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42 साल कोमा के बाद अरुणा शानबाग का निधन

42 साल कोमा के बाद अरुणा शानबाग का निधन

करीब 42 सालों से जिंदा लाश की तरह केईएम अस्पताल के वॉर्ड नंबर 4 में भर्ती अरुणा शानबाग की मौत हो गई। तीन दिन पहले उन्हें निमोनिया के चलते आईसीयू में रखा गया था।
कहानी - भेड़िया

कहानी - भेड़िया

दिल्ली में जन्मी योगिता यादव का पहला कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ के आठवें नवलेखन पुरस्कार से सम्मनित किया गया और बाद में वहीं से प्रकाशित हुआ। कहानी झीनी झीनी रे चदरिया को अपने खास शिल्प के कारण आठवें अखिल भारतीय कलमकार कहानी प्रतियोगिता में दि्वतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्हें जम्मू कश्मीर के विशेष सांस्कृतिक अध्ययन के लिए संस्कृति मंत्रालय से जूनियर फैलोशिप मिल चुकी है। वह पिछले 13 सालों से पत्रकारिता में भी सक्रीय हैं। फिलवक्त दैनिक जागरण के जम्मू संस्करण में कार्यरत।
जे.बी. पटनायक नहीं रहे

जे.बी. पटनायक नहीं रहे

ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं असम के पूर्व राज्यपाल जानकी बल्लभ पटनायक का दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार सुबह एक अस्पताल में निधन हो गया है। इससे कुछ घंटे पहले उन्होंने तिरूमाला स्थित भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर में पूजा-अर्चना की थी।
चिंतक, कवि कैलाश वाजपेयी का निधन

चिंतक, कवि कैलाश वाजपेयी का निधन

कविता संग्रह हवा में हस्ताक्षर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि, चिंतक और जाने माने साहित्यकार कैलाश वाजपेयी का दिल्ली में हद्यगति रुक जाने से निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे।
सिंगापुर के जनक ली क्वान यू का निधन

सिंगापुर के जनक ली क्वान यू का निधन

सिंगापुर के संस्थापक जनक ली क्वान यू का 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने आधी सदी से अधिक समय तक देश की राजनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखा और पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश को एक वैश्विक व्यापार एवं वित्तीय शक्ति में तब्दील कर दिया।
दूरदर्शी नेता थे ली कुआन येव : ओबामा

दूरदर्शी नेता थे ली कुआन येव : ओबामा

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सिंगापुर के प्रथम प्रधानमंत्री ली कुआन येव की प्रशंसा करते हुए उन्हें एक ऐसा दूरदर्शी नेता बताया जिन्होंने 1965 में अपने देश की स्वतंत्रता के बाद उसे आज विश्व के सबसे समृद्ध देशों में शुमार करने में अहम भूमिका निभाई।
निर्भीक पत्रकारिता की मशाल का बुझना

निर्भीक पत्रकारिता की मशाल का बुझना

निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का पालन भारतीय राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों में सदा कठिन रहा है। महात्मा गांधी, तिलक या पराड़र और गणेश शंकर विद्यार्थी के युग से तुलना करना उचित नहीं होगा, लेकिन आजादी के बाद भारतीय पत्रकारिता में अलग तरह की चुनौतियां रही हैं। इस दृष्टि से विनोद मेहता ने पिछले 42 वर्षों में भारतीय पत्रकारिता में नए प्रयोगों के साथ निष्पक्ष एवं प्रोफेशनल मानदंड स्थापित किए।
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