इस पुस्तक में आर के नारायण के महान लेखक बनने या यूं कहें आम लोगों के जज्बातों को बहुत मुलायम हाथों से टटोलकर उन्हें सहलाने वाले कहानीकार की पूरी लेखन यात्रा का वह हिस्सा झलकता है, जिसका साथ सारी उम्र उनके साथ रहा। जिसे उन्होंने कभी खुद से दूर नहीं किया। शायद यही वजह है कि आर के नारायण के तमाम लेखन में कोई भी पाठक आसानी से उनका बचपन, उनकी नानी का घर, घर में पले जानवरों से मुलाकात या फिर उनके बालपन के किसी मित्र या रिश्तेदार को देख सकता है या महसूस कर सकता है।
यह नारायण के लेखन की खूबी है कि वह अपनी हर एक बात को गुदगुदाने वाले अंदाज में ऐसे बयान करते हैं कि पढ़ने वाला मुस्कराए बगैर नहीं रह सकता। अंग्रेजी में लिखने के बावजूद भारत की मिट्टी की महक और उसका देसी अंदाज जरा भी कम नहीं होता।
यह आत्मकथा उनके बचपन की तस्वीर दिखाती है और बताती है कि किस परिवेश में वह पले-बढ़े। साथ ही यह भी कि बच्चों की शरारतें और अनुशासन की बंदिशों को तोड़ने की जिद किस तरह एक नए किस्से को जन्म देती है। जीवन के संघर्ष को चित्रित करने वाला उनका यह संस्मरण बेहद अनोखा है। मालगुडी डेज के स्वामी का किरदार किस तरह उनके लेखन का हिस्सा बना और कैसे किरदार तिल तिल कर संपूर्ण उपन्यास में बदला, इसका चित्रण इतने खूबसूरत और सरल लहजे में किया गया है कि बोझिल हुए बगैर आगे पढ़ने को प्रेरित करता है।
पुस्तक – मेरी जीवन गाथा
लेखक – आर के नारायण
अनुवाद – महेंद्र कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक – राजपाल एंड संस
मूल्य – 275 रुपये