अक्टूबर 2024 में हरियाणा में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी कथित ग्राउंड गेम के दम पर हालिया स्थानीय निकाय चुनाव में जीत के साथ ‘ट्रिपल इंजन’ सरकार बनाने में सफल रही। भाजपा ने मई 2024 में राज्य में लोकसभा की कुल 10 में से 5 सीटें जीती थीं। अक्टूबर 2024 के विधानसभा चुनाव में 90 में 48 सीटें जीतकर वह सरकार बनाने में सफल रही। अब मार्च 2025 में स्थानीय निकाय चुनाव में अप्रत्याशित जीत दर्ज कर भाजपा राज्य में ‘ट्रिपल इंजन’ सरकार का दावा कर रही है। भाजपा 2029 के चुनावों की तैयारी अभी से शुरू कर चुकी है। इसके विपरीत प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की हालत लगातार पतली होने के संकेत दिख रहे हैं। विधानसभा चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त रही कांग्रेस को 37 सीटें ही मिली थीं, लेकिन हार से सबक लेने की बजाय पार्टी अभी भी भितरघात, गुटबाजी और संगठनात्मक कमजोरी से जूझ रही है, इसके गवाह स्थानीय निकायों के चुनाव हैं।
हालांकि पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के मत प्रतिशत का अंतर एक फीसदी से भी कम था, जो स्थानीय निकाय चुनावों में गहरी खाई में तब्दील होता दिख रहा है। स्थानीय निकाय चुनाव में 10 में से 9 मेयर भाजपा के खाते में गए हैं। राज्य के 10 नगर निगमों गुरुग्राम, फरीदाबाद, पानीपत, अंबाला, हिसार, यमुनानगर, करनाल, रोहतक और सोनीपत में भाजपा ने जीत दर्ज की जबकि मानेसर निगम में बना निर्दलीय मेयर भी भाजपा समर्थक है। पांच नगर परिषदों और 23 नगर पालिकाओं में भी ज्यादातर पर भाजपा ने जीत दर्ज की। यह जीत 2029 के लिए कांग्रेस को संकेत है कि एकजुट हुए बगैर हरियाणा में ‘ट्रिपल इंजन’ भाजपा से कड़ी चुनौती है।
बिखरा कुनबाः उदयभान, सुरजेवाला, (ऊपर दाएं), भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी सैलजा
बीते 10 महीने में लगातार तीन चुनावों में जीत से गदगद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ोली का कहना है, “हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर भाजपा ने साबित कर दिया है कि संगठनात्मक शक्ति और रणनीतिक संकल्प के बल पर कथित एंटी-इन्कंबेंसी के कयासों को धराशायी करके तमाम विपक्षी दलों को हाशिए पर धकेला जा सकता है।”
लेकिन कांग्रेस नेता, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आउटलुक से कहा, “विधानसभा चुनावों में ईवीएम से गड़बड़ी के मामले जगजाहिर हैं। साम, दाम, दंड, भेद के दम पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को तार-तार करने वाली भाजपा का कथित ट्रिपल इंजन हरियाणा की अर्थव्यवस्था और विकास के मामले में पटरी से उतर गया है। विकास पर फुल स्टॉप और कर्ज, क्राइम, करप्शन नॉन स्टॉप यही भाजपा सरकार की पहचान है।
भाजपा ने प्रदेश को पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज में डुबो दिया है। 1966 में हरियाणा के गठन से लेकर 2014 तक की तमाम सरकारों के समय कुल 70,000 करोड़ रुपये का कर्ज था, वह बीते 10 साल में 735 प्रतिशत से भी अधिक बढ़कर 5.16 लाख करोड़ रुपये हो गया है।”
स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण यह रहा कि चुनाव प्रचार में उसका शीर्ष नेतृत्व ही मैदान में नहीं उतरा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान जैसे दिग्गज नेताओं ने स्थानीय निकाय चुनावों में प्रचार से दूरी बनाए रखी। तब हुड्डा ने कहा था, “स्थानीय निकाय चुनाव में हार से कोई फर्क नहीं पड़ता। पहले भी नगर निगम चुनावों में भाजपा का ही दबदबा था। मैं पंचायत या निगम चुनाव के दौरान प्रचार के लिए नहीं जाता।”
हरियाणा के मुख्यमंत्री सैनी
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “निकाय चुनावों को कांग्रेस ने हल्के में लिया। यह बड़ी चूक थी। दूसरी ओर भाजपा ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत सभी बड़े नेताओं को प्रचार में झोंक दिया था। पार्टी का दावा है कि बूथ स्तर पर रणनीति बनाकर उम्मीदवारों को जिताने के लिए माइक्रो मैनेजमेंट किया गया। मुख्यमंत्री के मीडिया संयोजक अशोक छाबड़ा कहते हैं, “हमने हर निगम क्षेत्र में अपने विधायक, जिला अध्यक्ष और संगठन को जिम्मेदारी सौंपी थी। खुद मुख्यमंत्री सैनी और केंद्रीय मंत्री खट्टर ने 100 से ज्यादा जनसभाएं और नुक्कड़ सभाएं की थीं।”
कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता रण सिंह मान का कहना है, “कांग्रेस के नेताओं ने विधानसभा चुनाव में हार के बाद से भाजपा के सामने एक तरह से हथियार डाल दिए हैं। बड़े नेता तो दूर कोई विधायक तक स्थानीय निकाय चुनाव में प्रचार के लिए नहीं गया। इस हार की कोई भी नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। रोहतक जैसे कांग्रेस के गढ़ में भी पार्टी को करारी हार मिली। यह वही क्षेत्र है जहां से भूपेंद्र सिंह हुड्डा की राजनैतिक विरासत जुड़ी है। वे रोहतक में उस वार्ड को भी नहीं बचा पाए, जहां उनका घर है। वहां भाजपा प्रत्याशी की जीत कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भारी पड़ी।”
पहली बार 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही कांग्रेस प्रदेश में अंदरूनी गुटबाजी का शिकार रही है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा बनाम कुमारी सैलजा गुटबाजी वर्षों से चली आ रही है। रणदीप सुरजेवाला और अशोक तंवर जैसे नेता भी अलग-अलग धड़ों में बंटे रहे। प्रदेश में कांग्रेस बीते एक दशक से जिलास्तरीय संगठनात्मक ढांचा खड़ा नहीं कर पाई। इसके उलट भाजपा ने अपने संगठनात्मक विस्तार में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव में जीत के बाद भी संगठन में किए हालिया बदलाव में भाजपा ने 22 जिलों वाले हरियाणा में 28 जिला अध्यक्ष नियुक्त किए हैं। हिसार, गुरुग्राम, फरीदाबाद जैसे बड़े जिलों में अलग-अलग शहरी और ग्रामीण अध्यक्ष बनाए हैं ताकि शहरों के हरेक वार्ड से लेकर ग्रामीण इलाकों में हर ब्लॉक तक पकड़ मजबूत रहे।
कांग्रेस के हालात और भाजपा की लगातार जीत के बारे में गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र विभाग के प्रमुख तथा वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक डॉ. नीरज शर्मा का कहना है, “भाजपा ने हरियाणा में मोदी ब्रांड, केंद्र-राज्य में सत्ता और मजबूत संगठन के जरिए ट्रिपल इंजन मॉडल स्थापित कर दिया है। स्थानीय निकाय चुनाव भाजपा के लिए सिर्फ नगर निगम के मेयर पद नहीं बल्कि राज्य में एकतरफा सत्ता बनाए रखने का जरिया है। हरियाणा में भाजपा की चुनौती कभी इंडियन नेशनल लोकदल, जननायक जनता पार्टी या आम आदमी पार्टी नहीं रही, असली मुकाबला कांग्रेस से ही रहा है लेकिन नेतृत्वविहीन कांग्रेस बगैर संगठन और आंतरिक कलह के चलते दिशाहीन नजर आती है।”
विधानसभा चुनावों के छह महीने बीतने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान नेता प्रतिपक्ष नहीं तय कर सका। नेता प्रतिपक्ष को लेकर असमंजस के बारे में आउटलुक से कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने कहा, “फिलहाल संगठन मजबूत करना पार्टी की प्राथमिकता है। विपक्ष के नेता के चयन से ज्यादा पार्टी संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करना है।”
उधर दस साल के राज के बाद एंटी-इन्कंबेंसी के डर से भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 12 मार्च 2024 को मनोहर लाल खट्टर के बदले ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया और तकरीबन पूरा मंत्रिमंडल नए चेहरों से भर दिया। उसमें जाट और गैर-जाट समीकरण साधने की रणनीति अपनाई गई। भले ही 50 से अधिक प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक हुए, लेकिन सरकारी नौकरियों में “बिन पर्ची बिन खर्ची”, मेरा परिवार मेरी पहचान, मुख्यमंत्री अंत्योदय परिवार उत्थान जैसी योजनाओं का ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रचार से गरीब और मध्यम वर्ग को पार्टी से जोड़ा गया।
प्रदेश की आधी आबादी यानी महिलाओं को अपने पाले में लाने के लिए विधानसभा चुनावी घोषणा पत्र में मध्य प्रदेश की तर्ज पर लाडो लक्ष्मी बहना स्कीम में हर माह महिलाओं को 2100 रुपये भत्ते के लिए वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में 5,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। भत्ता कब से मिलेगा और किन महिलाओं को मिलेगा, यह अब भी स्पष्ट नहीं है, पर विधानसभा के बजट सत्र में इस प्रावधान से सैनी सरकार ने महिलाओं और विपक्ष को साधने की कोशिश की है।
सत्ता पर लगातार तीसरी बार काबिज भाजपा निर्णायक स्थिति में है, कांग्रेस अंदरूनी राजनीति और संगठनात्मक कमजोरियों से जूझ रही है। कांग्रेस संगठन को नए सिरे से खड़ा करने में असफल रहती है तो राज्य में उसकी जमीन खिसक सकती है। क्योंकि लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों में जीत से जमीनी स्तर पर बढ़ा हुआ भाजपाई कुनबा अब पंचायत चुनावों के लिए आक्रामकता से सक्रिय है।
कांग्रेस के सामने चुनौती है कि क्या वह खुद को भाजपा के “ट्रिपल इंजन मॉडल” के सामने सशक्त विपक्ष के रूप में संगठन में भी नई जान फूंक पाती है या नहीं? देखना होगा कि क्या आलाकमान और नए प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद हरियाणा में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का फार्मूला तलाश पाएंगे?