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हनीफ मदार की कहानी 'जश्न -ए-आजादी'

हनीफ मदार की कहानी 'जश्न -ए-आजादी'

‘हंस’, ‘वर्तमान साहित्य’, ‘परिकथा’, ‘उद्भावना’, ‘वागर्थ, ‘समरलोक, अभिव्यक्ति, सुखनवर, लोकगंगा, युगतेवर, लोक संवाद और दैनिक जागरण में कहानी प्रकाशित। कहानी संग्रह - ‘बंद कमरे की रोशनी।’ अनेक लेखकों की महत्वपूर्ण कृतियों की दर्जनों समीक्षाओं के अलावा नाट्य समीक्षाएं। नाटक एवं नाट्य रुपांतरण। प्रेमचंद, मंटो, ज्ञानप्रकाश विवेक आदि की कई कहानियों का नाट्य रुपांतरण ‘संकेत रंग टोली द्वारा मंचित। ‘जन सिनेमा द्वारा निर्मित एवं ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी ‘कैद’ पर बनी हिंदी फिल्म के लिए पटकथा एवं संवाद लेखन।
जिस्म बाजार की तंग गलियों में तंग जिस्मोरूह

जिस्म बाजार की तंग गलियों में तंग जिस्मोरूह

मदार गेट पर खाकी वर्दीधारी ने रिक्शेवाले से तंज आवाज में कहा ’ऐ, सुनो इन्हें रंडी बाजार की गली में छोड़ दो।’ तहजीब के शहर अलीगढ़ में मेरे कानों में पड़े ये पहले अल्फाज थे। दो हिस्सों में बंटे अलीगढ़ शहर का ‘मदार गेट’ पुराने शहर का हिस्सा है। तंग गलियां, रोजमर्रा के सामान की दुकानें, दुकानों के ऊपर घरों से झांकते झरोखे और पुरानी पड़ चुकी बिजली की तारों का जाल। काफी कुछ पुरानी दिल्ली जैसा। कुछ कोस की दूरी के बाद रिक्शावाले ने मुझे मदार गेट की उस गली में छोड़ दिया। खाकी वर्दीधारी मोटरसाइकिल पर मेरे पीछे आए। गली में मूढ़े पर एक खूबसूरत महिला चटख पीले रंग के कपड़ों में बैठी है। वर्दीधारी ने उस से कहा ‘यह मैडम दिल्ली से आई हैं, तुम लोगों से बात करेंगी।‘ इतना बोलकर वहां से चले गए। उस महिला ने मुझे बैठने के लिए मूढ़ा दिया। काफी देर तक हम यहां-वहां की बातें करते रहे।