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हाशिमपुरा: इंसाफ की राह में ठोकर

हाशिमपुरा: इंसाफ की राह में ठोकर

अट्ठाइस साल पहले हिरासत में पीएसी द्वारा मारे गए हाशिमपुरा के ४२ मुसलमानों की हत्या का कोई दोषी नहीं ठहराया गया। निचली अदालत द्वारा सबूतों के अभाव में सभी १६ आरो‌पियों को बरी करने के खिलाफ लोगों में आक्रोश है।
हाशिमपुरा फैसले के खिलाफ मुखर हुआ क्षोभ

हाशिमपुरा फैसले के खिलाफ मुखर हुआ क्षोभ

हाशिमपुरा फैसले के खिलाफ मुखर हुआ हाशिमपुरा में २८ साल पहले पीएसी द्वारा मारे गए लोगों पर आए अदालती फैसले के खिलाफ गोलबंदी तेज। पीड़ितों के साथ अन्य संगठनों ने बैठकों, प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू
वित्त आयोग की सिफारिशों से राज्य नाखुश

वित्त आयोग की सिफारिशों से राज्य नाखुश

चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिश को अगर लागू कर दिया जाए तो बिहार, असम, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे राज्यों का केंद्रीय करों में हिस्सा घट सकता है। इन राज्यों ने वित्त आयोग की सिफारिशों से अपनी नाराजगी जताई है।
निजी स्टाफ में रिश्तेदार

निजी स्टाफ में रिश्तेदार

ध्य प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले मंत्री की रिश्तेदारियां राजस्थान में हैं। इसी का फायदा उठाते हुए उन्होंने ने अपने निजी स्टाफ में अपने रिश्तेदार की नियुक्ति कर दी है।
पत्रकारों के पर कतरने की तैयारी

पत्रकारों के पर कतरने की तैयारी

तेलंगाना सरकार राज्य सचिवालय में मीडियाकर्मियों की आवाजाही को नियिमत करने का मन बना रही है। इससे संबंधित प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। यह जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने कहा कि पत्रकारों के साथ मशविरे के बाद इस प्रस्ताव पर फैसला किया जाएगा।
ग़ाजीपुर में बीमार हैं स्वास्थ्य केंद्र

ग़ाजीपुर में बीमार हैं स्वास्थ्य केंद्र

गाजीपुर जिला चिकित्सालय के आकस्मिक चिकित्सा विभाग में सुबह के दस बजे हैं और इलाज के लिए कोई डॉक्टर नहीं है। पूछने पर पता चला कि आज डॉक्टर साहब नहीं आएंगे।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।