नया व्यंग्य संग्रह मालिश महापुराण भरोसा दिलाता है कि यथार्थ को देखने का एक विशेष नजरिया लगातार विकास कर रहा है। लेखक सुशील सिद्धार्थ के इससे पहले तीन व्यंग्य संग्रह छपे हैं। नारद की चिंता खासा चर्चित व्यंग्य संग्रह रह चुका है। इस नए संग्रह में सुशील सिद्धार्थ स्वाभाविक तौर पर और आगे बढ़े हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत, अलग हट कर विषय का चुनाव होता है।
तुरंत किस्म के और तात्कालिक प्रतिक्रिया जैसे व्यंग्य उनके यहां नहीं मिलते। इस पुस्तक में सैंतालीस रचनाएं हैं। सभी अलग-अलग संदर्भों के साथ हमारे समय और समाज की आंतरिकता बयान करती हैं। क्या दुख हैं, वाह, मालिश महापुराण, पर कतरने हैं, बायोडाटा और डर के आगे जैसे व्यंग्य पाखंडों पर प्रहार करते हैं।
सुशील ने इसमें कुछ व्यंग्य कथाएं भी शामिल की हैं। विदूषक, रेखाएं और कठिन समय के सुकर्मी ऐसी ही उल्लेखनीय रचनाएं हैं। वह अपने लेखन में जीवन की बड़ी सच्चाइयां परखते हैं। राजनीति कहीं ऊपरी सतह पर नहीं दिखाई देती लेकिन उसका विवेक जगह-जगह दिखाई देता है। उनके पास व्यंजक भाषा है। जैसे, 'इस देश में कुछ लोगों ने दुख और संघर्ष की अच्छी नस्ल वाले कुत्ते पाल रखे हैं जिनको वे सुबह शाम सानंद टहलाने ले जाते हैं।' यह एक संग्रहणीय व्यंग्य पुस्तक है। भाषा सरोकार और शिल्प की दृष्टि से उल्लेखनीय।
पुस्तक – मालिश महापुराण
कीमत – 150 रुपये
पृष्ठ – 168
प्रकाशक – किताबघर प्रकाशन, दिल्ली