लंबे समय से संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए की बात मुख्य धारा राजनीति में हो रही थी। हालांकि अब इसका असर दिखने लगा है। बुधवार को गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत 14 लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र सौंप दिया। यह कानून, 2019 में संसद द्वारा पारित किया गया था, हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस साल मार्च में सीएए के नियमों को अधिसूचित किया था।
#WATCH | Citizenship Certificates were physically handed over to 14 applicants in Delhi today. Digitally signed Certificates are being issued to many other applicants through email: Ministry of Home Affairs pic.twitter.com/fwpo2FxzlM
— ANI (@ANI) May 15, 2024
केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने राजधानी दिल्ली में कुछ आवेदकों को दस्तावेज सौंप दिया है। गृह मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा, "नागरिकता (संशोधन) नियम, 2014 की अधिसूचना के बाद नागरिकता प्रमाणपत्रों का पहला सेट आज जारी किया गया है। केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने आज नई दिल्ली में कुछ आवेदकों को नागरिकता प्रमाणपत्र सौंपे। गृह सचिव ने आवेदकों को बधाई दी साथ ही नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला। संवाद सत्र के दौरान, सेक्रेटरी पोस्ट्स, डायरेक्टर (आईबी), भारत के रजिस्ट्रार जनरल और वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।”
आपको बता दें कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लोकसभा चुनाव शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले 11 मार्च को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया था। सीएए के नियम जिला स्तरीय समितियों (डीएलसी) को भारतीय नागरिकता के लिए पात्र लोगों के आवेदन स्वीकार करने के लिए अधिकृत करते हैं। वे राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति को नागरिकता देने से पहले आवेदनों की जांच करने का अधिकार देते हैं।
मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि अधिकारियों को पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों से आवेदन मिल रहे हैं, जो धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं। बयान में आगे कहा गया कि, (डीएलसी), जिसकी अध्यक्षता नामित अधिकारी करते हैं, उन्होंने दस्तावेजों के सत्यापन के बाद आवेदकों को राजनिष्ठा की शपथ दिलाई है।
केंद्र सरकार ने बयान में आगे कहा, "नियमों के अनुसार प्रसंस्करण के बाद, डीएलसी ने आवेदनों को राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति को भेज दिया जिसकी अध्यक्षता डायरेक्टर (जनगणना संचालन) कर रहे हैं। आवेदनों का प्रसंस्करण पूरी तरह से ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से किया गया है। डायरेक्टर (जनगणना संचालन) की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा उचित जांच के बाद ही 14 आवेदकों को नागरिकता देने का फैसला किया गया था।”
आपको बता दें कि सीएए के अनुसार, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले उन लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी जिन्होंन धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया है। कानून के अनुसार यह नागरिकता केवल उन्हीं लोगों को दी जाएगी जो 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं। वहीं तय तिथि के बाद आए लोगों को नागरिकता देने की प्रक्रिया अलग है।
कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सीएए को लेकर देश में लंबे समय से बहस हो रही है। साल 2019 में सीएए पारित होने के बाद पूरे देश में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। प्रदर्शनकारियों ने इसे गरीब विरोधी और मुस्लिम विरोधी कानून बताया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन सहित विपक्ष के कई नेताओं ने कहा है कि वे अपने राज्यों में यह कानून लागू नहीं करेंगे। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने वादा किया है कि कानून को पूरे देश में लागू किया जाएगा।
पिछले महीने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चितंबरम ने कहा था कि इंडी ब्लॉक की सरकार बनने के बाद संसद के पहले सत्र में ही सीएए को रद्द कर दिया जाएगा। सीएए को लेकर विपक्ष दावा करती है कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है और असंवैधानिक भी है। जिसपर बीजेपी ने विपक्ष पर वोट बैंक की राजनीति के लिए मुसलमानों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस कानून का मकसद किसी की नागरिकता छीनना नहीं है।