अरसे से बालू से तेल निकालने का मुहावरा अक्सर परिश्रम और तकनीक से असंभव को संभव करने वालों के लिए कहा-सुना, लिखा-पढ़ा जाता रहा है। करीब ढाई दशक पहले एक ऐसे कलाकार का उदय हुआ, जिसने बालू को लेकर नया मुहावरा गढ़ दिया। और अब बालू की बात आते ही बुद्धिजीवी, खास कर कला-प्रेमियों के मस्तिष्क में जो नाम कौंधता है वह है सात समंदर पार तक प्रख्यात रेत-कलाकार सुदर्शन पटनायक का।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक निजी समाचार चैनल को गुमराह करने वाले कार्यक्रम का प्रसारण करने को लेकर चेतावनी दी है। इस कार्यक्रम में चैनल ने यह दावा करते हुए उपराष्ट्रपति से गलत तरीके से सवाल किया था कि उन्होंने गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रध्वज को सलामी नहीं दी, जबकि उपराष्ट्रपति ने ऐसा किया था।
व्यापमं घोटाले और मौतों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिलने के बाद ‘पिंजरे के तोते’ सीबीआई के सामने एक बड़ी चुनौती इस कांड की गांठों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तार खोलने की होगी। व्यापमं की गांठ में संघ के तार का सिरा 1990 तक जाता है जब इस कांड के प्रमुख अभियुक्त और खनन सरगना सुधीर शर्मा ने संघ संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक के तौर पर अपना करिअर शुरू किया था। उनके पिता बाबूलाल शर्मा डेयरी निगम में किरानी थे। घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें शाम को दूध बेचना पड़ता था।
जैसे चीजें चल रही हैं, भारतीय अनुसंधान परिषद का नाम जल्द ही भारतीय इतिहास गोलमाल परिषद कर देना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सबसे पहले पहचान की एक गड़बड़ी को लें। भारत के गजट में अधिसूचित किया गया कि किन्हीं वी.वी हरिदास को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का नया सदस्य नियुक्त किया गया है जो ‘कालीकट में इतिहास के प्रोफेसर’ हैं। जब इन हरिदास महाशय ने हिचकते हुए आईसीएचआर फोन करके कहा कि वह इससे बहुत सम्मानित महसूस कर रहे हैं, तब पता चला कि यह वह हरिदास नहीं हैं जिनकी अनुशंसा मंत्रालय ने की थी। इतिहास में पीएचडी वी.वी हरिदास मंगलूर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। लेकिन यह तो कोई दूसरे पी.टी हरिदास थे जिन्हें परिषद के लिए मनोनीत किया गया था हालांकि वह पी.एच.डी नहीं थे।