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श्रीनि की न बनी, जेटली हुए बली

बीसीसीआई अध्यक्ष चुनाव के त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा समर्थकों का पलड़ा भारी, दौड़ में डालमिया, पवार और शिवलाल यादव आगे
श्रीनि की न बनी, जेटली हुए बली


भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) में सफाई अ‌‌भियान के तहत सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड के निर्वासित अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के चुनाव लड़ने पर ही रोक लगा दी है। आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में यह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल रहे सदस्य बोर्ड का चुनाव नहीं लड़ सकते। बीसीसीआई को छह हफ्ते के अंदर चुनाव कराने का आदेश देते हुए शीर्ष अदालत ने राजस्थानन रॉयल्स के मालिक राज कुंद्रा और श्रीननिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन को सट्टेबाजी का दोषी पाया है। श्रीनिवासन के ज्यादातर समर्थकों की सबसे बड़ी चिंता बीसीसीआई के नए अध्यक्ष के चुनाव को लेकर ही है? फिलहाल बोर्ड के ३१ सदस्यों के सदन में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े आठ सदस्य हैं, यानी बीसीसीआई की आठ इकाइयों पर भाजपा का ही नियंत्रण है और श्रीनि समर्थकों को १६ मतों का जरूरी बहुमत जुटाने के लिए भाजपा को ही मनाना होगा। दूसरी तरफ, श्रीनिवासन के विरोधी नहीं चाहते कि सुंदररामन अब आईपीएल के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) बने रहें। वे चाहते हैं कि बोर्ड में शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्तियों को बाहर का रास्ता दिखाने का यही सही वक्त है। उनके विरोधी अधिकारियों का कहना है कि बोर्ड कार्यकारी समिति की बैठक में सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित सर्वोच्च संस्थाि द्वारा सुंदररामन की भूमिका की जांच की जाए और उन्हें निलंबित किया जाए।
ऐसे हालात में श्रीनिवासन खेमे को एक ऐसा उम्मीदवार तलाशना होगा जो साफ-सुथरी छवि वाला हो,  भाजपा को भी मंजूर हो और नीति-‌निर्धारण में श्रीनि खेमे के साथ रहे।  हालांकि नए अध्यक्ष की दौड़ में सबसे ज्यादा नाम जहां जगमोहन डालमिया का ही उछल रहा है वहीं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (सीओओ) एवं बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार भी इस दौड़ में परोक्ष तौर पर कूद पड़े हैं। पवार को पूर्व अध्यक्षों शशांक मनोहर और इंद्रजीत बिंद्रा के अलावा पूर्व सदस्यों संजय जगदाले, अजय शिरके और चिरायु अमीन का भी समर्थन प्राप्त है लेकिन भाजपा के समर्थन के बिना उन्हें समर्थन मिलना मुश्किल है। वैसे नए अध्यक्ष के चुनाव की चाबी वित्त मंत्री अरुण जेटली और गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित शाह के हाथ में ही है। श्रीनि खेमा भी चाहता है कि डालमिया या मौजूदा अध्यक्ष राजीव शुक्ला में से किसी एक को अध्यक्ष बनाया जाए क्योंकि पवार मामले में यह सवाल उठ सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड के जिस नियम ६.२.४ को रद्द कर व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई है, उस नियम में पवार ने ही अध्यक्ष रहते संशोधन कराया था। यही नियम हितों का टकराव का कारण बना था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने इतना बड़ा फैसला सुनाया है। लेकिन राजीव शुक्ला भी विवादित आईपीएल-६ के कमिश्नर रह चुके हैं और इसलिए उनकी उम्मीदवारी पर भी सहमति बनना मुश्किल है। इसी नियम पर कोर्ट ने बीसीसीआई को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि श्रीनिवासन को टीम खरीदने की इजाजत देने वाला यह नियम ही असली खलनायक है। श्रीनिवासन इंडिया सीमेंट्सस के मालिक और निदेशक होने के साथ-साथ चेन्नई सुपरकिंग्स के संचालक भी हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में साफ कहा गया है कि इस नियम के दायरे में आने वाले कोई अधिकारी चुनाव नहीं लड़ सकता। इस फैसले की आशंका से श्रीनिवासन ने पहले ही एक जनवरी को चेन्नई सुपरकिंग्स को इंडिया सीमेंट के बैनर तले एक अलग कंपनी बना दी थी। कंपनी ने हालांकि अदालत के समक्ष अभी तक इस ‌विलय का ब्योरा नहीं दिया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त लोढ़ा समिति शायद ही यह माने कि इंडिया सीमेंट्स के प्रबंध निदेशक श्रीनिवासन चेन्नई सुपरकिंग्स के असली मालिक नहीं हैं।  वह बीसीसीआई अध्यक्ष बने रहने के लिए प्रबंध निदेशक का पद भी नहीं छोड़ सकते इसलिए संभव है कि वह चेन्नई सुपरकिंग्स प्राइवेट लिमिटेड के नियंत्रण वाले आधे से ज्यादा शेयर किसी और को बेच दे।
शीर्ष अदालत के इस फैसले की सराहना करते हुए क्रिकेट से जुड़े कई पूर्व प्रशासकों का मानना है कि इससे कदाचार समाप्त होगा और खेल संचालन में पारदर्शिता आएगी। इस मामले में याचिकाकर्ता और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव आदित्य वर्मा ने कहा, च्श्रीनिवासन का तात्कालिक भविष्य अब समाप्त हो चुका है क्योंकि अदालत ने छह महीने के अंदर चुनाव कराने का आदेश दिया है और हितों के टकराव के कारण श्रीनिवासन चुनाव लड़ने योग्य नहीं रह गए हैं।ज् शरद पवार ने कहा कि पिछले कुछ समय से भारतीय क्रिकेट में गड़बड़ियां हो रही थीं। ‌श्रीनिवासन को बाहर करने के फैसले से क्रिकेट के ढांचे में बदलाव आएगा। हालांकि उन्होंने बोर्ड का अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया और कहा, च्मेरी या शशांक मनोहर की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन हम क्रिकेट के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव लाने में मदद करेंगे।ज् पूर्व अध्यक्ष आई. एस. बिंद्रा ने कहा, च्सुप्रीम कोर्ट को बीसीसीआई पर भरोसा नहीं रह गया है और इसलिए अपनी जांच समिति गठित की है। श्रीनिवासन पर ही पूरा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है, वे सभी दोषी हैं जो पिछले कई महीनों से कार्रवाई नहीं कर पाए।ज् हालांकि अदालत ने कहा कि श्रीनिवासन के खिलाफ आरोपों पर पर्दा डालने के आरोप साबित नहीं हुए हैं लेकिन आईपीएल-२०१३ में उन्होंने च्हितों का टकरावज् की स्थिति पैदा की है और कोई भी नियम हितों के टकराव की अनुमति नहीं देता। लिहाजा अब वह अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन बीसीसीआई की धारा २० के तीन और चार के उपनियमों में संशोधन कर दूसरे क्षेत्र से भी ऐसे उम्मीदवारों में से अध्यक्ष चुनने का प्रावधान किया गया जो बोर्ड के मौजूदा या पूर्व सदस्य या उपाध्यक्ष रहे हों और अपने क्षेत्र के पूर्णकालिक सदस्य रहे हों। बहरहाल, अभी पूर्वी क्षेत्र से अध्यक्ष चुनने की बारी है और डालमिया इसी क्षेत्र से आते हैं लेकिन श्रीनिवास खेमे के लिए वह भरोसेमंद नहीं माने जाते हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि डालमिया जैसे अनुभवी प्रशासक भी योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं जबकि बोर्ड के संयुक्त सचिव तथा भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर जैसे युवा नेता भी उम्मीदवार बन सकते हैं। बोर्ड के वरिष्ठ सदस्यों का भी कहना था कि भाजपा का राजनीतिक नेतृत्व नए बीसीसीआई अध्यक्ष के चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। बोर्ड के एक पूर्व अधिकारी का कहना है, च्भाजपा और मौजूदा सरकार के ११ समर्थक सदस्य हैं इसलिए वे अपनी पसंद के उम्मीदवार खड़ा कर सकते हैं।ज् हालांकि इस दौड़ में राजीव शुक्ला, डालमिया, एम. पी. पंडोव, अनुराग ठाकुर, शिवलाल यादव और अनिरुद्ध चौधरी के अलावा भी कई अन्य ह‌स्तियों पर चर्चा हो रही है। बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि पूर्व अध्यक्ष आई. एस. बिंद्रा या ए. सी. मुथैया भी यदि उम्मीदवार बन जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं। शरद पवार और श्रीनिवासन का आठ-आठ सदस्यों पर नियंत्रण है। लिहाजा इस त्रिकोणीय मुकाबले में किसकी पसंद का उम्मीदवार अचानक आ जाए या किसका पलड़ा भारी होगा, यह सब भाजपा की कृपा पर ही निर्भर है। बोर्ड के सूत्रों के अनुसार, यह त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा एवं श्रीनिवासन बनाम पवार एवं भाजपा बनाम पवार एवं श्रीनिवासन के बीच है। मौजूदा परिदृश्य में कुछ भी कहना मुश्किल है। वैसे अभी श्रीनिवासन को दक्षिण और पूर्वी क्षेत्र का समर्थन प्राप्त है लेकिन आने वाले दिनों में समीकरण बदल भी सकते हैं।

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