करीब 50 वर्षों के अपने राजनीतिक करियर में नीतीश कुमार ने हर बार संदेह और आलोचना के दौर से उबरकर ‘फीनिक्स’ की तरह फिर से उठ खड़े होने की अद्भुत क्षमता दिखाई है।
मंडल राजनीति के बाद उभरने वाले नेताओं में सबसे अलग रहे नीतीश कुमार ने प्रशासनिक कमियों को दूर करने की दक्षता दिखाई, जबकि उन्हीं के समय के कई नेता इस मामले में पीछे रह गए। आलोचक अक्सर उन पर अवसरवाद की राजनीति करने का आरोप लगाते रहे हैं।
इसे राजनीतिक अवसरवाद कहें या दूरदर्शिता, नीतीश की रणनीति की वजह से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब तक राज्य में अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी बहुत मजबूत है और हालिया विधानसभा चुनाव में 89 सीट जीती है, जबकि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को 85 सीटें मिलीं।
कुमार देश के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले 10 मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं। वह कुल 19 वर्षों से सत्ता में हैं।
राजनीतिक पाला बदलने की आदत के कारण उन्हें आलोचक और विरोधी दलों के नेता ‘पलटू राम’ कहने लगे, जबकि सुशासन के लिए उनकी लोकप्रियता ‘सुशासन बाबू’ के नाम से भी है।
पिछले साल के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी जदयू ने भाजपा से बेहतर ‘स्ट्राइक रेट’ दर्ज किया। दोनों ने बराबर सीटें जीतीं, जबकि जदयू ने एक कम सीट पर चुनाव लड़ा था। केंद्र में बहुमत न होने के कारण भाजपा गठबंधन के इस सहयोगी दल पर निर्भर है।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद और जेपी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने के पश्चात, कुमार ने राज्य बिजली विभाग की नौकरी ठुकराकर राजनीति में कदम रखा। उनका यह कदम बिहार के युवाओं में सरकारी नौकरी के प्रति गहरे आकर्षण को देखते हुए एक असामान्य कदम ही था।
लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के साथ जेपी आंदोलन के सहयात्री होने के बावजूद चुनावी सफलता उन्हें लंबे समय तक नहीं मिली।
वह पहली बार 1985 में हरनौत से लोक दल के उम्मीदवार के रूप में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
इसके चार साल बाद, वह बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए, जबकि सारण से तत्कालीन सांसद लालू प्रसाद ने बिहार की राजनीति में कदम रखते हुए मुख्यमंत्री पद संभाला और तेजी से ऊंचाई हासिल की।
अगले डेढ़ दशक में लालू प्रसाद राज्य के सबसे प्रभावशाली लेकिन विवादित नेताओं में से एक बनकर उभरे। चारा घोटाले में नाम आने के बाद उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी।
उधर, इसी अवधि में नीतीश कुमार ने लालू से दूरी बनाई, समता पार्टी बनाई और अपने राजनीतिक आधार को मजबूत किया। समता पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और कुमार ने संसद में अपनी प्रभावशाली कार्यशैली से अलग पहचान बनाई।
जनता दल के अध्यक्ष रहे शरद यादव और लालू प्रसाद के बीच मतभेद के चलते लालू ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बनाया। बाद में समता पार्टी का विलय शरद यादव के जनता दल में हुआ और भाजपा के साथ उसका गठबंधन जारी रहा।
साल 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के केंद्र की सत्ता से हटने के बाद बिहार में जीत ने भाजपा-जदयू गठबंधन को नए सिरे से शक्ति दी।
फरवरी 2005 के विधानसभा चुनावों के बाद राजग बहुमत से चूक गई थी। उस समय केंद्र में भी सत्तारूढ़ राजद-कांग्रेस के गठजोड़ से बिहार की सत्ता पाने की राजग की कोशिशों में तब गतिरोध पैदा हो गया, जब तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त के मद्देनजर विधानसभा भंग करने का विवादास्पद फैसला लिया।
हालांकि, यह फैसला कुमार के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ और नौ महीने बाद हुए चुनाव में जदयू-भाजपा गठबंधन को बहुमत मिला और ‘लालू युग’ का अंत हुआ। मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के पहले पांच वर्ष कानून व्यवस्था में सुधार के लिए याद किए जाते हैं।
लालू की तुलना में कम जनसंख्या वाले जातीय समूह से आने वाले कुमार ने अतिपिछड़ा और महादलित जैसी श्रेणियां बनाकर नए सामाजिक समीकरण तैयार किए। स्कूली लड़कियों के लिए साइकिल और ड्रेस देने जैसी योजनाओं ने उन्हें 2010 में प्रचंड बहुमत दिलाया।
साल 2013 में नरेन्द्र मोदी को भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने के बाद नीतीश ने भाजपा से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया।
कांग्रेस के समर्थन से विश्वास मत जीतने के बावजूद 2014 में लोकसभा में जदयू के कमजोर प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। एक वर्ष से कम समय में वह फिर मुख्यमंत्री बन गए। कभी अपने ही विश्वस्त रहे जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उन्होंने इस बार राजद और कांग्रेस के समर्थन से सत्ता संभाली। यह महागठबंधन 2017 के चुनाव में जीत तो गया, लेकिन दो वर्ष बाद तेजस्वी यादव के खिलाफ उभरे कथित भ्रष्टाचार के मामले पर मतभेद के कारण टूट गया।
कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और 24 घंटे से भी कम समय में भाजपा के समर्थन से फिर मुख्यमंत्री बन गए। 2022 में उन्होंने भाजपा पर जदयू को तोड़ने का आरोप लगाते हुए गठबंधन खत्म कर दिया और राजद, कांग्रेस तथा वाम दलों के साथ मिलकर नया विपक्षी गठजोड़ ‘इंडिया’ बनाया। हालांकि, इस मोर्चे में उचित महत्व नहीं दिये जाने की अटकलों के बीच उन्होंने इसे भी छोड़ दिया और राजग ने उन्हें दोबारा खुले दिल से वापस स्वीकार कर लिया।
(पीटीआई इनपुट के साथ)