सूत्रों के मुताबिक पहले विलय के लिए तैयार लालू यादव ने जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन किया तब राजनीतिक परिस्थितयां कुछ आैर थी। लेकिन कुछ समय बाद जब सियासी आकलन हुआ तो परिणाम यह निकला की विलय से राजद को कम जदयू को ज्यादा फायदा होगा और बिहार की कमान पूरी तरह से नीतीश कुमार के हाथ चली जाएगी। सूत्र बताते हैं कि लालू यादव ने सभी सियासी स्थितियां देखने के बाद तय किया कि विलय नहीं होना चाहिए। लेकिन सीधे तौर पर कह नहीं सकते। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का सहारा लेना पड़ा कि अगर मांझी साथ आ जाते हैं तो बिहार में भाजपा को शिकस्त दी जा सकती हैँ।
लालू यादव के नजदीकी सूत्रों के मुताबिक विलय का सारा गणित इसलिए बदला कि बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां दो क्षेत्रीय दलों को एक होना था। बाकी जनता परिवार में विलय हो रहे दलों का अपने-अपने राज्य में अकेले का वजूद था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और कर्नाटक में जनता दल (एस) का अकेले का वजूद है। ऐसे में बिहार ही अकेला राज्य है जहां दो दलों का विलय मुश्किल हो रहा है। लालू यादव के सलाहकारों ने एक बात स्पष्ट किया कि अगर राजद-जदयू का विलय हो गया तो लालू यादव का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। क्योंकि वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं और परिवार के सदस्य अभी सियासी परिपक्व नहीं है।
ऐसे में लालू यादव विलय की जगह गठबंधन चाह रहे हैं ताकि राजद का वजूद बना रहे। सूत्रों के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राजद और जद यू तभी एक साथ होंगे जब सीटों का बंटवारा सही तरीके से होगा। अगर जद यू सीटों पर राजी नहीं होता तो मांझी को अपने साथ लाकर लालू विधानसभा में सामाजिक न्याय के नाम पर चुनाव मैदान में होंगे और इनका साथ राजद से निष्कासित सांसद पप्पू यादव भी देंगे।