पार्टी से खुली छूट और भरपूर संभावनाओं के बावजूद विधानसभा चुनाव में हार शायद कमलनाथ को भारी पड़ी
मध्य प्रदेश में पिछले पखवाड़े वह सब कुछ हुआ जो शायद पिछले कई दशकों में नहीं हुआ। कांग्रेस कार्यालय में एकाएक ताला जड़ दिया गया, प्रदेश के सभी नेताओं, विधायकों ने अपने मोबाइल या तो बंद कर लिए या उठाने से बचते रहे। गलती से किसी ने उठा लिया तो कहा- अभी बाहर हूं, या व्यस्त हूं, मीटिंग में हूं, या फिर ... साहब पूजा में बैठे है। यह सिलसिला करीब चार-पांच दिनों तक भोपाल और नई दिल्ली में चलता रहा। आखिर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जैसे पुराने दिग्गज और उनके बेटे, छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ के भाजपा में जाने की अटकलें चल रही थीं, जो कमलनाथ की चुप्पी या फिर इस बयान से गहरा गया था कि न इधर, न उधर, जो होगा बता देंगे। लेकिन आखिर नाथ के कदम फिलहाल कमल की ओर नहीं बढ़े। अब वे ग्वालियर में 2 मार्च को राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होंगे।
दरअसल इस राजनैतिक गहमागमी की शुरुआत दिसंबर में 2023 विधानसभा के नतीजों के साथ हुई। मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की जीत की संभावनाओं के बावजूद हार के बाद कमलनाथ का रुतबा दिल्ली से लेकर प्रदेश में कमजोर हो गया। हार के बाद दिल्ली में पार्टी की बैठक में चुनाव में उनकी भूमिका पर कई सवाल उठे। सूत्रों की मानें तो जबाब में उन्होंने चुनाव में हुए निजी खर्च तक का ब्यौरा पेश कर दिया। फिर भी, इस वाकये से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे कहे जाने वाले कमलनाथ का कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार से रिश्तों खटास घुल गई।
जानकारों के मुताबिक, इस घटनाक्रम को 2023 के विधानसभा चुनाव नतीजों के साथ भाजपा की रणनीति के संदर्भ में भी देखने की दरकार है। भाजपा ने जुलाई 2022 में ही 2024 लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड सीटें जीतने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया था, क्योंकि वह एक भी सीट घटने का जोखिम नहीं उठा सकती। इसके लिए 2023 के विधानसभा चुनाव भी जीतना जरूरी था, जो 2018 में वह हार चुकी थी। वह तो 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायकों के पाला बदल लेने से उसकी सरकार दोबारा बन गई थी। इसलिए पार्टी ने दो तरह की रणनीति बनाई। उन 161 विधानसभा सीटों को छांटा गया, जहां भाजपा कभी जीती तो कभी हारी। उसके बाद 141 सीटें ऐसी थीं, जहां पार्टी का प्रदर्शन लगातार कमजोर रहा था। इस क्रम में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट भी आती है। भाजपा जनसंघ के दौर यानी 1952 से ही छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर जीत के लिए तरस रही है। 1997 के उप-चुनाव में जरूर पूर्व मुख्यमत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को मात दे दी थी, लेकिन उसके अगले साल हुए आम चुनाव में पटवा भी हार गए।
इसलिए पार्टी ने इस बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को अपने टारगेट में लिया। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा और छत्तीसगढ़ की कोरबा सीट जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई। गिरिराज सिंह मार्च 2023 में 6 दिन छिंदवाड़ा के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जाकर रुके। उनके अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी काफी सक्रिय रहे। प्रहलाद पटेल इस लोकसभा सीट पर कमलनाथ को टक्कर दे चुके हैं। यही नहीं, भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के उप-मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, अमेठी का किला भेदने के रणनीतिकार अशोक यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित दूसरे बड़े नेताओं को भी वहां प्रचार करने के लिए भेजा।
2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छिंदवाड़ा की सभी सात सीटों पर मजबूत प्रत्याशी उतारे थे। अमरवाड़ा में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बड़े नेता रहे मनमोहन शाह की बेटी मोनिका बट्टी को प्रत्याशी बनाया। न्यायाधीश के पद से इस्तीफा देने वाले प्रकाश उइके को पांढुर्णा से प्रत्याशी बनाया। पांढुर्णा को अलग जिला भी बना दिया गया। छिंदवाड़ा की दो विधानसभा इस नए जिले में शामिल कर दी गई। लेकिन परिणाम आया तो पार्टी छिंदवाड़ा की सभी सातों सीटों पर हार गई। भले ही उसे प्रदेश में 163 सीटें मिल गई हों।
कांग्रेस के लिए भी सकारात्मक नैरेटिव और 2024 के लोकसभा चुनावों में अच्छे नतीजे के लिए विधानसभा चुनावों में जीत बेहद अहम थी। इसलिए कांग्रेस अलाकमान ने कमलनाथ को खुली छूट दी थी, और विपक्षी इंडिया ब्लॉक में कई सहयोगियों की नाराजगी भी झेली। लेकिन नतीजे उलटे आए तो नजला कमलनाथ पर गिरना ही था। हार के बाद कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष पद युवा जीतू पटवारी को देकर कमलनाथ को कई संकेत दे दिए। हालांकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ की हार के लिए क्रमशः अशोक गहलोत और भूपेश बघेल के साथ वही रवैया नहीं दिखा।
वजह शायद यह है कि कमलनाथ ने न सिर्फ केंद्रीय पार्टी के रणनीतिकारों की एक बात नहीं सुनी और अक्टूबर में तय इंडिया ब्लॉक की भोपाल पहली साझा सभा के आयोजन से भी इनकार कर दिया, क्योंकि वे नरम हिंदुत्व की नीति पर चलने की ठान चुके थे। इसका खामियाजा कांग्रेस को इंडिया ब्लॉक में खटास के रूप में भी उठाना पड़ा। विपक्ष के पक्ष में बन रहा नैरेटिव पलटने लगा।
शायद इन वजहों से कमलनाथ न सिर्फ गांधी परिवार, बल्कि विपक्ष के खेमे में भी संदिग्ध नजर से देखे जाने लगे। छिंदवाड़ा में अदाणी समूह के संयंत्रों और उनके संबंधों को लेकर भी सवाल उठे। जाहिर है, ऐसे में कमलनाथ और बेटे नकुल असहज महसूस करने लगे थे। इसी दौरान कमलनाथ अपने पांच दिन का छिंदवाड़ा का दौरा रद्द कर दिल्ली पहुंच गए। फिर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने कह दिया कि कमलनाथ का पार्टी में स्वागत है। शर्मा ने भोपाल में पत्रकार वार्ता कहा, “कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के निमंत्रण को खारिज कर दिया। कांग्रेस में ऐसे लोग हैं, जिनको इससे दुख हुआ है और हमें लगता है कि उन्हें मौका मिलना चाहिए। आप जिसका नाम ले रहे हैं (कमलनाथ) अगर उन्हें भी दुख है तो उनका स्वागत है।”
उधर, कमलनाथ अपने विश्वासपात्रों और कम से कम एक दर्जन विधायकों के साथ दिल्ली में डटे हुए रहे। बताया गया कि उनमें से कम से कम तीन विधायक छिंदवाड़ा से थे जबकि बाकी अलग-अलग जगहों से। कमलनाथ मुंह सिए हुए थे। चौथे दिन उनके भरोसेमंद पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने दावा किया कि कमलनाथ कहीं नहीं जा रहे हैं। लगे हाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी कमलनाथ के हवाले से दावा किया कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं। उधर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने एक्स हैंडल पर वीडियो पोस्ट कर विधायकों की पार्टी के प्रति भावना, एकजुटता और धैर्य का परिचय देने को प्रशंसनीय बताया। उमंग ने एक्स हैंडल पर वीडियो पोस्ट में कहा, “सदन में जिस तरह सरकार को एकजुटता के साथ घेरा और संयुक्त रूप से खड़े रहे, उसे लेकर आपको सैल्यूट करता हूं।”
उधर, भाजपा से भी उलटे संकेत आने लगे। वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने मीडिया से कहा, “कमलनाथ समझदार नेता हैं, वे अपने मैनेजमेंट के लिए पहचाने जाते हैं। वे कैसे धोखा खा गए यह समझ में नहीं आ रहा है। कमलनाथ की जरूरत भाजपा को न कल थी, न कल होगी।”
जो भी हो इस मामले में कांग्रेस, कमलनाथ और गांधी परिवार अपनी चुप्पी राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के मध्य प्रदेश प्रवेश के साथ तोड़ने जा रही है। दो मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना से प्रवेश होने वाली इस यात्रा में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रदेश पूरी यात्रा में राहुल गांधी के साथ जुड़े रहने वाले हैं। देखना है, अब यह याराना कब तक और क्या काम बना पाता है।