मुकेश जैसे महान परंतु सरल और सहज गायक पर लेखनी चलाना उतना ही दुष्कर है, जितना उनकी गायकी के भीतर समाए भावपूर्ण तत्वों की व्याख्या करना। शास्त्रीय राग-रागिनियों की कठिन पगडंडियों और उसके दुरूह उतार-चढ़ाव उनकी गायकी की खासियत थी। गायक मुकेश की जन्मशती वर्ष में प्रकाशित पुस्तक “भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश” में मुकेश की गायकी के कई आयाम हैं।
लेखक ने पुस्तक में कहा है, “मुकेश के स्वर की शास्त्रीयता उनकी सरलता में समाई हुई है। उनकी राग-रागिनियों की सरगम सुर की सहजता में घुली हुई और भावों की गुत्थियां कंठ से मुखर होती वाणी में मुक्त रूप में दृश्यमान हो उठती है।” मुकेश के व्यक्तित्व-कृतित्व को विस्तार से बताती यह पुस्तक कई जिज्ञासाओं को भी शांत करती है।
मुकेश के निधन के साढ़े चार दशक बाद भी अलग-अलग देशों के विभिन्न भाषा-भाषी, नई पीढ़ी के बालक-बालिका, युवक-युवती जिस तन्मयता से मुकेश के गाए गीतों को गा रहे हैं, उन्हें दोहरा रहे हैं वह आश्चर्यचकित करने वाला अवश्य है पर साथ ही यह मुकेश के सरल-सहज-भावपूर्ण-स्वाभाविक गायकी के प्रति विश्व भर में लोगों के नेह-स्नेह एवं उनके प्रति असीम मान-सम्मान का द्योतक भी है। पुस्तक पढ़ते हुए कहीं भी अतिशयोक्ति का भान नहीं होता। न किसी अ-तार्किक पक्ष से सामना होता है।
संगीतकार ख़य्याम ने ‘आमुख’ लिखा है, जो उनका अंतिम लेखन है। आर्ट पेपर पर रंगीन छपाई के साथ पुस्तक का कलात्मक रूप मन को मोह लेता है। यह शोधपूर्ण पुस्तक साहित्य और संगीत के अद्भुत मेल से उपजी नूतन कृति है। भाषा, शैली, साहित्य और संगीत का जो परिष्कृत एवं आकर्षित दृश्य-परिदृश्य एवं कथ्य-तथ्य इस पुस्तक में गढ़ा गया है वह अद्भुत है। पठन-पाठन और अध्ययन-अध्यापन के लिए सर्वथा उपयुक्त यह पुस्तक संगीत से परे अन्य विधाओं-क्षेत्रों के विद्यार्थियों, शोधार्थियों के लिए नितान्त रूप से उपयोगी एवं संग्रहणीय है।
भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश
डॉ. राजीव श्रीवास्तव
प्रकाशन विभाग
710 रुपये
304 पृष्ठ