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अरुणा शानबाग की मौत और मुक्ति की जद्दोजहद

अरुणा शानबाग की मौत और मुक्ति की जद्दोजहद

पिछले 42 साल में उसने एक शब्द नहीं बोला न ही एक कदम भी वह चल पाई। जीवन के चार दशक उसने बिस्तर पर बिताए जबकि 23 साल की उम्र में उसने भी एक सुखमय विवाहित जीवन के सपने देखे थे और उसके सपने सच होने में केवल कुछ दिनों का ही फासला था। लेकिन महज एक पुरुष की हवस ने उसके जीवन को नरक में बदल दिया।
42 साल कोमा के बाद अरुणा शानबाग का निधन

42 साल कोमा के बाद अरुणा शानबाग का निधन

करीब 42 सालों से जिंदा लाश की तरह केईएम अस्पताल के वॉर्ड नंबर 4 में भर्ती अरुणा शानबाग की मौत हो गई। तीन दिन पहले उन्हें निमोनिया के चलते आईसीयू में रखा गया था।
निर्यात हिंदुत्व और जाति का

निर्यात हिंदुत्व और जाति का

जातिगत उत्पीडऩ और भेदभाव के खिलाफ मुखर होता दलित डायस्पोरा इससे चिंतित।भारतीय डायस्पोरा का यह दलित स्वर या दलित डायस्पोरा दुनिया के तमाम बड़े देशों में धीरे-धीरे मजबूत होता दिख रहा है। गैर दलित डायस्पोरा ने तो बड़ी तादाद में (सबने नहीं) अपनी राजनीति स्पष्ट कर दी है, अपना झुकाव स्पष्ट कर दिया है, दलित डायस्पोरा अभी उसके साथ खड़ा नहीं दिख रहा। भारत की नई सरकार से उसे भी अपेक्षाएं हैं। वह भी बेहतर सुविधाओं और व्यापार की संभावनाओं के प्रति आशावान है लेकिन जाति तथा जातिगत उत्पीडऩ के सवाल पर फिलहाल कोई समझौता करता नहीं दिखता।
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