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पश्चिम बंगाल चुनावः दुविधा में लालू यादव किसका दें साथ ममता या सोनिया गांधी का

किंग मेकर के रूप में ख्‍यात राजद सुपीमो लालू प्रसाद पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को लेकर दुविधा में...
पश्चिम बंगाल चुनावः दुविधा में लालू यादव किसका दें साथ ममता या सोनिया गांधी का

किंग मेकर के रूप में ख्‍यात राजद सुपीमो लालू प्रसाद पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को लेकर दुविधा में हैं, ममता का साथ दें या कांग्रेस का। अप्रैल-मई में 294 सीटों पर वहां चुनाव होने हैं। एक दशक से सत्‍ता पर काबिज टीएमसी ( तृणमूल कांग्रेस) की चीफ ममता बनर्जी से उनके करीबी संबंध रहे हैं। अनेक मौकों पर भाजपा के खिलाफ ममता को राजद ने मदद भी की है। दूसरी तरफ बिहार में कांग्रेस और वामपंथी दलों का गठबंधन है। ऐसे में लालू प्रसाद के सामने दुविधा है कि किसका साथ दें ममता बनर्जी का या मैडम का।

लालू जहां कैद हैं उस झारखंड में झामुमो और कांग्रेस की सरकार है। राजद का सिर्फ एक विधायक है। भाजपा, बंगाल चुनाव को लेकर आक्रामक मुद्रा में है। अमित शाह लगातार निगरानी और दौरा कर रहे हैं तो टीएमसी और भाजपा के बीच का तनाव बीच-बीच में खूनी हो जाता है। ऐसे में सीधा टकराव टीएमसी और भाजपा के बीच दिख रहा है। देखना है कि लालू की प्राथमिकता क्‍या है भाजपा को कमजोर करना या अपने रिश्‍तों को बनाये रखना।

पशुपालन मामले में सजायाफ्ता राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार के कैदी हैं मगर इलाज के लिए लंबे समय में रिम्‍स में भर्ती हैं। हाल में गुजरे बिहार चुनाव में भी मामला फंसता था तो अंतिम निर्णय रांची से ही होता था। हालांकि फ्रंट फुट पर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और लालू प्रसाद के छोटे पुत्र हैं। बिहार चुनाव में भी वही मोर्चा संभाले हुए थे। तेजस्‍वी अभी खुल कर प.बंगाल के मामले पर नहीं बोल रहे। इतना जरूर कह रहे कि भाजपा को हराने वाले को साथ मिलेगा। अंतिम निर्णय राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद करेंगे। पिछले शनिवार को तेजस्‍वी लालू प्रसाद से मिले भी थे, आज उनके बड़े पुत्र तेज प्रताप भी मिले। मगर राजनीतिक मामलों में लालू तेजस्‍वी से ही रायशुमारी करते हैं। ममता के मुकाबले कांग्रेस प.बंगाल में नहीं टिकती। हालांकि बिहार में राजद का कांग्रेस के साथ वामपंथी संगठनों के साथ एक्‍का है।

कांग्रेस के साथ बिहार का अनुभव राजद का इस विधानसभा चुनाव में अच्‍छा नहीं रहा। कांग्रेस ने क्षमता से ज्‍यादा सीटें ले लीं और परफार्मेंस खराब रहा। अंतत: यूपीए बिहार में चंद सीटों के कारण सत्‍ता से दूर रहना पड़ा। इसको लेकर राजद और कांग्रेस के आंतरिक संबंध वहां ठीक नहीं हैं। दूसरी तरफ प.बंगाल के विधानसभा चुनाव के लिए ताल ठोक रहे जदयू का अपना नजरिया है। बिहार में भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ गई है, यइ बात अलग है कि नीतीश कुमार मुख्‍यमंत्री हैं। एनडीए गठबंधन की सरकार होने के बावजूद भाजपा और जदयू के रिश्‍ते पूरी तरह ठीकठाक नहीं हैं। एक दिन पहले अरुणाचल में भी भाजपा ने जदयू के सात में से छह विधायकों को तोड़ अपने पाले में ले लिया। ऐसे में ममता के खिलाफ भाजपा के जंग में जदयू का दांव भी देखने वाला होगा। जदयू के साथ हिंदुस्‍तानी आवाम मोर्चा ( हम) ने भी प्रत्‍याशी उतारने का एलान किया है। बिहार में सत्‍ताधारी जदयू वहां 75 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। जदयू के महासचिव और प.बंगाल के चुनाव प्रभारी गुलाम रसूल बलियावी ने हाल ही कहा था कि जदयू प.बंगाल में 75 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है। तो झारखंड में सत्‍ताधारी झामुमो 35 सीटों पर। हेमंत सोरने ने भी प.बंगाल में लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। कहा है कि तालमेल किससे होगा पार्टी के नेता देख रहे है। 2011 के विधानसभा चुनाव में राजद को एक सीट प.बंगाल में मिली थी। बिहार विधानसभा चुनाव में करामात दिखाने वाली ओवैसी की पार्टी ने भी चुनाव लड़ने का एलान किया है। प.बंगाल के नजरिये से बिहार और झारखंड की छोटी पार्टियां वहां भले कुछ बड़ा हासिल करने की स्थिति में न हों मगर इनके पसंगा वोट से खेल तो बिगड़ ही सकता है।

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