नवंबर 2016 में नोटबंदी के फैसले के बाद 30 अगस्त 2017 को आई आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि 99 फीसदी बैन किए गए नोट वापस आ गए हैं। इसके बाद नोटबंदी के मकसद को लेकर सरकार पर सवाल उठने शुरू हो गए। इसी क्रम में सरकार भी बचाव में उतर आई। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके समर्थन में कई तर्क दिए। वहीं सरकार के कई मंत्रियों ने नोटबंदी को सफल बताते हुए एक के बाद एक ट्वीट किए। लेकिन इन ट्वीट्स में एक गड़बड़ है। असल में कई मंत्रियों के ट्वीट हूबहू एक दूसरे से मिलते-जुलते थे। ऐसा लग रहा था एक ही जगह से सारे ट्वीट किए गए हों। पहले ट्वीट देखिए-
मंत्रियों द्वारा किए गए ट्वीट्स
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने शनिवार को यह बात उठाई। उन्होंने यह भी कहा कि कैबिनेट में फेर-बदल कर देने से स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा।
जिन मंत्रियों ने एक जैसे ट्वीट किए उनमें थावर चंद गहलोत, ओम बिड़ला, सुरेश प्रभु, इंदरजीत सिंह, मनेका गांधी और अर्जुन राम मेघवाल का नाम शामिल है। इनमें से शुरूआती चार मंत्रियों के ट्वीट और बाद के दो मंत्रियों के ट्वीट एक जैसे थे। इनमें शब्दों से लेकर हैशटैग तक में कोई अंतर नहीं था। अगर कुछ लोग एक ही मुद्दे पर ट्वीट करें तो उनके विचारों में समानता हो सकती है लेकिन शब्दश: वे एक जैसा नहीं लिख सकते।
पीआर एजेंसियों की मदद?
इसके पीछे एक आशंका जताई जा रही है कि पीआर एजेंसी की मदद से ये सारे ट्वीट किए गए।
असल में किसी चीज को बढ़ावा देने के लिए पार्टियां पीआर एजेंसियों की मदद लेती हैं, जो सोशल मीडिया पर पार्टी की इमेज बिल्डिंग का काम करती हैं। ये लोग सोशल मीडिया पर कोई कैंपेन चलाकर मुहिम को सफल या असफल बताने का काम भी करते हैं। इसके लिए एक साथ कई हैंडल से एक साथ ट्वीट किए जाते हैं ताकि सोशल मीडिया की भीड़ में ये चीजें ज्यादा दिखाई दें और लोग उसी पर भरोसा करें।
इसके अलावा भाजपा के कई मंत्रियों की तरफ से नोटबंदी को सफल बताते हुए एक ही जैसे कार्ड भी डाले गए। ये देखिए-
मंत्रियों द्वारा ट्वीट किए गए कार्ड
इकॉनमिक टाइम्स ने कई आरटीआई की मदद से ये बात कही है कि इन पीआर एजेंसियों को सोशल मीडिया मैनेज करने के लिए पार्टियों की तरफ से 2 करोड़ रुपयों तक का भुगतान किया जाता है।
सरकार के खिलाफ बन रही नकारात्मक छवि को सकारात्मक बनाना इन एजेंसियों का काम है। वर्चुअल स्पेस की दुनिया में जो लोगों को आभास कराया जाता है, वे वही मानना शुरू कर देते हैं और यही इन एजेंसियों का हथियार है।