Advertisement

Search Result : "जेएनयू विश्वविद्यालय"

भारतीय मीडिया और स्त्री सौंदर्य के रूपक-विरूपक

भारतीय मीडिया और स्त्री सौंदर्य के रूपक-विरूपक

बाज़ार को बेचने हैं सौंदर्य को बढ़ाने वाले संसाधन इसलिए ‘च्‍वाइसेस’ या विकल्‍पों की बात हो रही है। लेकिन मुझे परेशानी इस बात से ज्यादा है कि वही स्त्री जब भारत के सड़कों, गलियों, खेतों, खलिहानों, कस्बों में बलत्कृत, क्षत-विक्षत मृत शरीर के रूप मे पाई जाती है। तब ना आपको उस पर बात करने से गुरेज है और ना उसका छायांकन करने में। लेकिन वही स्त्री जीवित अवस्था में अपने उसी शरीर पर हक की बातें करती है तो आपको 'परिवार व्यवस्था' से लेकर 'स्त्री देवी' के भ्रम के टूटने की धमक सुनाई देने लगती है।
व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

जब वह मेरे दफ्तर मिलने के लिए आए तो अचानक ही लगा कि मेरा दफ्तर भी विकलांग व्यक्ति के लिए कितना असुविधाजनक है। वह हथेलियों में हवाई चप्पल पहने हुए पूरी सहजता और जबर्दस्त आत्मविश्वास के साथ दफ्तर में आ चुके थे। तकरीबन लपकते हुए वह कुर्सी की ओर बढ़े।
कविता - सुशील उपाध्याय

कविता - सुशील उपाध्याय

उपाध्याय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्याल में प्राध्यापक हैं। अध्यापन से पहले वह प्रखर पत्रकार रह चुके हैं। अमर उजाला और हिंदुस्तान अखबार में काम करते हुए उन्होंने रिपोर्टिंग के क्षेत्र में जो भी विविधताएं महसूस कीं उन्हें बाद में कविता में ढाला। उनकी खबरों की समझ और कविता की संवेदना मिल कर जो काव्य पैदा करती है, वह कविता को नई भाषा देती है।
मुंबई में खुलेगा हार्वर्ड विश्वविद्यालय का ऑफिस

मुंबई में खुलेगा हार्वर्ड विश्वविद्यालय का ऑफिस

अमेरिका का प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय भारत, चीन और दक्षिण एशिया दूसरे देशों में अपने कार्यालय खोलेगा ताकि इन देशों में उससे संबद्ध संस्थाएं अनुसंधान एवं अकादमी संबंधी कार्य कर सकें।
विकास स्वरूप विदेश मंत्रालय के नए प्रवक्ता

विकास स्वरूप विदेश मंत्रालय के नए प्रवक्ता

विदेश मंत्रालय ने 1986 बैच के आइएफएस अफसर विकास स्वरूप को नया प्रवक्ता नियुक्त किया है। वह अकबरूद्दीन का स्थान लेंगे। इलाहबाद विश्वविद्यालय से स्नातक स्वरूप क्यू एंड ए किताब से खासे चर्चित रहे हैं
जेएनयू में आदिवासी साहित्य की गूंज

जेएनयू में आदिवासी साहित्य की गूंज

भारतीय साहित्य में आजकल एक नई धारा चर्चा में है। आदिवासी साहित्य नाम की इस धारा के लेखक दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में जुटे और उन्होंने आदिवासी जीवन से जुड़े मुद्दों को साहित्य में उठाने की वकालत की।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
Advertisement
Advertisement
Advertisement