झारखंड प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और हेमन्त सरकार में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव इन दिनों चर्चा में हैं। ताजा चर्चा इसलिए कि भाजपा विधायक पूर्व मंत्री भानू प्रताप शाही ने रामेश्वर उरांव की तस्वीर लगाते हुए फेसबुक पर पोस्ट किया कि रामेश्वर चाचा का भाजपा में स्वागत है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भागत की कांग्रेस में वापसी के तत्काल बाद भानू प्रताप शाही का यह पोस्ट आया। तुरंत ही शाही ने एक लंबा पोस्ट और लिख मारा। इसके अपने मायने हो सकते हैं। रामेश्वर उरांव इसे गंभीरता से नहीं लेते। मजाकिया अंदाज में कहते हैं कि हम दोनों का घर पलामू में एक ही जगह है। भानू मुझे चाचा बोलते हैं और मैं भतीजा बोलता हूं। हंसी मजाक चलता रहता है जीवन में। काहे को सीरियस रहा जाये। सुखदेव भगत को तो अब 14 सदस्यीय को आर्डिनेशन कमेटी में शामिल कर उनका महत्व और बढ़ा दिया गया है। ऐसे में रामेश्वर उरांव ने असहज होना अस्वाभाविक नहीं है।
रामेश्वर उरांव के खिलाफ लड़े थे सुखदेव
दरअसल 2019 के विधानसभा चुनाव के एन मौके पर सुखदेव भगत लोहरदगा सीट से टिकट कटने पर कांग्रेस को छोड़ धुर विरोधी भाजपा में शामिल हो गये और लोहरदगा सीट से ही भाजपा उम्मीदवार के रूप में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव से चुनाव लड़ गये। हालांकि उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में कांग्रेस में वापसी के रास्ते तलाशने लगे मगर रामेश्वर उरांव रोड़ा बने रहे। अंतत: अक्टूबर 2020 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण भाजपा ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। रामेश्वर उरांव की यह राजनीतिक कर्म भूमि रही। एक उम्र पार कर चुके रामेश्वर उरांव अब अपने पुत्र रोहित के लिए जमीन तलाश रहे हैं। जब सुखदेव भगत ने कांग्रेस से बाहर का रास्ता देखा तब प्रदेश अध्यक्ष के रूप में रामेश्वर उरांव ने सुखदेव के आधा दर्जन खास लोगों को भी पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया था। राज्य प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आये सुखदेव भगत लोहरदगा से विधायक रह चुके हैं। जाहिर है ऐसे में सुखदेव भगत की वापसी को लेकर रामेश्वर उरांव सहज नहीं महसूस कर रहे होंगे। एक व्यक्ति एक पद के हवाले कुछ माह पहले रामेश्वर उरांव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से मुक्त कर दिया गया था।
रामेश्वर उरांव के गृह जिला पलामू के भवनाथपुर से भाजपा विधायक और रघुवर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे भानू प्रताप शाही ने उसी संदर्भ को लेकर लंबी टिप्पणी फेसबुक पर की।
भानू प्रताप शाही का पोस्ट
शाही ने लिखा कि '' ... आप अनुभवी हैं, बातों को समझ ही रहे होंगे कि कैसे आपको कांग्रेस किस्तों में किनारे लगाने का काम कर रही है, इनाम की जगह आपको अपमानित किया जा रहा है। आपके नेतृत्व में ही झारखंड बनने के बाद कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2019 के विधानसभा चुनाव में रहा। पर आपको इसका ईनाम मिला ? आप खुद सोचिये पहले आपको प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, खैर एक व्यक्ति एक पद की नीति के तहत ऐसा हुआ, पर हद तो यह है आपके धुर विरोधियों को पार्टी में उच्च आसान दे दिया गया, आप चुप हैं क्योंकि आपकी अब कोई सुन नही रहा है ? यह काग्रेंस है चाचा, यहां प्रतिभा की क्रद नही होती बस यूज एंड थ्रो की नीति पर काम होता है, अब बस इसकी घोषणा सुनने के लिए आप यदि पार्टी में हैं कि आप अगले चुनाव लड़ने के लिए फिट नही कह कर आपका टिकट भी काट दिया जाये तो ठीक ही है ! अभी वक्त है चाचा कुछ सोचिए नही तो देर हो जायेगी, यह सलाह हम भाजपा के नेता या विधायक होने के नाते नही दे रहे हैं, बल्कि आपकी जन्मभूमि पलामू ही है और मेरी भी ऐसे में एक ही इलाके का होने के नाते आपके खिलाफ कांग्रेस द्वारा किये जा रहे राजनीतिक साजिश को देख कर अंत्यत पीड़ा हुई इसलिए अपनी भावना व्यक्त कर रहा हूं। कृपया आप इसे अन्यथा नही लेंगे, पलामू का पानी तो जुल्म और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने का रहा है .....इसका राजनीतिक मायने न निकालें। .....यह मसला पलामू प्रमंडल के मान-सम्मान, स्वाभिमान का है इसलिए चुप्पी तोड़िये रामेश्वर चाचा क्योंकि वीर इतिहास रटते नही बल्कि रचते है।
तब राजद और भाजपा ने डाले थे डोरे
भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे रामेश्वर उरांव ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि सेवा का करीब साढ़े तीन साल शेष था। समाज की सेवा के लिए त्यागपत्र देकर राजनीति में आने का फैसला किया। बिहार में पोस्टिंग के दौरा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से बहुत अच्छा संबंध रहा। जब उन्हें पता चला की राजनीति में आ रहा हूं। उन्होंने राजद में शामिल होने का आमंत्रण दिया। झारखंड का प्रदेश अध्यक्ष और राज्य सभा सदस्य बनाने का ऑफर दिया। मैंने मन ही मन उनके ऑफर को इनकार कर दिया। हालांकि लालू प्रसाद के ही बहुत खास रहे उनके तत्कालीन प्रधान सचिव मुकुंद प्रसाद की राय थी कि क्षेत्रीय पार्टी नहीं नेशनल पार्टी ज्वाइन करें। भाजपा से भी आमंत्रण मिला। झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी उस समय पार्टी के प्रदेश में सबसे मजबूत नेता थे, सरयू राय ने भी पहल की।
शिबू सोरेन की झिड़की
कांग्रेस में शामिल होने के बाद झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की झिड़की भी सुननी पड़ी। गुरुजी मुझे पकड़े रहते थे। कहा, रामेश्वर बाबू मैं आपको इतना मानता हूं। और आप उधर चले गये। मेरा उत्तर था, झारखंड में ही रहूंगा न, साथ मिलकर काम करेंगे।
कांग्रेस से लगाव सोनिया का प्रभाव
रामेश्वर उरांव कहते हैं कि मेरा परिवार शुरू से कांग्रेसी रहा, पिता चाचा सब। इसकी धर्म निरेपक्षता की नीति से प्रभावित था। कांग्रेस यह छोटे धर्म के लोगों का बचाव करती रहती है, सामाजिक सौहार्द पर इसका विश्वास था।
एडीजी के रूप में सोनिया से मुलाकात
किसी राष्ट्रीय पार्टी में जाने का मन बना चुका था। कांग्रेस पसंद था। सोनिया गांधी के नेतृत्व के प्रति आस्था थी। .... एडीजी के पद पर तैनात था। उसी समय सोनिया गांधी से मिला। करीब 15 मिनट तक उनसे बात हुई। और उसके बाद मैं पूरा कांग्रेसी हो गया। उम्र के इस पड़ाव पर अब और कहां।