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क्या ओलंपिक में पदक जीतने का सिलसिला जारी रख पाएंगे भारतीय पहलवान, विश्लेषण पर डालें नजर

भारत ने बीजिंग ओलंपिक 2008 से अबतक हर ओलंपिक में पदक जीता है। ऐसे में पेरिस ओलंपिक में भाग ले रहे पहलवानों...
क्या ओलंपिक में पदक जीतने का सिलसिला जारी रख पाएंगे भारतीय पहलवान, विश्लेषण पर डालें नजर

भारत ने बीजिंग ओलंपिक 2008 से अबतक हर ओलंपिक में पदक जीता है। ऐसे में पेरिस ओलंपिक में भाग ले रहे पहलवानों के लिए इसे बढ़ाना एक चुनौती होगी। कुश्ती पर भारतीयों को बहुत अधिक नजर रहने वाली है क्योंकि पहलवानों ने पिछले कुछ सालों में अप्रत्याशित सफलता हासिल की है। 

याद दिला दें कि सुशील कुमार ने 2008 में कांस्य पदक जीत कर भारत में कुश्ती का परिदृश्य बदला। इसके चार साल बाद लंदन ओलंपिक में उन्होंने रजत पदक हासिल किया जबकि योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता। साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक खेल 2016 में कांस्य पदक जीत कर यह सिलसिला जारी रखा।

बाद में, तोक्यो ओलंपिक में रवि दहिया ने रजत और बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक जीता। लेकिन जब यह खेल नित नई ऊंचाई हासिल कर रहा था तब देश के शीर्ष पहलवानों के भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन प्रमुख के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के कारण इसकी प्रगति को करारा झटका लगा।

इसके कारण राष्ट्रीय शिविर और घरेलू प्रतियोगिताओं का आयोजन नहीं हो पाया। इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई और तब कोई नहीं जानता था कि आगे क्या होगा। राष्ट्रीय महासंघ के चुनाव हुए लेकिन नई संस्था को निलंबित कर दिया गया। इस खेल की अंतरराष्ट्रीय संस्था के निलंबन हटाए जाने के बाद ही स्थिति सामान्य हो पाई।

भारत का केवल एक पुरुष खिलाड़ी और पांच महिला खिलाड़ी ही ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर पाए। इन खिलाड़ियों के मजबूत और कमजोर पक्षों का यहां विश्लेषण किया जा रहा है।

• अमन सहरावत (पुरुष फ़्रीस्टाइल 50 किग्रा): अपने खेल में निरंतर सुधार करने वाले अमन ने 57 किग्रा भार वर्ग में रवि दहिया की जगह ली। 6 मिनट तक मुकाबला चला तो उन्हें हराना आसान नहीं होगा।

• विनेश फोगाट (महिला 50 किग्रा): इसमें कोई संदेह नहीं है कि विनेश फोगाट भारत की सबसे बेहतरीन महिला पहलवानों में से एक हैं। मजबूत रक्षण और उतना ही प्रभावशाली आक्रमण उनकी ताकत है।

• अंतिम पंघाल (महिला 53 किग्रा): हिसार की यह तेजतर्रार खिलाड़ी पेरिस ओलंपिक कोटा हासिल करने वाली पहली पहलवान थी। जब विरोध प्रदर्शन अपने चरम पर था, तब उन्होंने विनेश को ट्रायल के लिए चुनौती भी दी थी। उन्होंने हालांकि एशियाई खेलों में भाग नहीं लिया और पीठ की चोट के कारण उन्हें इस साल एशियाई चैम्पियनशिप से बाहर होना पड़ा। 

• अंशु मलिक (महिला 57 किग्रा): जूनियर स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद सीनियर स्तर में जगह बनाने वाली अंशु पदक के दावेदारों में शामिल है। मैट पर तेज़ी से मूवमेंट करना और आक्रामक खेल शैली अंशु की सबसे बड़ी ताकत है। हालांकि उनकी फिटनेस चिंताजनक पहलू है। वह कंधे की चोट से परेशान रही हैंं। उनका दावा है कि यह सिर्फ गर्दन की ऐंठन है, लेकिन उसका परीक्षण नहीं किया गया है।

• निशा दहिया (महिला 68 किग्रा): निशा के बारे में बहुत अधिक दावे नहीं किए गए। उन्होंने शुरू में काफी उम्मीद जगाई लेकिन चोटिल होने के कारण उनकी प्रगति पर प्रभाव पड़ा।

• रीतिका हुड्डा (महिला 76 किग्रा): रीतिका अपनी ताकत के दम पर मजबूत खिलाड़ियों को भी चौंका देती है। इससे अनुभवी पहलवानों के लिए भी उन्हें हराना मुश्किल साबित हो सकता है। रीतिका के पास ताकत और तकनीक है, लेकिन उन्हें मुकाबले के आखिरी 30 सेकंड में अंक गंवाने की आदत है। 

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