कहानी कहने-सुनने की परंपरा सभ्यता के आरंभ से ही समाज में रही है। इसी कड़ी में बिहार की सामाजिक जनश्रुतियों और मिथकों से लोक कथाओं के रूप में हमारा साक्षात्कार कराने वाली कृति बिहार की लोककथाएं उल्लेखनीय है। इसमें बिहार के जनजीवन और वहां की मान्यताओं, भाषा-शैली की मिठास, ग्रामीण जनजीवन की सोंधी खुशबू है। सहजता और जीवंतता ही लोक कथाओं का प्राणतत्व है। किसी भी लोक और उसकी कहानियों या साहित्य को समझने के लिए हमें उस लोकभाषा को, उसके तेवर को जानना जरूरी होता है। भाषा के मिजाज को समझे बगैर आप उसकी खूबसूरती को नहीं समझ पाएंगे और इसके अभाव में कहानी का आनंद प्राप्त करने से वंचित रह जाएंगे।
इस कृति में कुल 42 कहानियां संकलित हैं। इन कहानियों में ग्रामीणजनों की समझदारी, कहीं वन्य जीवों से जुड़ी कहानियां हैं, तो कहीं राजा, राजकुमार, राजकुमारी की कहानियां। नैतिकता का संदेश देने वाली कहानियां भी संग्रह में मौजूद हैं।
संपादक ने लोकोक्तियों-मुहावरों का प्रयोग ज्यों का त्यों रखा है। ‘जांता’ शब्द का प्रयोग ग्रामीण जनजीवन और कृषि सभ्यता से परिचय कराता है। ‘जांता’ में गेहूं पीसते समय जो हंसी-मजाक भरा वातावरण ग्रामीण जनजीवन की पहचान है, संपादक ने इसे याद दिलाया है।