प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रिकेट वर्ल्ड कप से ठीक पहले सार्क देशों के नेताओं के साथ संपर्क साधा और क्रिकेट पर चर्चा की। भारत के अलावा पाकिस्तान, बांगलादेश, श्रीलंका और अफ़ग़ानिस्तान की टीमों को उन्होंने शुभकामनाएं भेजीं। पाकिस्तान के साथ सचिव स्तर की बातचीत दुबारा शुरु होने के संकेत फिर से मिलने लगे हैं और इसे क्रिकेट कूटनीति की जीत के रूप में देखा जाने लगा है।
विश्व कप के पहले मैच से ही उलटफेर का आगाज हो चुका है। जैसी कि आशंका थी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की उछाल और स्विंग लेती पिच पर दक्षिण एशियाई टीमों का खेलना मुश्किल हो जाएगा, न्यूजीलैंड ने अपनी जमीन पर श्रीलंका को 98 रनों के बड़े अंतर से धो डाला।
विश्व कप के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड के समक्ष नौ विकेट गंवाकर जीत के लिए 343 रनों का लक्ष्य दिया। पूल बी के पहले मैच में मेजबान टीम न्यूजीलैंड ने जिस तरह श्रीलंका को बड़े अंतर से हराया, अब लगता है दूसरी मेजबान टीम ऑस्ट्रेलिया भी उसी राह पर है।
विश्व कप के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड के समक्ष नौ विकेट गंवाकर जीत के लिए 343 रनों का लक्ष्य दिया लेकिन इंग्लैंड की टीम 231 रनों पर ही ऑल आउट हो गई।
मिस्र की राजधानी काहिरा में फुटबॉल मैच के दौरान 30 लोगों की मौत हो गई। एक मैच के दौरान स्टेडियम में प्रवेश को लेकर फुटबाल प्रेमियों और पुलिस के बीच का संघर्ष इसकी वजह बना। इस घटना में कई लोग घायल भी हैं।
पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी अब तक टीम इंडिया का चुनाव न होने से हैरान हैं। बेदी का मानना है कि विश्व कप में दस दिन से भी कम समय बचा है और भारत अपनी मुख्य टीम की पहचान तक नहीं पा रहा है। इससे टीम के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है।
चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?