असम का यह मुक्केबाज अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ की रैंकिंग में फिलहाल छठे स्थान पर है और विश्व चैम्पियनशिप पदक जीतने वाला तीसरा भारतीय मुक्केबाज है। उसने दोहा में 2015 में विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य जीता था। इसके अलावा 2013 एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्ण और 2015 में कांस्य जीता। मार्च में उपमहाद्वीपीय क्वालीफायर में रजत जीतकर उसने रियो के लिये क्वालीफाई किया था। लंदन ओलंपिक में वह सिर्फ 18 साल का था जिसमें पहले ही दौर में हार गया। अब उसे बेंटमवेट (56 किलो) में पदक उम्मीद माना जा रहा है।
उसने प्रेस ट्रस्ट से बातचीत में बताया कि विजेंदर सिंह और अखिल कुमार को 2008 बीजिंग खेलों में देश का नाम रोशन करते देखकर वह हमेशा से ओलंपिक में उतरना चाहता था। उसने कहा, समय कैसे भागता है। मुझे लगता है कि लंदन ओलंपिक कल ही हुए थे। मुझे याद है कि मैं बीजिंग ओलंपिक भी जाना चाहता था। उस समय मैं सोचता था कि कैसे जाऊंगा क्योंकि तक मैं सब जूनियर था।
चार साल बाद उसने लंदन के लिये क्वालीफाई करके अपना सपना पूरा किया। लंदन में आठ सदस्यीय मुक्केबाजी दल में बच्चे की तरह गए शिव अब आत्मविश्वास से ओतप्रोत है। शिव ने कहा , गुवाहाटी में मेरा बचपन ऐसे इलाके में बीता जो सड़कों पर होने वाले फसादों के लिये बदनाम था। आटो और रिक्शा वहां जाते ही नहीं थे क्योंकि स्थानीय गैंग से पिटने का डर रहता था। मेरी उम्र के बच्चे भी इसमें शामिल थे।
उसने अपना फोकस खेल पर बरकरार रखा और इसका श्रेय कराटे शिक्षक पिता पद्म थापा को जाता है। वह बाद में पुणे स्थित सैन्य खेल संस्थान और फिर एनआईएस पटियाला आ गया। उसने कहा, मैंने फुटबाल, जिम्नास्टिक से लेकर एथलेटिक्स सब कुछ खेला लेकिन मुक्केबाजी में मेरा मन रमा। मुझे इस खेल से प्यार है लेकिन मुक्केबाज नहीं होता तो मैं फुटबालर होता। फिलहाल वह लंबे समय से राष्ट्रीय सहायक कोच रहे सी कुटप्पा के साथ अभ्यास कर रहे हैं जो 2008 में विजेंदर सिंह के निजी कोच थे।
शिव ने कहा, वह अनुशासनप्रिय कोच हैं लेकिन मुझे उनके साथ सहज महसूस होता है। वह मुझे मेहनत करने के लिये प्रेरित करते हैं लेकिन बहुत ध्यान भी रखते हैं।
एजेंसी