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दिल्‍ली संकट: सुप्रीम कोर्ट का दिल्‍ली सरकार को नोटिस

दिल्‍ली संकट: सुप्रीम कोर्ट का दिल्‍ली सरकार को नोटिस

भ्रष्‍टाचार निरोधक शाखा के क्षेत्राधिकार को लेकर जारी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्‍ली सरकार को एक नोटिस भेजा है, जिसका जवाब तीन हफ्ते के अंदर देना है। सुप्रीम कोर्ट ने गूह मंत्रालय की 21 मई की अधिसूचना को संदिग्ध बताने वाली हाईकोर्ट की टिप्‍पणी को भी गैरजरूरी बताया है। इसी अधिसूचना के जरिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली की भ्रष्‍टाचार निरोधक शाखा को दिल्‍ली पुलिस और केंद्र के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से रोका था।
दिल्‍ली संकट: सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कल सुनवाई

दिल्‍ली संकट: सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कल सुनवाई

गृह मंत्रालय दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, जिसमें उपराज्‍यपाल को पूरी शक्तियां देने वाले केंद्र के नोटिफिकेशन को संदिग्ध बताया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा। इस बीच, दिल्‍ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने गुरुवार को गृह मंत्रालय जाकर गृह सचिव एल सी गोयल से मुलाकात की है। माना जा रहा है कि इस दौरान आगे की रणनीति और केंद्र की अधिसूचना के बचाव को लेकर चर्चा की गई। उधर, दिल्‍ली सरकार ने भी नौकरशाहों की नियुक्ति में उपराज्यपाल को पूर्ण अधिकार देने की केंद्र की अधिसूचना को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस पर भी कल सुनवाई होगी।
दिल्ली संकट पर चुप्पी तोड़ें राष्ट्रपति

दिल्ली संकट पर चुप्पी तोड़ें राष्ट्रपति

देश के संवैधानिक प्रमुख की हैसियत से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राजधानी दिल्ली में गहराते संवैधानिक संकट को देखते हुए अब और निष्क्रियता और चुप्पी की आरामतलबी गवारा नहीं कर सकते। केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के उसके खिलाफ विधान सभा का सत्र बुलाने के निर्णय से केंद्र और दिल्ली सरकार का टकराव अब उस कगार पर पहुंच गया है कि बिना न्यायपालिका या राष्ट्रपति जैसी उच्च संवैधानिक संस्थाओं की पंचायती के किसी परिपक्व संवैधानिक हल की उम्मीद नहीं।
उच्‍च शिक्षा पर एक नया संकट

उच्‍च शिक्षा पर एक नया संकट

उच्च शिक्षा या शिक्षा मात्र विचारहीनता के संकट से गुजर रही है। अभी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सारे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को फरमान जारी किया है कि वे चयन आधारित क्रेडिट व्यवस्था वाले पाठ्यक्रम 2015-16 से लागू करें। यह एक असाधारण आदेश है। विश्वविद्यालयों में क्या पढ़ाया जाएगा, क्या नहीं, यह तय करना आयोग के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है। फिर भी, न सिर्फ उसने यह हुक्म जारी किया है, बल्कि अपने वेबसाईट पर उसने अनेक विषयों के पाठ्यक्रम बनाकर लगा भी दिए हैं। विश्वविद्यालयों को कहा गया है कि वे इन्हें तुरंत लागू करें। इनमें बीस प्रतिशत की हेर-फेर करने की छूट उन्हें है। यह अभूतपूर्व है और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता में सीधा हस्तक्षेप है। मज़ा यह है कि आयोग यह नहीं बता रहा कि आखिर ये पाठ्यक्रम तैयार किन्होंने किए हैं! स्वाभाविक है कि उसके इस कदम का शिक्षकों की ओर से कड़ा विरोध हो रहा है।
जेटली ने गिनाई सरकार की उपलब्धियां

जेटली ने गिनाई सरकार की उपलब्धियां

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के एक साल पूरे होने पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली सरकार के एक साल के लेखे-जोखे के सा‌थ शुक्रवार को मीडिया के सामने आए। वैसे लोगों को उम्मीद थी कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मौके पर सामने आएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। जेटली ने पहले सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और फिर पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए।
कुछ सवाल जो पनगढ़िया छिपा गए

कुछ सवाल जो पनगढ़िया छिपा गए

नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने अपने ब्लॉग में देश की आर्थिक तरक्की का जिक्र किया है और इसमें कृषि को छोड़ अन्य दूसरे क्षेत्रों का योगदान बताया है। लेकिन उन्होंने यह जिक्र करना शायद उचित नहीं समझा कि पिछले जिस दशक के दौरान अर्थव्यवस्‍था में सबसे तेज विकास हुआ, उसी अवधि में रोजगार की विकास दर सबसे धीमी क्यों रही?
साल पूराः अब अच्छे दिन लाइए

साल पूराः अब अच्छे दिन लाइए

चहूं ओर मोदी हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर तरफ नजर आ रहे हैं। पिछले एक साल में जितनी भी योजनाएं शुरू की गईं, वे सब उन्होंने शुरू कीं। देश-विदेश में रणनीति-कूटनीति उनके कंधों पर ही है। सोशल मीडिया में इस देश के वास्कोडीगामा कहे जाने वाले इस प्रधानमंत्री ने एक साल के भीतर 18 देशों की यात्रा कर ली। यहां तक कि जब उनकी सरकार का एक साल पूरा हो रहा है तब भी वह विदेशी जमीन पर नए श्रोताओं से मुखातिब हो रहे हैं। उनके समर्थक इसे नई गतिशील कूटनीति बताते हैं तो आलोचक इसे देश की समस्याओं से मुंह मोडऩा कहते हैं।
किसानों को आज फिर टिकैत जैसे नेता की जरुरत

किसानों को आज फिर टिकैत जैसे नेता की जरुरत

चौ. टिकैत के आन्दोलन में न तो नेताओं की भरमार थी और न पदाधिकारियों की कतार। इस आन्दोलन में शामिल हर व्‍यक्ति सिर्फ किसान था। चौ. टिकैत जनता के बीच से आए थे और अाखिरी दम तक जनता के बीच रहे। यही सादगी और खरापन उनकी पहचान बन गया। उनकी मृत्यु के बाद किसान आन्दोलन में पैदा खालीपन की भरपाई आज तक नहीं हो पाई है।
एक साल में इस सरकार के पास दिखाने को कुछ नहीं: सोनिया

एक साल में इस सरकार के पास दिखाने को कुछ नहीं: सोनिया

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र भी भाजपा नीत एनडीए सरकार पर जमकर हमला बोला है। लोकसभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी कड़ी आलोचना की।
संकट में ग्रीनपीस इंडिया, सिर्फ एक महीना बचा

संकट में ग्रीनपीस इंडिया, सिर्फ एक महीना बचा

बंद होने की चुनौती से जुझ रही ग्रीनपीस इंडिया के पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिये सिर्फ एक महीना है। संस्था के पास अपने कर्मचारियों के वेतन और अन्य खर्चों के लिये सिर्फ महीने भर का पैसा बचा है। गृह मंत्रालय की कार्रवाई को ‘चुपके से गला घोंटने’ जैसा बताते हुए ग्रीनपीस इंडिया ने मंत्रालय को चुनौती दी है कि वो मनमाने तरीके से दंड लगाना बंद करे और इस बात को स्वीकार करे कि वो ग्रीनपीस इंडिया को उसके सफल आंदोलनों की वजह से बंद करना चाह रहा है।
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