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चर्चाः वायदों और दावों का क्या | आलोक मेहता

चर्चाः वायदों और दावों का क्या | आलोक मेहता

‘कसमें, वादे, प्यार, वफा-सब बातें हैं बातों का क्या?’ यह फिल्मी गाना पुराना हो गया। लेकिन इन दिनों जिस इलाके में जाएं, लोग सरकारों के वायदों और दावों के साथ इसी तरह के सवाल उठा रहे हैं। संसद के बजट-सत्र के उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भारत सरकार की ‘सफलताओं का लेखा-जोखा’ आधारित भाषण पढ़ दिया।
जाट आंदोलन: हरियाणा में जारी रही हिंसा, मृतकों की संख्या हुई 16

जाट आंदोलन: हरियाणा में जारी रही हिंसा, मृतकों की संख्या हुई 16

हरियाणा में आरक्षण के लिए आंदोलनरत जाटों ने आज भी कई जगहों पर हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया। भीड़ ने ताजा घटनाक्रम में सुरक्षाकर्मियों पर पथराव करने के साथ ही कई सरकारी वाहनों में आग लगा दी। आंदोलन में मरने वालों की संख्या बढ़कर अब 16 तक पहुंच गई है।
अमेठी दौरे पर राहुल गांधी, कहा देशभक्ति हमारे खून में है

अमेठी दौरे पर राहुल गांधी, कहा देशभक्ति हमारे खून में है

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के दौरे पर हैं। जहां भाजपा कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। राहुल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि राष्ट्रभक्ति उनके खून में है और उन्हें भाजपा तथा राष्टीय स्वयंसेवक संघ से किसी तरह के सबक की कोई जरूरत नहीं है।
मेरा बेटा देशद्रोही है या नहीं, कोर्ट को तय करने दें: उमर के पिता

मेरा बेटा देशद्रोही है या नहीं, कोर्ट को तय करने दें: उमर के पिता

जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के 10 आरोपी छात्रों में से एक छात्र उमर खालिद के पिता ने आज कहा है कि यह न्यायपालिका को तय करना है कि वह मामले में संलिप्त था या नहीं। साथ ही उन्होंने मांग की कि उनके बेटे को मीडिया ट्रायल से अलग रखा जाए।
किसानों की आत्महत्या के बीच विदर्भ में फैक्ट्री खोलेंगी मानसेंटो और पेप्सी

किसानों की आत्महत्या के बीच विदर्भ में फैक्ट्री खोलेंगी मानसेंटो और पेप्सी

किसानों की आत्महत्या के लिए कुख्यात महाराष्ट्र का विदर्भ अब देश का सबसे बड़ा बीज उत्पादन केंद्र बनने जा रहा है। मोनसेंटो और पेप्सी वहां बीज उत्पादन के लिए कंपनी लगाने वाली हैं।
हर रोज ढाई हजार किसान छोड़ रहे हैं खेती

हर रोज ढाई हजार किसान छोड़ रहे हैं खेती

घाटे का सौदा होने के कारण हर रोज ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं। और तो और देश में अभी किसानों की कोई एक परिभाषा भी नहीं है। वित्तीय योजनाओं, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो और पुलिस की नजर में किसान की अलग-अलग परिभाषाएं हैं। एेसे में किसान हितों से जुड़े लोग सवाल उठा रहे हैं कि कुछ ही समय बाद पेश होने वाले आम बजट में गांव, खेती और किसान को बचाने के लिए क्या पहल होगी।
मजदूर बन गया स्पेशल ओलिंपिक में स्वर्ण पदक विजेता हामिद

मजदूर बन गया स्पेशल ओलिंपिक में स्वर्ण पदक विजेता हामिद

इसे वक्त की बेरुखी कहें या किस्मत का खेल, लेकिन शंघाई स्पेशल ओलंपिक में देश के लिए फख्र के लम्हे जुटाने वाला एक दिव्यांग एथलीट इन दिनों रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने को मजबूर है। लखनउ के हामिद ने 2007 में शंघाई में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक हासिल कर देश का सिर गर्व से उंचा कर दिया था। लेकिन अफसोस कि इतनी बड़ी उपलब्धि भी उसकी किस्मत नहीं बदल सकी और आज वह अपने गुजर-बसर के लिए मजदूरी करने को बाध्य है।
सियाचिन में जीवित बचे जवान का जीवन के लिए संघर्ष जारी

सियाचिन में जीवित बचे जवान का जीवन के लिए संघर्ष जारी

सियाचिन ग्लेशियर में एक सप्ताह पहले बर्फ खिसकने से 30 फुट नीचे दबे रहने के बाद जीवित निकाले गए लांस नायक हनमंथप्पा कोप्पाड का दिल्ली के सैन्य अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष जारी है। अस्पताल के अनुसार कोप्पाड कोमा में हैं और उनकी हालत अत्यंत गंभीर बनी हुई है। अगले 24 से 48 घंटे काफी कठिन रहने का अनुमान है।
चर्चाः हिमालय से नई रोशनी | आलोक मेहता

चर्चाः हिमालय से नई रोशनी | आलोक मेहता

नेपाल में मस्ती के साथ डूबने वाला सूरज अगली सुबह नई चमक के साथ प्रगट होता दिखता है। रात की मस्ती में नाचना, गाना, लड़ाई-झगड़ा, नफरत-प्यार सब होता है। लेकिन सुबह सब काम पर निकल पड़ते हैं। तराई में रहने वाले मधेशियों के साथ गहरे तनाव के बावजूद इसी मानसिकता के साथ नेपाल सरकार, अधिकारी, भावुक मधेशी शांतभाव से आगे बढ़ने को तैयार हो गए हैं।
चर्चाः गरीब की जेब से डिजिटल क्रांति | आलोक मेहता

चर्चाः गरीब की जेब से डिजिटल क्रांति | आलोक मेहता

डिजिटल इंडिया का नारा आकर्षक है। रिक्‍शे वाला और सब्जी विक्रेता अथवा दूर-दराज काम कर रहे मजदूर के पास भी मोबाइल फोन पहुंच गया है। सरकार गौरव के साथ कहने लगी है कि देश में एक सौ करोड़ मोबाइल फोन लोगों के हाथों में दिखने वाले हैं। इस क्रांति से लोगों को सुविधा हो रही है, लेकिन धीरे-धीरे सरकार और निजी कंपनियां गरीब लोगों की जेब अधिक खाली करने लगी है।