इतालवी लक्जरी फैशन ब्रांड ‘प्राडा’ के कोल्हापुरी चप्पलों के डिजाइन की नकल किए जाने को लेकर विवाद पैदा होने के बाद कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा कि इन प्रसिद्ध चप्पलों को तैयार करने वाले राज्य के कारीगरों के नाम, उनकी कला और विरासत को मान्यता दी जानी चाहिए, न कि उन्हें दरकिनार किया जाना चाहिए।
इतालवी ब्रांड पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि प्राडा कोल्हापुरी चप्पल 1.2 लाख रुपये प्रति जोड़ी की दर से बेच रहा है।
कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने भारतीय कारीगरों का समर्थन किया है और कहा है कि उन्हें दरकिनार नहीं जाना चाहिए और अगर मशहूर फैशन ब्रांड्स इन कारीगरों के उत्पादों को बेचते हैं तो कारीगरों के हुनर और उनकी विरासत को पहचान मिलनी चाहिए।
प्रियांक खड़गे ने रविवार को सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में लिखा कि 'कुछ ही लोग जानते होंगे कि कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले बड़ी संख्या में कारीगर कर्नाटक के अठानी, निपानी, चिकोड़ी, रायबाग और बेलगावी, बागलकोट और धारवाड़ के विभिन्न इलाकों में रहते हैं। वे पीढ़ियों से कोल्हापुरी चप्पलें बना रहे हैं और उन्हें नजदीकी शहरों में बेच रहे हैं, खासकर कोल्हापुर में, जो समय के साथ इनका ब्रांड और बाजार बन गया।'
प्रियांक खड़गे ने याद करते हुए कहा कि 'जब वे समाज कल्याण मंत्री थे, तो उस वक्त महाराष्ट्र सरकार ने कोल्हापुरी चप्पलों को जीआई टैग देने के लिए दबाव बनाया था। जिस पर डॉ. बाबू जगजीवनराम चमड़ा उद्योग विकास निगम लिमिटेड ने इसका विरोध किया और कर्नाटक के कारीगरों के पक्ष में लड़ाई लड़ी। आखिरकार सफलता मिली और कर्नाटक और महाराष्ट्र के चार-चार जिलों को संयुक्त रूप से जीआई टैग दिया गया। ये दो राज्यों की प्रतिस्पर्धा के बारे में नहीं है बल्कि हमारी साझा विरासत को संरक्षित करने के बारे में है और हमारे कारीगरों को कानूनी मान्यता देने के बारे में था, जिसके वे हकदार हैं।'
खड़गे ने कहा कि प्राडा मामला इस बात का सबूत है कि किसी उत्पाद को सिर्फ जीआई टैग देना ही काफी नहीं है बल्कि कारीगरों को सांस्कृतिक उद्यमिता का महत्व भी बताया जाना चाहिए। इन कारीगरों को कौशल, ब्रांडिंग, डिजाइन नवाचार और वैश्विक बाजार में पहुंच के साथ ही निवेश की भी जरूरत है। ये सिर्फ श्रेय के हकदार नहीं हैं बल्कि इन्हे सम्मानजनक तरीके से आजीविका कमाने का भी हक है।
प्रियांक खड़गे ने कहा कि जब अंतरराष्ट्रीय फैशन हाउस हमारे डिजाइनों को अपनाते हैं, तो हमारे कारीगरों के नाम, काम और विरासत को प्रदर्शित किया जाना चाहिए, न कि दरकिनार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'जीआई टैग उन्हें केवल कानूनी अधिकार देता है। अब उन्हें वैश्विक मंच प्रदान करना हमारी जिम्मेदारी है।'