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ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

मिसरा बेशक यह साहिर लुधियानवी के गीत का है लेकिन अफसानानिगार सआदत हसन मंटो पर सटीक बैठता है। ताउम्र ढोंग, तमाशे और साहित्य की राजनीति से दूर रहने वाले मंटो ने कहा था- ‘ हर शहर में बदरौएं और मोरियां मौजूद हैं जो शहर की गंदगी को बाहर ले जाती हैं। हम अगर अपने मरमरी गुसलखानों की बात कर सकते हैं, अगर हम साबुन और लैवेंडर का जिक्रकर सकते हैं तो उन मोरियों और बदरौओं का जिक्र क्यों नहीं कर सकते जो हमारे बदन की मैल पीती हैं।‘ मंटो की 100वीं जन्मशताब्दी से लेकर आज तक उनके नाम पर उनके तथाकथित मुरीदों ने राजनीति, तमाशा और ढोंग ही किया है। मंटो के इन मुरीदों को वह सब चाहिए जो मंटो को नहीं चाहिए था। मंटो के माएने तो यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।
अचार मंत्रालय के लिए भी स्मृति पर भरोसा नहींः मधु किश्वर

अचार मंत्रालय के लिए भी स्मृति पर भरोसा नहींः मधु किश्वर

मोदी, मुस्लिम और मीडिया की लेखिका और सीएसडीएस की वरिष्ठ फेलो मधु पूर्णिमा किश्वर ने पिछले वर्ष मई में स्मृति ईरान के मानव संसाधन विकास मंत्री बनाए जाने पर अपनी गहरी नाराजगी जताई थी।
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