बिहार में वर्ष 2005 से भाजपा के साथ सत्ता में आए नीतीश कुमार को अब जाकर संघ के खतरे का एहसास हुआ तो उन्होंने संघ मुक्त भारत का नारा दे दिया। लेकिन जमीनी स्तर पर नीतीश का यह नारा केवल राजनीतिक जुमलेबाजी ही साबित होता दिख रहा है। लगभग 11 साल के नीतीश के शासन काल में बिहार में संघ की शाखाओं में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। शुक्रवार को संघ क्षेत्र कार्यवाह (बिहार-झारखंड) मोहन सिंह ने बताया कि बिहार में संघ की शाखाओं में आशा के अनुरूप वृद्धि हुई है। राज्य में अभी कुल 1429 शाखाएं चल रही हैं, जिनमें से 966 उत्तर बिहार में और 463 दक्षिण बिहार में हैं। उन्होंने बताया, मार्च की तुलना में यह बढ़ोतरी सात से आठ फीसद है। देश में शाखाओं की संख्या 52 हजार 102 है, जो पिछले मार्च में 48 हजार थी। आंकड़े नीतीश कुमार के नारे को बिल्कुल उलट गवाही दे रहे हैं। ऐसे में नीतीश की अपने नारे के प्रति गंभीरता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
सिंह के मुताबिक, बिहार सरकार की तुष्टीकरण नीति पराकाष्ठा पर पहुंच गई है। इस कारण राज्य में सांप्रदायिक तनाव के मामले बढ़े हैं। हद तो यह कि दुर्गापूजा पर प्रतिमाएं एक दिन पहले ही विसर्जित करा दी जाती हैं। तर्क यह कि ऐसा मुहर्रम पर शांति बनाए रखने के लिए हो रहा है। लेकिन ऐन मुहर्रम के दिन बिहार में 20 से अधिक जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई। मोहन सिंह ने कहा कि संघ के कार्यकर्ताओं को लक्षित करके हमले हो रहे हैं। हैदराबाद में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में दो प्रस्ताव पास हुए। पहले प्रस्ताव में केरल में कम्युनिस्टों द्वारा निर्बाध गति से जारी हिंसा पर चर्चा हुई। उनके मुताबिक केरल में 1942 से संघ ने काम शुरू किया। तब से लेकर अब तक 250 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। ऐसा कम्युनिस्ट सरकारों की नीति के कारण हुआ।