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Search Result : "पाकिस्तानी हाथ"

नीतीश के हाथ फिर बिहार

नीतीश के हाथ फिर बिहार

बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। जीतनराम मांझी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार को राजभवन बुलाकर मुख्यमंत्री बनने का न्योता दिया है।
पाकिस्तानी नाव को भारत ने उड़ाया था?

पाकिस्तानी नाव को भारत ने उड़ाया था?

अब शायद सच सामने आए कि 31 दिसंबर की रात को भारत-पाकिस्तान समुद्री सीमा पर क्या हुआ था। पाकिस्तान की नाव में सवार अपराधियों या आतंकवादियों ने खुद आग लगा ली या फिर भारत सरकार ने उसे उड़ा दिया, यह फिर एक बड़ा सवाल बन गया है। कोस्ट गार्ड के डेप्टी इंस्पेक्टर जनरल बी.के. लोशाली ने इस सवाल पर केंद्र सरकार बुरी तरह से घिर गई है।
‌ चुनाव से पहले आरोपों, अफवाहों और हमलों का दौर

‌ चुनाव से पहले आरोपों, अफवाहों और हमलों का दौर

जैसे-जैसे दिल्ली विधानसभा चुनावों की तारीख नजदीक आ रही है वैसे-वैसे आरोपों-प्रत्यारोपों और खींचतान का सिलसिला बढ़ रहा है। इस महीने के मध्य तक तय हो जाएगा क‌ि दिल्ली की सत्ता पर कौन काबिज रहेगा। कमल, झाड़ू या हाथ। हालांकि मुख्य मुकाबले में कमल और झाड़ू ही हैं।
सरैया की घटना में बाहरी हाथ : सीएम

सरैया की घटना में बाहरी हाथ : सीएम

दंगे के चौथे दिन बुधवार को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पीडि़तों का दर्द जानने पहुंचे। घटना को दुखद बताते हुए उन्होंने इसमें बाहरी लोगों का हाथ होने की आशंका जताई। साथ ही कनीय पुलिस अधिकारियों को भी इसके लिए दोषी ठहराया।
शांति के पासे फेंकने की जरूरत

शांति के पासे फेंकने की जरूरत

निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्‍वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।
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