किरमानी ने कहा, मैं कुछ लोगों के गुरुर का पीड़ित रहा। मेरे साथ ऐसा हुआ। मेरे साथ खेलने वाले खिलाड़ी चयनकर्ता बन गए। यह घरेलू क्रिकेट में 1986 से 1993 के बीच हुआ और मैंने शानदार प्रदर्शन किया। मेरी फिटनेस में कोई कमी नहीं थी और न ही मैं किसी विवाद का हिस्सा रहा और इसके बावजूद मुझे नहीं चुना गया, इसके बारे में सबकुछ मेरी किताब में लिखा होगा। किरमानी ने बताया कि वह 2011 विश्व कप के दौरान अपनी किताब रिलीज करना चाहते थे लेकिन उन्हें ऐसा नहीं करने की सलाह दी गई थी। हालांकि उन्होंने अपनी किताब के नाम का फिलहाल खुलासा नहीं करने की बात करते हुए कहा, किताब का शीर्षक ध्यान खींचने वाला होना चाहिए। अगर कोई विवादास्पद शीर्षक होता है तो यह बहुत बिकती है।
किरमानी इससे भी निराश हैं कि उन्हें कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (केएससीए) के निदेशक पद पर बने रहने के लिए नहीं कहा गया। उन्होंने कहा, मैं केएससीए का छह साल तक निदेशक रहा और लेकिन इसके बाद उन्होंने मुझे मौका नहीं दिया। ऐसा क्यों हुआ। क्या मेरा प्रदर्शन खराब था। किस आधार पर। यह सिर्फ अहं है। उन्होंने कहा, हर चीज के लिए समय होता है और अब समय आ गया है कि मुझे कर्नल सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के लिए नामित किया जाए। यह पूछने पर कि उन्हें किसने निराश किया, किरमानी ने कहा, और कौन। उनकी कुर्सी की ताकत बोलती है। उनके पैसे की ताकत बोलती है।
आईपीएल टीमों की अगुवाई भारतीयों की जगह विदेशी खिलाडि़यों द्वारा करने के मुद्दे पर किरमानी ने कहा कि सभी देशों को पहले अपने खिलाडि़यों को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि कप्तानी और कोच के दावेदारों की कमी नहीं है। वर्ष 2015 सत्र में दिल्ली डेयरडेविल्स, किंग्स इलेवन पंजाब, सनराइजर्स हैदराबाद और राजस्थान रायल्स ने विदेशी खिलाडि़यों को अपना कप्तान बनाया था। किरमानी ने कहा कि वह कोचिंग पद के भूखे नहीं हैं लेकिन उन्हें लगता है कि उन्हें खेल की सेवा करने का मौका नहीं मिला।