लखनउ के अलीगंज के रहने वाले 30 वर्षीय हामिद ने अक्तूबर 2007 में चीन के शंघाई में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक हासिल करके पूरे दुनिया के सामने देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। लेकिन अफसोस कि इतनी बड़ी उपलब्धि भी उसकी किस्मत नहीं बदल सकी। हामिद की मां हदीकुन्निसा ने बताया कि मानसिक रूप से विकलांग, मगर बहुमुखी प्रतिभा के धनी उनके बेटे ने जब शंघाई में दौड़, उंची कूद और गोलाफेंक स्पर्धाओं में कामयाबी के झंडे गाड़े थे तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उसे अपने आवास पर आयोजित चाय पार्टी में बुलाया था और उसे नौकरी और नकद इनाम देने का वादा किया था, लेकिन सब कोरा साबित हुआ।
हामिद के साथ शंघाई गए उसके कोच एजाज ने बताया कि वह उन स्पेशल ओलंपिक की पांच स्पर्धाओं में हिस्सा लेने वाला भारत का एकमात्र एथलीट था। उन्होंने बताया कि हामिद की मां उसे मंदबुद्धि बच्चों के लिए काम करने वाले चेतना संस्थान में लेकर आई थीं और यहीं पर उसने अपनी खेल प्रतिभा को निखारना शुरू किया था। एजाज ने बताया कि हामिद वर्ष 2003 से उनके साथ जुड़ा है। वह होनहार खिलाड़ी होने के साथ समझदार भी है। बस, उसे थोड़े सहारे की जरूरत है। अगर उसे कोई स्थायी नौकरी मिल जाए तो उसकी जिंदगी संवर सकती है।
हामिद टूटी-फूटी भाषा में जो कुछ बताता है, उससे ज्यादा तो उसे विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में हासिल हुए 50 से अधिक पदक और प्रमाणपत्र बयान करते हैं। हामिद ने नवम्बर 2009 में मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय हैंडबॉल प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान, नवंबर 2015 में रिले रेस तथा ऊंची कूद स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया था। इसके अलावा वह साल 2006 में बरेली में आयोजित स्टेट एथलेटिक्स मीट में भी हिस्सा ले चुका है। वह पिछले साल लॉस एंजिलिस में हुए वर्ल्ड स्पेशल समर गेम्स के सम्भावितों में भी चुना गया था। स्थानीय स्तर पर हामिद के प्रतियोगिताओं में पदक जीतने के तो अनगिनत किस्से हैं। वह एथलेटिक्स में निपुण होने के साथ-साथ चित्रकला, नृत्य, गिटार वादन, बास्केटबॉल, वालीबॉल, बैडमिंटन, बाधा दौड़ और बोच्ची जैसे खेलों में भी माहिर है।
हदीकुन्निसा ने बताया कि उनके शौहर कई साल पहले गुजर गए थे। बुढ़ापे के कारण वह अब अपने परिवार की गाड़ी नहीं घसीट सकती हैं लिहाजा दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए हामिद मजदूरी करने को मजबूर है। उसकी यह हालत दिव्यांग एथलीटों के प्रति सरकारी तंत्र की बेरुखी की तरफ इशारा करती है। हदीकुन्निसा का कहना है कि शंघाई में देश का नाम रोशन करने के बाद अचानक लाइमलाइट में आए इस अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी को उस वक्त लगा था कि उसकी किस्मत बदल जाएगी लेकिन मीडिया का ध्यान हटते ही सरकार से लेकर समाज तक उसे उपेक्षित करने लगा। हालांकि उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्हें अब भी लगता है कि सरकार उसे नौकरी और आर्थिक सहायता देने का वादा पूरा करेगी और उनकी किस्मत बदल जाएगी, जैसे कि हामिद के जैसे ही दूसरे राज्यों के विशेष एथलीटों की बदली है।