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सुधारों पर बीसीसीआई के रुख से सुप्रीम कोर्ट नाराज, कल देगा आदेश

देश में क्रिकेट के सुधार के लिए न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति के निर्देशों को लागू करने में बागी तेवर अपनाने और राज्य संगठनों को जल्दबाजी में करीब 400 करोड़ रूपये बांटने को लेकर भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) को आज उच्चतम न्यायालय की नाराजगी का सामना करना पड़ा।
सुधारों पर बीसीसीआई के रुख से सुप्रीम कोर्ट नाराज, कल देगा आदेश

शीर्ष अदालत ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश लोढ़ा की अध्यक्षता वाली समिति के निर्देशों के क्रियान्वयन के मुद्दे पर कल आदेश देने का फैसला किया। पीठ बीसीसीआई के इस रवैये से आहत थी कि शीर्ष अदालत और लोढ़ा समिति के फैसले और निर्देश वैधानिक प्रावधानों के विपरीत हैं। अदालत ने यह फैसला तब किया जब बीसीसीआई के वकील ने कल तक बिना शर्त यह शपथपत्र देने से इंकार किया कि वह राज्य संगठनों को कोष देना बंद करने के बारे में निर्देश प्राप्त करेंगे और समिति की सिफारिशों का पालन करेंगे। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, आपको बागी तेवर नहीं दिखाने चाहिए। इससे आपको कोई लाभ नहीं होने जा रहा। पीठ ने जोर दिया कि बीसीसीआई द्वारा धन के वितरण सहित सभी फैसलों में पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं वस्तुनिष्ठता सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं। 

न्यायमित्र के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम के न्यायाधीशों का ध्यान बीसीसीआई के हलफनामे की ओर दिलाते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का भी जिक्र किया और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मार्कंडेय काटजू को इसमें शामिल करने पर बोर्ड की आलोचना की। उन्होंने कहा कि बीसीसीआई को न्यायमूर्ति काटजू की टिप्पणियां लिखित में मिली थीं। हालांकि उसने बाद में खुद को उनसे दूर किया लेकिन हलफनामे में उनके नजरिये का प्रमुख रूप से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बाध्यकारी फैसले का पालन नहीं करने पर बीसीसीआई दीवानी और फौजदारी देानों तरह की अवमानना के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने सवाल किया कि क्या कोई संस्था फैसले को उलटने के लिए तरीके और उपाय खोज सकती है। जवाब है नहीं। यह दीवानी के साथ-साथ फौजदारी अवमानना है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद के बीसीसीआई के सभी फैसलों को शून्य घोषित किया जाए। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि शीर्ष अदालत को यह आदेश देना चाहिए कि छवि वाले अदालत की तरफ से नियुक्त प्रशासक बीसीसीआई पदाधिकारियों का स्थान लें।

सुब्रमण्यम की दलीलों का संज्ञान लेते हुए पीठ ने सवाल किया कि बीसीसीआई पदाधिकारियों की जगह लेने वाले कौन लोग हो सकते हैं। अदालत ने कहा कि वह लोढ़ा समिति से यह कह सकती है कि बीसीसीआई को निर्देशों का पालन करने के लिए एक और अवसर दिया जाए। शीर्ष अदालत ने कहा, दो विकल्प हैं। या तो हम कहें कि आप सिफारिशों का पालन करें या हम समिति से कहें कि उन्हें इसका पालन करने के लिए एक और मौका दिया जाए। वे बेहतर जानते हैं कि किस तरह के लोग प्रशासक हो सकते हैं। पीठ ने काटजू की टिप्पणी के संबंध में कहा, जब आप उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बन जाते हैं तो आप उस संस्था का हिस्सा हो जाते हैं जिससे गरिमा जुड़ी हुई है। पीठ ने सवाल किया कि क्या कोई पूर्व न्यायाधीश फैसलों के बारे में मीडिया से बात कर सकता है या संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर सकता है। पीठ कल अपना फैसला सुनाएगी। पीठ ने कहा कि बीसीसीआई मामले को टाल नहीं सकती और राज्य संगठनों को सुधार का उल्लंघन करने नहीं दे सकती। पीठ ने कहा कि उन्हें कोष देने को तुंरत रोका जाना चाहिए क्योंकि यह सार्वजनिक धन है तथा इस बात पर पूरी तरह से पारदर्शिता होनी चाहिए कि धन किस तरह से खर्च किया जा रहा है।

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