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विश्व कप: भारत-पाक मैच का मनोविज्ञान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रिकेट वर्ल्ड कप से ठीक पहले सार्क देशों के नेताओं के साथ संपर्क साधा और क्रिकेट पर चर्चा की। भारत के अलावा पाकिस्तान, बांगलादेश, श्रीलंका और अफ़ग़ानिस्तान की टीमों को उन्होंने शुभकामनाएं भेजीं। पाकिस्तान के साथ सचिव स्तर की बातचीत दुबारा शुरु होने के संकेत फिर से मिलने लगे हैं और इसे क्रिकेट कूटनीति की जीत के रूप में देखा जाने लगा है।
विश्व कप: भारत-पाक मैच का मनोविज्ञान

वहीं दूसरी तरफ टीवी पर नज़र डाले तो भारत में, और पाकिस्तानी मीडिया में भी, 15 फ़रवरी के मैच को लेकर उन्माद सभी सीमाएं लांघता जा रहा है। क्रिकेट के एक मैच को दर्शकों तक पंहुचाने के लिए युद्ध के बिंब गढ़े जा रहे हैं।

क्रिकेट का महायुद्ध, वर्ल्ड वार, महासंग्राम, करो या मरो, हार मत जाना, मदर ऑफ़ ऑल बैटल्स जैसे शीर्षकों के साथ घंटे-घंटे भर के टीवी प्रोग्राम दिखाए जा रहे हैं जिसमें आग उगलते एंकर्स ऐसी आक्रामकता दिखा रहे हैं मानों सच में युद्ध हो रहा हो।

ये युद्धोन्माद दरअसल ज़्यादा से ज्यादा लोगों को टीवी से चिपकाए रखने में सहायक साबित होता है। एक आकलन के मुताबिक रविवार को जब एडिलेड में ये मैच खेला जाएगा तब 30 करोड़ दर्शक इसे टीवी पर देख रहे होंगे। जब कुछ महीने पहले इस मैच के टिकटों की ऑनलाइन बिक्री शुरु हुई थी तब कुछ ही मिनटों में तमाम चालीस हज़ार टिकटें बिक गई थी।      

चंद दिनों पहले पाकिस्तान के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ शोएब अख्तर दिल्ली में थे और जब मैनें उनसे पूछा की भारत-पाकिस्तान मैच की खिलाड़ियों की नज़रों में क्या ख़ासियत है तो उन्होंने कहा, “भारत और पाकिस्तान के मैच ग्रांउड्स पर नहीं खेले जाते बल्कि यै मैच ड्रेसिंग रूम में खेले जाते हैं। ये मैच दिमाग़ों में खेला जाता है कि कौन सी टीम ज़्यादा से ज़्यादा तनाव झेल सकती है और दर्शकों की उम्मीदों के बोझ तले भरभरा नहीं जाती है।”

पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंज़माम-उल-हक़ याद करते हैं कि उनके मुल्क में दर्शक सिर्फ़ एक ही मांग रखते हैं कि वर्ल्ड कप जीतों या ना जीतो, इंडिया से मत हार जाना! ये अलग बात है कि वर्ल्ड कप में पाकिस्तान ने कभी भी भारत को हराया नहीं हैं।

खिलाड़ियों पर जीत का दवाब भारत में भी कुछ कम नहीं है और यहां हार का मतलब है खिलाड़ियों के घरों पर पत्थरबाज़ी। मोहम्मद कैफ़ से पूछ लें, या हरभजन सिंह से जिन्होंने विदेशों में अखबारों में पढ़ा की बीती रात जब भारतीय टीम हार गई थी तब उनके घरों के सामने कितना हंगामा हुआ। 2011 के वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ़ सेमीफाइनल को याद करते हुए हरभजन सिंह कहते हैं, “पिछली बार तो हम जीत गए थे लेकिन मैने पहले ही घर पर पुलिस बुला ली थी की कहीं ग़लती से हार गए तो पता नहीं लोग क्या कर बैठें।”

दरअसल मीडिया भारत बनाम पाकिस्तान मैच को बढ़ावा सिर्फ़ और सिर्फ़ कमर्शियल सक्सैस के लिए देता है लेकिन इससे आसानी से प्रभाव में आ जाने वाले लोगों के अवचेतन मन में छिपे हिंसक भावों को बल मिलता है।

तो इस रविवार जब महेंद्र सिंह धोनी और मिस्बाह उल हक़ मैच से पहले टॉस के लिए  सिक्का उछालेंगे तो उनके मन में भी यही चल रहा होगा की कहीं आज हार मत जाना क्योंकि भारत-पाक क्रिकेट एक ज़ीरो-सम गेम बन गया है जिसमें जीत के बाद एक तरफ़ तो जश्न के दीए होंगे तो दूसरी तरफ़ ग़म की आंधी। 

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं।)

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