भाजपा के पाले में चार आदिवासी पूर्व मुख्यमंत्रियों की अग्निपरीक्षा, तो इंडिया ब्लॉक की हेमंत सोरेन की अगुआई में चुनौती कड़ी
झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। दो चरणों में 13 नवंबर और 20 नवंबर को वोट पड़ेंगे और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे। दावों-प्रतिदावों और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज है, लेकिन आदिवासियों की अहमियत वाले राज्य में चुनाव में बेशक सबसे ज्यादा नजर आदिवासी वोटों पर रहेगी। दिलचस्प यह है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इंडिया ब्लॉक की ओर से मोर्चा संभाले हुए हैं, तो विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पाले में चार पूर्व आदिवासी मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन और मधु कोड़ा हैं। ये सभी न सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री हैं, बल्कि अपने-अपने दायरे में कद्दावर नेता भी माने जाते रहे हैं। सियासी गलियारों में हंसी-ठिठोली के बीच यह भी कयास है कि भाजपा में बड़े-बड़े आदिवासी नेता, तो हैं मगर आदिवासियों का नेता एक भी नहीं। इस मायने में यह चुनाव इन चारों के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है।
इन आदिवासी पूर्व मुख्यमंत्रियों को भाजपा की अपने पाले में लाने की वजह साफ हैं। दरअसल 2019 में पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए सुरक्षित 28 सीटों में सिर्फ दो सीटें ही भाजपा जीत पाई थी। इस वर्ष लोकसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए सुरक्षित सभी पांच सीटों पर पार्टी को पराजय झेलनी पड़ी। केंद्र में जनजातीय मामलों का मंत्रालय संभाल रहे अर्जुन मुंडा भी खूंटी से अपनी सीट नहीं बचा सके। इससे करीब 26 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले झारखंड में भाजपा भीतर तक हिल उठी है। जाहिर है, पिछले दिनों केंद्रीय एजेंसियों के जरिये हेमंत सोरेन को ऐसे मामले में जेल भेजने से भाजपा से आदिवासी खफा बताए जाते हैं, जिसे झारखंड हाइकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।
लिहाजा, भाजपा नेतृत्व हर सूरत में आदिवासियों में पैठ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बड़े आदिवासी नेताओं को ताकत देने के लिए हर तरह के उपाय कर रहा है। कोल्हान का टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन कोल्हान में सबसे मजबूत पकड़ वाले नेता माने जाते हैं। अलग झारखंड आंदोलन की उपज वाले चंपाई सरायकेला से छह बार के विधायक हैं। वे झारखंड आंदोलन के दौरान जंगलों में रहकर आंदोलन की रूपरेखा बनाते थे। कोल्हान के कई विधानसभा क्षेत्रों में उनकी पैठ है। मुख्यमंत्री बनने के बाद कम समय में ही उनके प्रभाव-क्षेत्र में विस्तार हुआ। भाजपा का दामन थामते ही वे कथित बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर आक्रामक हो गए। उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों से संथाल परगना को बचाने के लिए ही उन्होंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। भाजपा कोल्हान के टाइगर का संथाल आदिवासियों को मोहने के लिए इस्तेमाल करना चाहती है।
परीक्षाः भाजपा में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों- चंपाई सोरेन, बाबूलाल मरांडी (ऊपर), अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा
वैसे, भाजपा में अंदरखाने चर्चा है कि चंपाई सोरेन को लेकर प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी बहुत सहज नहीं हैं। कोई दूसरा बड़े कद का आदिवासी नेता उन्हें आसानी से हजम नहीं हो रहा है। बाबूलाल मरांडी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं। बाद में उन्होंने करीब 14 वर्षों तक झारखंड विकास मोर्चा नाम से पार्टी चलाई। 2019 के चुनाव में आदिवासी सीटों पर झटका लगने के बाद भाजपा नेतृत्व ने उन्हें पुन: भाजपा में आदर सहित शामिल किया। उनके लिए कई महीने तक विधायक दल नेता की कुर्सी खाली रखी। बाबूलाल आ तो गए मगर दलबदल कानून में विधानसभा अध्यक्ष की पेंच के कारण वे नेता प्रतिपक्ष नहीं बन सके। अंतत: उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई, हालांकि बाबूलाल पार्टी के लिए आदिवासी वोटों के मोर्चे पर कारगर साबित नहीं हुए। कई उपचुनावों से लेकर लोकसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए सुरक्षित सभी सीटों पर पराजय ने भाजपा नेतृत्व को निराश किया।
इसके अलावा 2003 से 2006 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा पूर्वी सिंहभूम से आते हैं। कोल्हान उनकी कर्मभूमि रही है। विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं। खरसावां से विधायक और जमशेदपुर से सांसद भी रहे हैं। वे 2019 में खूंटी से सांसद चुने गए थे। केंद्र में जनजातीय कल्याण मंत्री रहे, मगर 2024 में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। उनका भी मुंडा आदिवासियों के बीच सीमित प्रभाव बताया जाता है।
इसी तरह, हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद मुख्यमंत्री बने चंपाई को उनकी रिहाई के बाद कुर्सी छोड़नी पड़ी और इससे ‘‘आहत’’ होकर चंपाई भाजपा में शामिल हो गए। चंपाई की जॉइनिंग के अगले ही दिन पांच बार के विधायक रहे संथाल परगना के बोरियो क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोबिन हेम्ब्रम 31 अगस्त को जब भाजपा में शामिल हुए, तो मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी थे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने केसरिया दुपट्टा ओढ़ाकर उनका स्वागत किया। 15 सितंबर को जमशेदपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवर्तन महारैली को संबोधित करने पहुंचे, तब भी मंच पर मधु कोड़ा दिखाई दिए। करीब चार हजार करोड़ रुपये के घोटालों में फंसे मधु कोड़ा को लेकर भाजपा लंबे समय तक किनारा करती रही है। देश-दुनिया में मधु कोड़ा अनूठे व्यक्ति होंगे, जो निर्दलीय विधायक रहते हुए मुख्यमंत्री बने थे। वे 18 सितंबर 2006 को झारखंड के पांचवें मुख्यमंत्री बने और 709 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे। जाहिर है, झामुमो सरकार के घोटालों और भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा आक्रामक रही हो, तो मधु कोड़ा का गर्व के साथ स्वागत कौन करे। यह बात अलग है कि प्रधानमंत्री के मंच पर भी चुपके से उन्हें स्थान दे दिया गया। भाजपा में उनके शामिल होने पर कोई बड़ा नेता मुंह नहीं खोलना चाहता, हालांकि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मधु कोड़ा की पत्नी सिंहभूम से कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा को भाजपा ने तोड़ लिया था और उन्हें सिंहभूम से संसदीय चुनाव में उतारा था मगर वे अपनी सीट नहीं बचा पाईं।
भाजपा के लिए आदिवासी वोटों पर प्रभाव बढ़ाने के लिए कोल्हान पर कब्जा जरूरी है। अलग राज्य बनने के बाद सात चेहरे मुख्यमंत्री हुए। इनमें रघुवर दास को छोड़कर सभी जनजाति समाज से थे। इनमें पांच पूर्व मुख्यमंत्री अभी भाजपा के पाले में हैं। संयोग यह भी है कि इन पांच में से चार मुख्यमंत्री कोल्हान से आते हैं। रघुवर दास, अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन और मधु कोड़ा। ऐसे में कोल्हान पर कब्जे के लिए भाजपा की तेज घेराबंदी चल रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में कोल्हान की सभी 14 सीटों पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था। यहां नौ सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां की 14 में 11 सीटों पर झामुमो और दो पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी सीट को छोड़ दें तो कोल्हान की शेष सीटों पर आदिवासी वोट निर्णायक हैं।
अपने तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार झारखंड आए और जमशेदपुर में सभा की। यह एक प्रकार से भाजपा में चंपाई सोरेन को नए सिरे से प्रोजेक्ट करने का मौका था, तो कोल्हान के साथ दूसरे इलाके के आदिवासी जमात पर मखमली हाथ फेरने का अवसर भी। उन्होंने छह वंदे भारत ट्रेनों और 660 करोड़ रुपये की योजनाओं का तोहफा दिया और आदिवासियों पर मरहम लगाने के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ के मसले पर झामुमो और कांग्रेस को लपेटा। उन्होंने कहा, ‘‘राज्य में घुसपैठ बड़ा मुद्दा है। बांग्लादेशी और रोहिंग्या की घुसपैठ से डेमोग्राफी बहुत तेजी से बदल रही है। संताल परगना में आदिवासियों की आबादी तेजी से कम होती जा रही है, यहां के लोगों की जमीन हड़पी जा रही है। झामुमो, जिसने आदिवासियों के वोट से अपनी राजनीति चमकाई, वह आदिवासियों की जमीन कब्जा करने वाले घुसपैठियों के साथ खड़े हैं।’’
भाजपा खुद को आदिवासियों की हितैषी बताने के लिए बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ का हौवा खड़ा करने की कोशिश कर रही है। संथाल आदिवासियों पर डोरे डालने के लिए भाजपा माइक्रो लेवल पर प्लानिंग कर रही है। जिलों में जनजाति मोर्चा के बैनर तले कई आदिवासी सम्मेलन भी हुए। संथाल परगना की 18 विधानसभा सीटों में सात आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं, इनमें सभी पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है। इसी इलाके में दखल बढ़ाने के मकसद से पार्टी ने झामुमो से शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा से तीन बार की विधायक रहीं सीता सोरेन को भाजपा में शामिल करा के दुमका से संसदीय चुनाव में उतारा था।
जीत की आसः झाखंड के हजारीबाग में परिवर्तन महासभा रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मधु कोड़ा और गीता कोड़ा आदिवासियों में हो समुदाय से आते हैं। कोल्हान में उनकी बहुलता है। प्रदेश में करीब बीस लाख से ज्यादा लोग हो भाषा बोलते हैं। अब भाजपा हो कार्ड खेलने में जुटी है। हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए हाल ही एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिला। शिष्टमंडल के साथ असम के मुख्यमंत्री और झारखंड के चुनाव सह प्रभारी हिमंत बिस्व सरमा और पूर्व सांसद गीता कोड़ा भी थे। अमित शाह ने इनकी मांग पर सकारात्मक कार्रवाई का भरोसा दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखा है। जमशेदपुर संसदीय सीट से कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेताओं में रहे शैलेंद्र महतो को फिर से भाजपा सक्रिय करने में जुटी है। उनकी पत्नी पूर्व सांसद आभा महतो जमशेदपुर दौरे के दौरान प्रधानमंत्री के साथ मंच पर मौजूद थीं। कोल्हान में महतो समुदाय की भी अच्छी पकड़ है। भाजपा इनके प्रभाव का भी फायदा उठाना चाहती है।
चंपाई को तोड़ने और भाजपा के कोल्हान ऑपरेशन को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी सक्रिय हैं। वे एक माह के भीतर कोई आधा दर्जन दौरे कर चुके हैं। जिस दिन चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हुए उसी दिन हेमंत सोरेन ने कोल्हान के घाटशिला से विधायक रामदास सोरेन को जल संसाधन और उच्च तथा तकनीकी शिक्षा मंत्री बना दिया। ये विभाग चंपाई के पास थे। चाईबासा विधायक दीपक बिरुआ पहले से हेमंत कैबिनेट में मंत्री हैं। चंपाई की धार कुंद करने के लिए यहां बड़े नेताओं को लगाया गया है। स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों से समन्वय कायम किया जा रहा है। यहां की स्थानीय कमेटी के साथ रांची में बैठक भी की है। सत्ता में आते ही हेमंत सोरेन ने आदिवासियों के लिए अलग पहचान की खातिर जनगणना में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव विधानसभा से सर्वसम्मत पास कराकर भेजा। आज तक भाजपा को इसका काट नहीं मिल पाया है।
अठारह साल से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए मईयां सम्मान योजना के तहत सालाना 12 हजार रुपये, सर्वजन पेंशन योजना, सावित्रीबाई फुले योजना, सोना सोबरन धोती साड़ी योजना, अबुआ आवास, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, दो लाख तक कृषि ऋण माफी, गरीबों का 15 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा, मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेशीय छात्रवृत्ति, जैसी आदिवासियों, गरीबों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं से भाजपा की घेरेबंदी कर रखी है।
इधर भाजपा ने चुनावी अभियान तेज कर दिया है। 20 सितंबर से अमित शाह ने साहिबगंज के भागनाडीह और गिरिडीह के झारखंडी धाम से भाजपा की परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की। उसमें भी बांग्लादेशी घुसपैठ और भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। परिवर्तन यात्रा में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जैसे बड़े नेताओं का इलाकों में जमावड़ा रहा।
आदिवासी वोटों की घेरेबंदी कर भाजपा नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के रास्ते आसान करने की कोशिश की है, मगर बड़े आदिवासी नेताओं के बीच अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर आपसी समन्वय का घोर अभाव दिखता है।