मामला मानते हुए सीबीआइ से जांच की मांग को लेकर रांची हाई कोर्ट में याचिका दायर की है, एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता तीर्थनाथ ने भी हाई कोर्ट में सीबीआइ जांच के लिए याचिका लगाई है। रुपा की मौत के तत्काल बाद पंकज मिश्रा का नाम भी उछला जो हेमन्त सोरेन के विधायक प्रतिनिधि हैं। नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री के करीबी को बचाने के लिए जांच को प्रभावित कर रही है, आत्महत्या ठहरा रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के नेतृत्व में शिष्टमंडल छह जून को राज्यपाल से मिला तो टीएसी के मुद्दे के साथ रुपा तिर्की मामले की सीबीआइ जांच की भी मांग की थी। बस अगले ही दिन राज्यपाल से रुपा तिर्की मामले पर बात के लिए पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा को राजभवन तलब कर लिया। घटना के बारे में जानकारी ली और सही दिशा में जांच करने का निर्देश दिया। और राजभवन ने इस संबंध में विज्ञप्ति भी जारी की गई। जिसमें कहा गया कि राज्यपाल ने डीजीपी को राजभवन बुलाकर साहिबगंज की महिला थाना प्रभारी रुपा तिर्की की संदेहास्पद मृत्यु की घटना के संदर्भ में किये जा रहे अनुसंधान की अद्यतन जानकारी प्राप्त की और अनुसंधान को सही दिशा प्रदान करने का निर्देश दिया।
डीजीपी को राजभवन बुलाना सत्ताधारी झामुमो को नागवार गुजरा। हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने डीजीपी को राजभवन तलब किया हो। मगर अभी के माहौल में डीजीपी को राजभवन बुलाने को दूसरे नजरिये से देखा। तत्काल झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने प्रेस कंफ्रेंस कर इसे संघीय ढांचे पर प्रहार करार दिया। उन्होंने इस मसले पर राजभवन की ओर से जारी विज्ञप्ति पर आपत्ति जाहिर की। कहा कि भाजपा की ओर से लगातार संघीय ढांचे पर प्रहार हो रहा है। भाजपा के प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बाद राज्यपाल का डीजीपी को बुलाकर कहना कि मामले की निष्पक्ष जांच करायी जाये, सही नहीं है। एसआइटी जांच कर रही है, सैंपल फोरेंसिक जांच के लिए हैदराबाद भेजा गया है, रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है। राज्यपाल डीजीपी को बुलाकर कहती हैं निष्पक्ष जांच होना चाहिए, हम भी तो निष्पक्ष जांच चाहते हैं। राजभवन की विज्ञप्ति में कहा जाना कि जांच संदेहास्पद है अजीब स्थिति उत्पन्न करता है। राज्य का संवैधानिक मुखिया इस तरह की बात करे तो जो आज पश्चिम बंगाल, दिल्ली और दमन दीव में जो चल रहा है, कहीं वैसी स्थिति यहां भी न उत्पन्न न हो जाये। राज्यपाल का पद गरिमा का पद है और राज्य सरकार के जो सलाह मशविरे हैं उसको लेकर बढ़ने का पद है। कोई भी राज्यपाल हो किसी भी राज्य का हो, अपने पावर का इस्तेमाल कैबिनेट की सहमति के बिना नहीं कर सकता। यहां ऐसी क्या बात हो जाती है कि अवकाश के दिन राजभवन के दरवाजे खोल दिये जाते हैं वह भी उस मुद्दे पर जिस पर उनकी सहमति से कैबिनेट ने निर्मण लेने का काम किया। ये चीजें सही नहीं हो रही। भाजपा इस राज्य को जो महामारी से गुजर अपने स्थल पर लौटने को आतुर है तो शासन और समाज को अस्थिर करने की भाजपा की मंशा नापाक है। धृणित काम है। हमलोगों को निश्चित तौर पर समझना पड़ेगा कि कौन लोग हैं जो चुनी हुई सरकार को प्रश्न चिहृन के दायरे में ला रहे हैं। जो सरकार लोगों की भलाई, स्वास्थ्य, सुरक्षा के लिए संकल्पित को डिस्टर्ब करने का काम किया जा रहा है।
सुप्रियो ने कहा कि भाजपा नेताओं के लिए राजभवन के दरवाजे अवकाश के दिन भी खोल दिये जाते हैं। विगत दिनों सरकार से सलाह के बिना एकतरफा कोल्हान विवि में सीनेट सिंडिकेट में भाजपा के लोगों को मनोनीत कर दिया गया। कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के कार्यकाल का विस्तार कर दिया गया।
टीएसी नियमावली की अधिसूचना पढ़ते हुए कहा कि राज्य सरकार का सभी काम राज्यपाल के नाम पर ही होता है। और संविधान के प्रावधान के तहत जो राज्यपाल है वही राज्य की सरकार भी है, उन्हीं की मर्जी के अनुसार नियमावली में ये बदलाव किये गये हैं। भाजपा का शिष्टमंडल अचानक रविवार को राजभवन चला गया, टीएसी रूल्स पर कहने लगे कि यह अधिकार कैबिनेट को नहीं है, यह राज्यपाल के अधिकार पर अतिक्रमण है। गलत तथ्य की जानकारी प्रेस के माध्यम से दी गई, राज्यपाल को भी बरगलाया गया। यह छुपाया गया कि 2006 में जब रमण सिंह की सरकार आई उस समय उन्होंने इसी तरह छत्तीसगढ़ में टीएसी नियमावली में संशोधन किया था। इसी प्रकार की अधिसूचना जारी हुई थी। इसके पीआइएल किया गया। छत्तीस गढ़ हाई कोर्ट ने जायज करार दिया। सुप्रिम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई तो इसे एडमिट ही नहीं किया। जब रमण सिंह ने यह फैसला लिया केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी, कोई विवाद नहीं हुआ। आज विवाद का विषय बनाया जा रहा है। 2019 में सरकार बनने के बाद दो बार राज्यपाल के पास टीएसी सदस्यों के लिए नाम भेजा मगर राज्यपाल ने उसे लौटा दिया। परंपरा और संवैधानिक प्रावधान भी है कि राज्य सरका के परामर्श पर काम करना। दो बार नाम लौटाना दर्शाता था कि राजभवन शायद इस सरकार के आसीन होने खुश नहीं है। इसलिए संवैधानिक प्रावधानों के तहत कानून बनाना पड़ा। टीएसी अध्यक्ष भी ट्राइबल होना चाहिए मगर पूर्व में राज्यपाल ने इस पर ध्यान नहीं दिया।