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बम विस्फोट से बचने के बाद पदक जीतने की प्रतिबद्धता बढ़ी : पेस

भारत की तरफ से व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले 12 खिलाडि़यों में से एक लिएंडर पेस ने कहा कि 1996 अटलांटा खेलों के दौरान सेंटिनियल पार्क बम विस्फोट से बचने के बाद वह पदक जीतने के लिये अधिक प्रतिबद्ध हो गये थे।
बम विस्फोट से बचने के बाद पदक जीतने की प्रतिबद्धता बढ़ी : पेस

खेल पत्रकार दिग्विजय सिंह देव और अमित बोस की किताब माई ओलंपिक जर्नी में पेस ने उस समय का जिक्र किया है जब उन्हें उस दिन खेल गांव में फिर से प्रवेश करने के लिये जूझना पड़ा था। रियो में अपने रिकार्ड सातवें ओलंपिक में भाग लेने की तैयारियों में जुटे इस दिग्गज ने याद किया कि किस तरह से उन्हें अंदर घुसने के लिये सुरक्षा अधिकारियों के आगे हाथ पांव जोड़ने पड़े थे।

पेस ने कहा, मेरे माता पिता, मेरी टीम और मैं तब पार्क के अंदर थे जब यह हुआ। हम 30 -40 फुट दूर थे और धमाकों से हम भी अंदर तक कांप गये थे। हमारे आसपास कुर्सियां और मेज बिखरी थी और मेरे कान बज रहे थे। अगले 24 घंटे तक मुझे सुनने में दिक्कत महसूस हुई। उन्होंने बताया, जब मैं खेल गांव के प्रवेश द्वार पर गया तो गेट बंद था। मैंने सुरक्षाकर्मियों से आग्रह किया कि वह मुझे अंदर जाने दे। मैंने उसे अपनी पहचान बतायी। मैंने उससे कहा कि मेरे माता-पिता घर चले गये हैं और सार्वजनिक परिवहन भी बंद हो गया है। मैं कहीं नहीं जा सकता हूं। लेकिन सुरक्षाकर्मी किसी को भी अंदर नहीं घुसने देने के आदेशों का पालन कर रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि कोई दूसरा द्वार ढूंढो जो हो सकता है कि खुला हो।

पेस ने कहा, मैं दौड़ लगाकर दूसरे गेट तक गया। मैं अगले 20 मिनट तक एक गेट से दूसरे गेट तक दौड़ता रहा और शायद पांचवें गेट पर मैंने सुरक्षाकर्मी के सामने हाथ-पांव जोड़े। मैंने उसे बताया कि जब बम विस्फोट हुआ तो मैं पार्क में था। वह काफी विनम्र था और उसने एक ओलंपिक खिलाड़ी को अंदर जाने देने के लिये दिमाग से काम लिया। पेस ने कहा, मैं अपने अपार्टमेंट के ब्लॉक में पहुंचा। मैं बहुत भाग्यशाली था जो उस दिन सेंटिनियल पार्क से बच कर निकल गया था और मैं जानता था कि ईश्वर ने हमेशा की तरह मुझ पर अपनी कृपा दिखायी थी। इस घटना ने मुझे अधिक प्रतिबद्ध बना दिया था। असल में मेरे अंदर विश्वास जागा कि मैं सेमीफाइनल में आंद्रे अगासी को हरा सकता हूं। पेस सेमीफाइनल में अमेरिकी दिग्गज से हार गये थे लेकिन कांस्य पदक के लिये खेले गये मैच में उन्होंने फर्नांडो मेलिगनी को हराया और इस तरह से 1952 के बाद व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी बने। उन्होंने कहा, हर दिन मैं किसी उद्देश्य के साथ खेला और सब कुछ अनुकूल रहा।

पेस ने इसके बाद मेलिगनी के साथ काफी समय बिताकर अपने अंदर के भद्रजन को जगजाहिर किया। उन्होंने कहा, मैं उस दिन बहुत परिपक्व हो गया था। मैं जानता था कि मैं मानसिक रूप से मजबूत हूं लेकिन वह दिन केवल टेनिस को लेकर नहीं था, यह शरीर और दिमाग से जुड़ा खेल था। मैंने जीत के बाद फर्नांडो को लंबे समय तक गले लगाये रखा क्योंकि उसका सपना चकनाचूर हुआ था। पेस ने कहा, वह ब्राजील से था और मैं भारत से और हमें ओलंपिक पदक जीतने के बहुत कम मौके मिले थे। मैं जानता था कि अपनी बाकी जिंदगी में वह किसी बोझ के साथ जिएगा। मैंने उसके और उसकी टीम के साथ काफी समय बिताया।

 

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