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उत्तराधिकारी को लेकर जंग

राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव का उत्तराधिकारी कौन होगा, इसको लेकर परिवार के अंदर और परिवार के बाहर खींचतान चल रही है। लालू ने साल 2010 के विधानसभा चुनाव में अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
उत्तराधिकारी को लेकर जंग

उस समय तेजस्वी मंच पर लालू यादव के साथ हर चुनावी सभा में नजर आते रहे। उम्र कम होने के कारण तेजस्वी चुनाव तो नहीं लड़ सके लेकिन उनकी बढ़ती राजनीतिक मंशा पर संशय के बादल मंडराने लगे। और लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती राजद के युवा नेता के तौर पर सियासत के मैदान में नजर आने लगीं। उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और हार गईं। उसके बाद से ही परिवार में राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर जंग जारी है। अब लालू का असली उत्तराधिकारी कौन होगा, इसको लेकर सवाल होने लगे। लालू की ही पार्टी से सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने जब यह घोषणा कर दी कि वही असली उत्तराधिकारी हैं तो यह बहस तेज हो गई कि उत्तराधिकारी का दावा कौन ठोकेगा? 

पप्पू आउटलुक से कहते हैं कि लालू का राजनीतिक शिष्य होने के नाते राजनीतिक उत्तराधिकारी वही हैं। लेकिन पप्पू के इन शब्दों को लालू यादव सिरे से खारिज कर देते हैं। लालू कहते है कि उनका बेटा ही उनका वारिस होगा और पप्पू मेरा बेटा नहीं है। लेकिन अब लालू यादव का असली उत्तराधिकारी कौन होगा? लालू किसी बेटे का नाम नहीं लेते। अब यहां सवाल है कि कौन सा बेटा उत्तराधिकारी होगा, बड़ा तेजप्रताप या छोटा तेजस्वी। लालू के करीबी सूत्रों का दावा है कि मीसा भारती भी उत्तराधिकारी के तौर पर अपने को प्रचारित कर रही हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद भी मीसा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और बढ़ गई है। खबरें यहां तक चलीं कि अगर राजद नीतीश कुमार की सरकार में शामिल होता तो मीसा को उपमुख्य‍मंत्री बनाया जाता। लेकिन यह हो नहीं सका। बताया जा रहा है कि परिवार में लालू और राबड़ी देवी के बाद नंबर एक कौन होगा, इसको लेकर जंग चल रही है। लालू चाहते हैं कि तेजस्वी को राजनीतिक कमान दी जाए तो राबड़ी बड़े बेटे तेजप्रताप पर भरोसा जता रही हैं। वहीं मीसा भारती भी दावा कर रही हैं कि परिवार में बड़ा सदस्य होने के नाते उन्हें कमान दी जाए। अब सवाल यह है कि अगर राजद और जनता दल (यूनाइटेड) का विलय हो गया तो लालू यादव की क्या भूमिका रह जाएगी। लालू चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकते। इसलिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि विधानसभा चुनाव में राजद का चेहरा कौन होगा। मीसा की इच्छा है कि वह विधानसभा चुनाव लड़ें वहीं राबड़ी चाहती हैं कि दोनों बेटे, एक सोनपुर से तो दूसरा राघोपुर से, विधानसभा चुनाव लड़ें। अगर ऐसा हुआ तो एक बात साफ हो जाएगी कि इन दोनों में से ही किसी एक को परिवार आगे बढ़ाएगा। वहीं चुनाव न लड़ पाने की स्थिति में मीसा को यह संदेश भी मिल जाएगा कि परिवार का असली वारिस बेटा ही होगा।
उधर पप्पू यादव राजद प्रमुख पर लगातार निशाना साध रहे हैं। पप्पू कहते हैं कि लालू जी को यह समझना चाहिए कि यह राजतंत्र नहीं है कि उन्होने वारिस का फैसला कर लिया। लोकतंत्र में राजनीतिक वारिस का फैसला जनता करती है। पप्पू कहते हैं कि राजनीति में पिता के लिए पुत्र को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना जरूरी होता तो चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर या अन्य नेता अपने बेटों को अपना राजनीतिक वारिस बना देते। उत्तराधिकारी की इस जंग पर अब सियासी दल भी चुटकी लेने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं कि भाजपा को छोडक़र बाकी सभी दलों के प्रमुख अपने उत्तराधिकारी को स्थापित करने में लगे हुए हैं। लेकिन जनता सबकुछ जानती है। उधर पूर्व मुख्य‍मंत्री जीतनराम मांझी कहते हैं कि यह राजतंत्र में होता था कि राजा अपने पुत्र को सत्ता का उत्तराधिकारी घोषित करता था। अब लालू प्रसाद अपने पुत्र को उत्तराधिकारी बता रहे हैं। मांझी कहते हैं कि अगर राजद और जदयू का विलय होकर नई पार्टी गठित होगी तो जनता दल यूनाइटेड पर उनका दावा होगा। मांझी के मुताबिक हिंदुस्तान अवामी मोर्चा कोई राजनीतिक दल नहीं बल्कि मोर्चा है।

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