माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम को लेकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पर लगातार हमलों के बीच गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि वह जल्द ही इस सिलसिले में संसद में बयान देंगे।
कांग्रेस ने सोमवार को प्रधानमंत्री कार्यालय पर जमकर निशाना साधा। लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश के गृहमंत्री को सूचनाएं देर से मिलती हैं जबकि प्रधानमंत्री को पहले। ऐसे में यह माना जाए कि अगर देश में कुछ आपदा आती है तो प्रधानमंत्री कार्यालय गृहमंत्रालय को सूचित करेगा।
देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर ग्रीनपीस इंडिया पर हो रहे सरकारी दमन की निंदा की। सरकार के दमन की कार्रवाई के खिलाफ 180 संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है। पत्र में सामाजिक न्याय और गरीब-मजलूमों के अधिकार के लिये आंदोलन का इतिहास रखने वाले संगठनों पर हो रही दमन की कार्रवाई को शर्मनाक और निराशाजनक कहा है।
भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह सीआरपीएफ के एक कार्यक्रम में लिफ्ट में फंस गए। वह वहां लगभग 5 मिनट फंसे रहे। इसके बाद अलार्म बजाने पर उन्हें बाहर निकाला गया। इसे देश के गृहमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक माना जा रहा है।
देश में भगवा खेमे की ओर से चलाए जा रहे घर वापसी कार्यक्रम और अल्पसंख्यकों के प्रार्थना गृहों पर लगातार हो रहे हमलों के बीच सोमवार को देश के के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने धर्मांतरण पर सवाल उठा दिया और धर्मांतरण रोकने के लिए कानून की वकालत की।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने युवाओं के कट्टरपंथ की चपेट में आने पर फिक्र जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि युवाओं का कट्टरपंथ की तरफ झुकाव होना एक बड़ी चिंता का विषय है।
राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।