शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में सोमवार को कहा गया है कि, इस्लामी यादव सरकार ने कहा है कि गुलाम अली को हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम करने को आमंत्रित किया गया है। लेकिन एकता को प्रोत्साहित करने के लिए किसी को केवल पाकिस्तानी कलाकारों की क्या जरूरत है? हमारे देश में भी बेहतरीन मुस्लिम कलाकार हैं जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। संपादकीय में कहा गया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यादव सरकार ने तुष्टीकरण की राजनीति खेलते हुए राष्ट्र विरोधी कारोबार शुरू कर दिया है। यह विडंबना है कि एक तरफ आईएसआईएस भारत सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है तो दूसरी तरफ यादव ने उत्तरप्रदेश को इस्लामी राज्य बना दिया है और गुलाम अली का स्वागत कर रहे हैं।
उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार पर निशाना साधते हुए शिवसेना की ओर से संपादकीय में कहा गया है कि उत्तरप्रदेश कलाकारों की खान है लेकिन यादव (समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह) को केवल पाकिस्तान के कोयले में रूचि है। संपादकीय में आगे लिखा गया कि यादव कल को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के तहत हाफिज सईद को आमंत्रित कर सकते हैं। जो लोग यह सोचते हैं कि पठानकोट आतंकी हमले को भूल जाना चाहिए और गुलाम अली को कार्यक्रम पेश करने भारत आने देना चाहिए वे गद्दार हैं। अगर गुलाम अली को शहीद जवानों के परिवारों की पीड़ा के बीच कार्यक्रम करने आने की अनुमति दी गई तो इसके लिए जो लोग भी जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ राष्ट्र विरोधी गतिविधि के तहत मुकदमा चलाना चाहिए।
केंद्र और राज्य की सरकार में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भाजपा पर चुटकी लेते हुए अपने संपादकीय में जानना चाहा कि उत्तरप्रदेश में लोकसभा चुनाव में 71 सीट जीतने वाली पार्टी गुलाम अली के कार्यक्रम को लेकर मूकदर्शक क्यों बनी हुई है।