संघर्ष की राह पर चलते हुए मनुष्य के मन में अध्यात्म बल और निस्वार्थ होकर समाज हित करने का इरादा हो तो ईश्वर चमत्कार करते हैं। कम उम्र में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले नौजवान विनायक शर्मा की सफलता भी किसी चमत्कार से कम नहीं। किंतु इस सफलता के पीछे छुपा हैं विनायक और उसके परिवार का सालों का संघर्ष, उसके परिवार की मेहनत और त्याग की सच्चाई, उसके विश्वास, इरादों, हौंसलों की कहानी। क्योंकि ईश्वर भी चमत्कार तब करते हैं जब आप पुरुषार्थ करते हैं।
कौन हैं विनायक शर्मा?
विनायक शर्मा अध्यात्मिक प्रचारक हैं। वह रामचरितमानस, भागवत गीता, तुलसी साहित्य एवं कई धर्म ग्रंथो के वशिष्ट जानकर है। वह समाज में सनातन संस्कृति के प्रचार एवं धर्म ग्रंथो का सही सार लोगों तक पहुंचाने के प्रयास में निरंतर जुटे रहते है। विनायक शर्मा का जन्म 9 अक्टूबर 1993 में राजस्थान की त्रिनेत्र गणपति की धरा और शेरो की नगरी कहे जाने वाले सवाई माधोपुर में हुआ।
दादा जी है गणेशजी के परम भक्त इसीलिए नाम रखा विनायक
विनायक के दादा जी रामगोपाल शर्मा भगवान त्रिनेत्र गणेश जी के परम भक्त हैं। वह 40 वर्षों से बिना किसी नाका के रणथम्भोंर क़िले में स्थित भगवान गणेश जी के दर्शन एवं सेवा के लिए प्रत्येक बुधवार जाते है, उनकी गणेश जी के प्रति अटूट भक्ति के भाव में ही उन्होंने अपने सबसे बड़े पौत्र का नाम विनायक रखा। विनायक की बुद्धि बचपन से ही तीव्र थी, वे रोज़ अपने दादा जी के साथ मंदिर जाकर भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करते थे।
शास्त्र कृपा और गुरु कृपा के पात्र बने विनायक
बचपन से ही विनायक पर शास्त्र कृपा का प्रबल प्रभाव रहा हैं। बालावस्था से ही उनकी धर्म ग्रंथों एवं अध्यात्म में गहरी रुचि है, ऐसा लगता है की विनायक के प्रारब्ध में ही यह सब लिखा हो, मात्र 3 वर्ष की आयु में ही विनायक वेद, पुराण के ऐसे श्लोक और स्मृतियां बोल लेते थे जिनका कोई आम इंसान भी आसानी से सही उच्चारण नहीं कर सकता। शास्त्र और अध्यात्म के प्रति रूची देख पिता ने विनायक को 6 वर्ष की आयु में ही वैदिक शिक्षा के लिए "ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम" भेजने का फैसला लिया। विनायक ने ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम में धर्म ग्रंथों का गहराई से अध्यन किया साथ ही गुरुओं से अद्बुध आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मचर्य आश्रम में रहकर विनायक में बालावस्था से ही तपस्या, सत्संग, निःस्वार्थ कर्म, आदर्श, दया, पवित्रता, प्रेम और भक्ति जैसे गुण आ गए थे। आश्रम के संतों और गुरुओं का भी विनायक के प्रति विशेष स्नेह था।
माता पिता का संघर्ष
विनायक के पिता बृजेंद्र शर्मा घर के पास एक पान की दुकान चलाते हैं और उनकी मां निर्मला शर्मा ग्रहणी हैं। माता पिता ने शुरू से ही विनायक और उनके छोटे भाई कार्तिक को अच्छे संस्कार और गुणों से सींचा। अपने माता पिता को मेहनत करते और सद्मार्ग पर चलते देख विनायक ने छोटी उम्र में ही उनके संस्कारों और गुणों को ग्रहण कर लिया था। अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करने बाद विनायक आगे की शिक्षा के लिए जयपुर आ गए। लेकिन पान की दुकान की आमदनी से विनायक को जयपुर के महँगे विद्यालयों में पढ़ाना पिता के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था। किंतु तब भी उन्होंने विनायक के सपनों के साथ कोई समझौता नहीं होने दिया। विनायक के माता पिता ने अपनी सुविधाओं को कम किया, सारी जमा पूंजी इखट्टा कर विनायक का दाख़िला जयपुर के महँगे विद्यालय में करवाया। ताकि विनायक को बेहतर से बेहतर शिक्षा मिल सके। पिता के संघर्ष और मां के संस्कारों से प्रेरणा लेकर विनायक ने अपने जीवन को तपस्या बना लिया।
विद्यार्थी जीवन रहा क्रांतिकारी
विनायक शर्मा जयपुर आये तो इनकी सोच ने बुद्धिजीवियों के विचारों पर ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा। विद्यार्थी जीवन से ही विनायक ने संघर्ष की राह चुन ली थी। आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण विनायक शर्मा का विद्यार्थी जीवन युवा शक्ति की आवाज़ बनने, आंदोलन और धरने प्रदर्शन करने में गुज़रा जिसने देश में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की भावना को बढ़ाने का काम किया।
कम उम्र में बनाया विश्व रिकॉर्ड
मात्र 29 वर्ष की आयु में विनायक को “World book of Records, London” खिताब से नवाजा गया। अपने पेशेवर जीवन के साथ साथ विनायक शर्मा अध्यात्म के प्रति अपनी रुची और अटूट समर्पण के माध्यम से भी अपने आस पास के लोगों को प्रेरित करते रहते है। विनायक शर्मा की भूमिका लोगों के जीवन में धार्मिकता को लेकर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं, जिससे लोग जीवन की नकारात्मकता को पीछे छोड़ आध्यात्मिक ऊर्जा की ओर बढ़ते हैं।
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