खेला: नीलाक्षी सिंह
प्रकाशक: सेतु प्रकाशन, नोएडा
कच्चा तेल ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसके दम पर ही विकास का पहिया गतिशील रहता है। तीसरी दुनिया के कुछ हिस्से में इसकी प्रचुरता है। इस कारण इस भूखंड पर पहली- दूसरी दुनिया की लोलुप दृष्टि सदा लगी रही है। अपने प्रभुत्व के लिए स्थानीय स्तर पर विघटन के तत्वों को उकसाने से आरंभ हुई बात कालांतर में चरमपंथ के रूप में विकसित हुई, जिसका उद्देश्य अर्थ, हथियार और धर्म तथा कार्यविधि आतंकी थी। इस टकराहट ने दुनिया को लहूलुहान, संशयग्रस्त एवं प्रतिघाती बना दिया। नीलाक्षी सिंह ने अपने दूसरे उपन्यास ‘खेला’ में इस पूरे दुष्चक्र को बेहतरीन ढंग से उकेरा है।
उपन्यास के दो प्रमुख आयाम हैं- एक अर्थतन्त्र की मतबपरस्ती एवं दूसरा प्रतिरोध के नाम पर धर्म का विकृत उपयोग। इसके कारण जहां तीसरी दुनिया अस्थिर हुई और वहाँ की बड़ी आबादी विस्थापन के लिए मजबूर हुई तो दूसरी तरफ तथाकथित विकसित राष्ट्र सर्विलेंस स्टेट में तब्दील होते चले गए। चाहे वह विकास की गप्पें हों या धार्मिक संदेश अथवा विशिष्ट समूह का गठन- सबमें मानवता के लिए सुखद क्षण लाने की बातें की जाती हैं, लेकिन ‘खेला’ में हम पाते हैं कि इन सबने मानवीयता को अंततः यातना, दंश और टूटन ही दिया है।
‘खेला’ में वरा कुलकर्णी कच्चे तेल से संबंधित शेयरों के ट्रेंड्स की जानकारी निवेशकों को देने वाले फर्म में काम करती है। वरा एक ऐसी लड़की है जिसमें संबंधों के लिए एक खास किस्म का एडवेंचर है। उसे आसानी और सहजता से बना हुआ संबंध रास नहीं आता। वह ऐसी क्यों है- यह प्रश्न बेमानी है। वह ऐसी ही है। बस। व्यक्तित्व के इस अनगढ़ स्वरूप के साथ उपन्यास में वह पूंजीवाद की वीभत्सता, धर्म की अमानवीयता और प्रतिरोध की अंधता का सामना करती है।
बुडापेस्ट पहुँचने पर उसका आत्मीय संपर्क मिसेज गोम्स से बनता है जिनकी खुद की चार असफल शादियों की दास्तान है। इन दस्तानों से यूरोपीय समाज, मूल्यदृष्टि और एकाकीपन के साथ स्त्रियों की संघर्षशीलता भी सामने आती है। मिसेज गोम्स का अतीत सोवियत सैनिकों की ज्यादतियों का शिकार हुआ है तो वर्तमान में उनका बेटा सीरिया में है। इस कारण वे निगरानी की जद में हैं। इन्हीं दिनों पेरिस में हुए विस्फोट से पूरा यूरोप असहज और आशंकाग्रस्त हो जाता है। हर प्रवासी शंका के घेरे में आ जाता है। वरा कुलकर्णी भी इसका शिकार होती है। एक फर्जी ई-मेल के माध्यम से तंत्र उसे ट्रैप करता है। यद्यपि तत्काल तो वह तंत्र से क्लीनचिट पा जाती है पर उस पर तंत्र के प्रतिरोधी अवयव की नजर पड़ जाती है। इस प्रकार जो वरा, मिसेज गोम्स से लगाव के कारण उनके पुत्र को तलाशने को मिशन बना लेती है; जिसका अखिल वैश्विक आर्थिक- धार्मिक नफरत और दुष्चक्र में निजी स्टेक कुछ नहीं है, वह अपने सद्भावपूर्ण और थोड़े एडवेंचर दृष्टि के कारण दोनों पक्षों की जघन्यता का शिकार होती है। जो नाटा व्यक्ति वरा का बलात्कार करता है वह यूरोपीय मूल्य-दृष्टि और व्यवस्था से असहमत माइग्रेंट है। दूसरी ओर तंत्र उसे कैद कर लेता है। हालांकि उपन्यास में एक तथ्य यह भी है कि जो टिम उसे ट्रैप करता है, फिर प्रेमी बन जाता है, वह मिसेज गोम्स का बेटा है।
उपन्यास में इस बात के संकेत हैं कि तथाकथित विकसित देशों का वर्चस्वशाली रवैया उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ। उन्होंने अपने आसपास आइरन-कर्टेन का भ्रम बना रखा है लेकिन अंदर से वे दहशतजदा हैं। पेरिस विस्फोट के कारण बुडापेस्ट में भी भय-संशय का माहौल है। कुल मिलाकर पूरा यूरोप या कहें कि विकसित देश सर्विलांस स्टेट में तबदील होता जा रहा है। वे निगरानी की ऊटपटाँग हरकतें कर रहे हैं जिसके कारण प्रवासियों के साथ स्वयं उनके नागरिकों का जीवन भी यात्नामय बन रहा है। तंत्र की ज्यादतियों का शिकार अगर वरा कुलकर्णी है तो मिसेज गोम्स भी हैं। दरअसल उपन्यास में समकालीन वैश्विक व्यवस्था के एक महत्वपूर्ण पक्ष का उद्घाटन हुआ है और वह है लोलुप एप्रोच के कारण तथाकथित आधुनिक राष्ट्रों की असफलता का हश्र। उनके संसाधन की हवस उन्हें भयग्रस्त समाज में बदल रही है। दूसरी ओर तीसरी दुनिया है जो राष्ट्र और समूह, धर्म और नस्ल के नाम पर लड़ रही है। उपन्यास में भारतीय समाज के संदर्भ में सशक्त मेटफर की रचना की गई है। एक दिन साइकिल से कोई सड़क पर निकलता है। सड़क पर धर्म- विशेष का नाम लिख देता है और प्रतिक्रिया में शहर लाल (खून से) हो जाता है।
वैश्विक पूंजीवादी तंत्र का एक और महत्वपूर्ण तथ्य उपन्यास में द्रष्टव्य है और वह यह है कि संसाधन की हड़प के साथ इनकी रुचि निरंतर स्थिरता बनाए रखने की है ताकि वहाँ से पलायन होता रहे और तथाकथित विकसित राष्ट्र मजदूर आदि के रूप में मानव का इस्तेमाल करते रहें।
विकसित राष्ट्र के दुश्चक्रों का प्रतिरोध तो है पर वह अंधता का शिकार है। वहाँ चरमपंथ और आतंक उभर आया है। और इस प्रकार लोलुपता और अंधता के संघर्ष में मानवीयता की क्षति हो रही है। मानवीय संबंधों के तिरोहित होते जाने का प्रकाशन इस उपन्यास का महत्वपूर्ण पक्ष है। खासकर इसलिए कि जिस प्रक्रिया में व्यक्ति विशेष की सीधी भागीदारी नहीं है वह भी उनके निजी दायरे में घुसपैठ कर रही है। वरा अफ़रोज को छोड़ देती है इसका धर्म से संबंध नहीं है पर दिलशाद की समीक्षा है कि वरा ने उसे मुसलमान होने के कारण छोड़ा। पूरी दुनिया में मुसलमान बनाम अन्य का डुअल बन रहा है। टिम से वरा का जो संबंध है उसमें यह डुअल नहीं है पर वहाँ तंत्र बनाम असहमत माइग्रेंट बनाम अन्य है। टिम कौन है? सीरियाई उग्रता का समर्थक अथवा यूरोपीय निगरानी तंत्र का प्रतिनिधि। वरा का प्रेमी है अथवा उसके कार्यकलाप पर नजर रखने वाला अधिकारी। वह क्या कर रहा है- प्रेम या ट्रैप? इस गुथमगुत्था तथ्य का उपन्यास में बहुत बढ़िया रचाव है।
भाषा की विशिष्टता उपन्यास का रेखांकित करने वाला पक्ष है। भाषा की सांकेतिकता, बिंबात्मकता एवं उपमा का प्रयोग अछूता है और इसे पूरे उपन्यास में सफलतापूर्वक निभाया गया है।
अर्थ और धर्म के वैश्विक दुष्चक्र में करुण मानवीय नियति को सामने लाने वाला यह एक महत्वपूर्ण उपन्यास है। आज का समय और समाज चाहे-अनचाहे एक-दूसरे से जुदा और प्रभावित है। नीलाक्षी सिंह ने इस उपन्यास में इसकी साहसिक अभिव्यक्ति को संभव किया है।