नागरिकों की निजता खतरे में है। हर कदम पर यह खतरा महसूस होने लगा है। आधार कार्ड से लेकर डीएनए विधेयक तक और गली-मोहल्ले में कानून का हवाला देकर फैली नैतिक पुलिसिंग तक। मुंबई में पुलिस ने होटल पर छापा मारकर वहां कमरों में टिके युगलों को अपराधियों की तरह निकाला और उनके साथ बदसलूकी की। उन्हें सार्वजनिक अश्लीलता संबंधी कानून के तहत दोषी बताया गया। क्या यह किसी सभ्य-परिपक्व राज्य की निशानी है। नहीं।
उच्चतम न्यायालय ने सरकार की सभी नागरिकों को आधार कार्ड मुहैया कराने की महत्वाकांक्षी परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंपने के केंद्र के आग्रह पर आज सुनवाई पूरी कर ली। न्यायालय इस पर मंगलवार को फैसला सुनाएगा। न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि वह इस बारे में निर्णय करेगी कि केंद्र द्वारा उठाए गए सवालों को वृहद पीठ को भेजा जा सकता है या नहीं।
डीएनए प्रोफालिंग बिल पर समिति की रिपोर्ट पूरी, सरकार बिल लाने की तैयारी में। भारत में भेदभावमूलक व्यवहार की लंबी परंपरा रही है और इसमें इस तकनीक का दुरुपयोग किया जा सकता है, जैसे घुमंतू जनजातियों-विमुक्त जनजातियों को अपराधी माना जाता रहा है। इसके अलावा आबादी के आधार पर भी भेदभाव किया जा सकता है और इससे जाति और धर्म राजनीति बहुत गहराई से प्रभावित होने की आशंका है। अल्पसंख्यक समुदाय पहले से ही प्रोफाइलिंग का शिकार है।