सन 2011 में सीरिया तेजी से गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा था। आईएसआईएस अबू बकर अल-बगदादी के नेतृत्व में अलकायदा के साथ कार्य करते हुए पड़ोस की जमीन पर खुद का स्थापित कर रहा था। हालांकि बाद में इसके कमांडरों के बीच हुए मतभेद ने दोनों गुटों को अलग कर दिया।
कॉकबर्न के अनुसार पश्चिमी नीतिनिर्माण कर्ताओं ने सीरिया में हो रहे विद्रोहों और इराक में शांति स्थापित करने के लिए जरूरी उपाय एवं गंभीर चिंतन नहीं किए। कॉकबर्न अपनी किताब में कहते हैं कि सन 2011 से ही विद्रोहियों और उनके समर्थकों ने गलतियों पर गलतियां की, जिसमें सबसे गंभीर यह अवधारणा थी कि राष्ट्रपति असद को जल्द ही हटाया जा सकता है। सीरिया की 14 प्रांतीय राजधानियों पर असद का कब्जा था और विदेशी सरकारें और मीडिया इस बात के कयास लगाता रहा कि असद निर्वासित जीवन कहां बिताएंगे। जहां तक इराक का प्रश्न है तो किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि चीजें किस कदर बिगड़ चुकी थीं। मगर इस बात के पर्याप्त संकेत मिल रहे थे कि इराकी एक ऐसे भविष्य की ओर जा रहे थे, जिसमें हिंसा की आशंका बहुत ज्यादा थी।
लेखक ने आईएसआईएस द्वारा रक्का, फलुजाह, मोसुल, टिकरित जैसे प्रमुख शहरों पर कब्जे की विस्तृत व्याख्या की है। इसके साथ ही आईएसआईएस के आंदोलन का पड़ोसी देशों पर पड़ने वाले प्रभाव, इराक और सीरिया को लेकर विश्व समुदाय की सोच और नीतियां, आमजन पर पड़ने वाला प्रभाव और भविष्य में पूरे विश्व पटल पर इसकी क्या छाप होगी, सबके बारे में गहराई से बताया है।
पुस्तक - आईएसआईएस का आतंक
लेखक - पैट्रिक कॉकबर्न
अनुवाद - नजमुस सहर
प्रकाशक - प्रभात पेपरबैक्स
कीमत - 125 रुपये