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चर्चा : अपने हाथ क्यों जलाएं ?। आलोक मेहता

चर्चा : अपने हाथ क्यों जलाएं ?। आलोक मेहता

विरोध, प्रदर्शन, आंदोलन, लोकतंत्र में अनुचित नहीं माने जाते। लेकिन अपने खेत-खलिहान-घर-आंगन को सुरक्षित रखने के साथ मासूम बच्चों के स्कूलों, बीमार और घायलों का उपचार करने वाले अस्पतालों, गांव से कस्बों तक पहंुचाने वाली बसों अथवा जानमाल की सुरक्षा के लिए बनाए गए थानों को आग लगाने के बजाय सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी तो समाज की है।
चर्चा : कानून के पहरेदारों की आचार संहिता। आलोक मेहता

चर्चा : कानून के पहरेदारों की आचार संहिता। आलोक मेहता

राजनेता हों या अधिकारी, कारपोरेट किंग पूंजीपति या मजदूर – अदालत और अस्पताल पहंुचते ही कांपने लगते हैं। अपराध छोटा हो या बड़ा – कानून का शिकंजा खतरनाक साबित हो सकता है। इसी तरह हाथ या पैर की ऊंगली का नाखून ही निकला हो अथवा हृदय रोग – सर्जन के चमकते चाकू से निकलने वाला नतीजा जिंदगी दे या ले सकता है।
चर्चा : संवाद बिना नहीं संसद। आलोक मेहता

चर्चा : संवाद बिना नहीं संसद। आलोक मेहता

लोकतंत्र में असहमति् और प्रतिपक्ष अपरिहार्य है। भारी बहुमत के बावजूद सत्तारूढ़ पक्ष को यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि मंत्री या अधिकारी निरंकुश न हो जाएं। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के बजट सत्र से पहले प्रतिपक्ष के नेताओं के साथ्‍ा बैठक की सही पहल की है।
चर्चा: गंदगी का विश्व रिकॉर्ड | आलोक मेहता

चर्चा: गंदगी का विश्व रिकॉर्ड | आलोक मेहता

बहुत पहले अमेरिकी पत्रिका ने भारत के विकास की खिल्ली उड़ाते हुए बैलगाड़ी में अंतरिक्ष विमान ले जाने वाला एक फोटो छापा था। इसी तरह यूरोप में मुझसे लोग पूछते थे, ‘भारत के लोगों ने कभी रेलगाड़ी या हवाई जहाज देखा है? क्या अधिकांश आबादी छाल-पत्ते लपेटकर रहती है?’ अब ऐसे मजाक का कोई नहीं कर सकता है। अब संपन्न देशों के लोग भारत की प्रगति से चकित हैं और उनका धंधा और सिलीकॉन वैली भारतीयों पर निर्भर रहने लगी है।
नीति आयोग में दो नए सलाहकार

नीति आयोग में दो नए सलाहकार

आलोक कुमार और जितेन्द्र कुमार को नीति आयोग में पांच साल के लिए सलाहकार नियुक्त किया गया है। ये नियुक्तियां शनिवार से प्रभावी हो गई हैं। आलोक उत्तर प्रदेश कैडर के 1993 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जबकि जितेंद्र उत्तराखंड कैडर के 1987 बैच के भारतीय वन सेवा के अधिकारी हैं।
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